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आठ सालों में अत्यचारों से पीड़ित दलितों एवं आदिवासियों के साथ एक हजार 140 करोड़ की हकमारी

सीवीएमसी के अध्ययन में यह भी सामने आया कि कम से कम 44 हजार पीड़ित 1 हजार 140 करोड़ रुपए की त्वरित सहायता राशि से वंचित रह गए। हालांकि यह आकलन वास्तविक आंकड़ों से कम हो सकता है, क्योंकि एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट में स्थायी रूप से किए गए विकलांगों के मामलों का ऐसा कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। पढ़ें यह रपट

सिटीजंस विजिलेंस एंड मॉनिटरिंग कमिटी (सीवीएमसी), चेन्नई के एक अध्ययन से यह सामने आया है कि वर्ष 2015 से लेकर 2022 तक की अवधि में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत पीड़ितों को देय त्वरित सहायता राशि के एक हजार 140 करोड़ रुपए नहीं दिए गए। जबकि राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रपटों के अनुसार गत आठ साल की इस अवधि में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत हत्या, बलात्कार और आगजनी के 44 हजार 377 मामले दर्ज किये गए।

बताते चलें कि अनुूसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत सहायता राशि पीड़ितों के लिए आंबेडकर राष्ट्रीय राहत योजना (डेनवास) के अंतर्गत दी जाती है। दिलचस्प यह कि इस योजना को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स (एनडीए) की केंद्र सरकार की पहली पारी के शुरुआती महीनों में शुरू किया गया था।

सनद रहे कि अनुूसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत पीड़ितों/उनके आश्रितों को त्वरित सहायता के लिए प्रावधान पूर्व से निर्धारित था। लेकिन आंबेडकर राष्ट्रीय राहत योजना (डेनवास) नामक यह योजना पूर्व के प्रावधान की सरकार द्वारा किए गए समीक्षा के बाद प्रारंभ किया गया। उल्लेखनीय यह है कि त्वरित सहायता राशि में केंद्र और संबंधित राज्य सरकार का योगदान आधा-आधा होता है। समीक्षा में पता चला कि सहायता राशि पीड़ितों तक नहीं पहुंच रही थी, क्योंकि राज्यों का दावा था कि उनके पास इस हेतु धनराशि उपलब्ध नहीं था। इस नई योजना के अंतर्गत केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन डॉ. आंबेडकर फाउंडेशन नामक एक स्वायत्त संस्था को पीड़ितों के लिए त्वरित सहायता राशि स्वीकृत करने का अधिकार दिया गया था। 

वर्ष 2015 में हरियाणा के फरीदाबाद जिले के बल्लभगढ़ का एक दलित परिवार, जिनका घर ऊंची जातियों द्वारा जला दिया गया था। इस घटना में दो बच्चों की मौत हो गई थी।

मसलन, हत्या के मामले में यदि मृतक परिवार का कमाने वाला सदस्य हो तो पांच लाख रुपए और न कमाने वाला सदस्य हो तो दो लाख रुपए। इसी तरह बलात्कार और आगजनी के मामलों में यह राशि क्रमशः 2 लाख रुपए और 3 लाख रुपए थी। जबकि स्थायी अपंगता के मामलों में पीड़ित के परिवार का कमाने वाले सदस्य होने की स्थिति में 3 लाख रुपए और न होने की स्थिति में डेढ़ लाख रुपए की सहायता का प्रावधान था। हालांकि शर्त यह थी कि ये सभी मामले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत दर्ज होने चाहिए तथा सहायता प्राप्त करने हेतु आवेदन पत्र के साथ प्राथमिकी (एफआईआर) की प्रति के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट/मेडिकल सर्टिफिकेट की प्रतियां और संबंधित मामले को जिला मजिस्ट्रेट द्वारा भेजा जाना आवश्यक था।

लेकिन एनसीआरबी और डॉ. आंबेडकर फाउंडेशन की वार्षिक रपटों एवं संसद में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर के अध्ययन से सीवीएमसी की दीप्ति सुकुमार और गीता वाणी ने यह पाया कि 2015 से 2020 की बीच, पात्र पीड़ितों में से केवल दो प्रतिशत को सहायता राशि प्राप्त हुई। चूंकि 2021 और 2022 में लाभार्थियों की संख्या अनुपलब्ध थी, अतः उन्होंने इस संख्या को पिछले वर्षों के औसत के आधार पर 50 पीड़ित प्रति वर्ष मान कर गणना की। सुकुमार और वाणी के अध्ययन से यह भी सामने आया कि कम से कम 44 हजार पीड़ित 1 हजार 140 करोड़ रुपए की त्वरित सहायता राशि से वंचित रह गए। हालांकि यह आकलन वास्तविक आंकड़ों से कम हो सकता है, क्योंकि एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट में स्थायी रूप से किए गए विकलांगों के मामलों का ऐसा कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।

डॉ. आंबेडकर फाउंडेशन द्वारा हत्या, बलात्कार, आगजनी के मामलों में त्वरित आर्थिक सहायता (रुपए में) 

वर्षपीड़ितों की संख्यासहायता प्राप्त करने वाले पीड़ितों  की संख्या सहायता से वंचित पीड़ितों का प्रतिशतराशि जो दी जानी थीराशि जो दी गईराशि जो नहीं दी 

गई
नहीं दी गई राशि का प्रतिशत
20154,38584 98.10  116,20,00,000 25,250,000 1,136,750,000 97.83  
20164,65360 98.72 123,27,00,000 18,400,000 1,214,300,000 98.51 
20174,88724 99.50  125,81,00,0007,780,000 1,250,320,000 99.38 
20185,12857 98.89  134,10,00,00017,883,750 1,323,116,250 98.67 
20196,00426 99.56 156,63,00,0008,606,250 1,557,693,750 99.45 
20205,73499.90 148,20,00,0002,250,000 1,479,750,000 99.87 
20216,598169,67,00,000
20226,988177,42,00,000
कुल44,3771,151,30,00,000

स्रोत: डॉ. आंबेडकर फाउंडेशन की वार्षिक रपटें व राज्यसभा में अतारांकित प्रश्न क्रमांक 1252, दिनांक 8 दिसंबर, 2021 को दिया गया उत्तर

इस खबर का एक स्याह पक्ष यह भी है कि 13 जनवरी, 2023 को डॉ. आंबेडकर फाउंडेशन ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अधिसूचना (डीएएफ/1/2023–एडमिन-डीएएफ 1/25058/2023 ईओ–64933) प्रकाशित की कि ‘डेनवास’ व अंतर्जातीय विवाह योजना को 1 अप्रैल, 2023 से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 व नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 के कार्यान्वयन के लिए सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय द्वारा संचालित केंद्र प्रायोजित योजना का हिस्सा बनाया जा रहा है। इस निर्णय के परिप्रेक्ष्य में राहत राशि के लिए पीड़ितों द्वारा आवेदन देने की अंतिम तिथि 28 फरवरी, 2023 निर्धारित की गई और फाउंडेशन ने यह कहा कि वह लंबित आवेदनों (आगे कोई हों तो) का निराकरण 31 मार्च, 2023 तक कर देगा। 

जबकि दीप्ति सुकुमार और गीता वाणी लिखती हैं, “गत 26 फरवरी, 2024 को सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय ने सभी राज्यों के नोडल अधिकारियों और केंद्रीय गृह, जनजातीय कार्य और विधि एवं न्याय मंत्रालयों को एक परिपत्र 11011/14/2023-पीसीआर (डेस्क) भेजा, जिसमें केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत आवेदन करने हेतु प्रारूप संलग्न थे। मगर इन प्रारूपों में ‘डेनवास’ का कोई ज़िक्र नहीं है।” 

‘डेनवास’ के तहत आर्थिक मदद देने में इतनी कंजूसी क्यों की गई और अत्याचारों के पीड़ित हजारों दलितों और आदिवासियों को निर्धारित सहायता क्यों उपलब्ध नहीं करवाई गई, यह एक रहस्य बना हुआ है। वहीं पीड़ितों को राहत राशि मिले, इसके लिए आवेदन करने का दायित्व संबंधित जिला मजिस्ट्रेट का है न कि पीड़ितों का। दीप्ति सुकुमार और गीता वाणी लिखती हैं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामले दर्ज करने में इतनी सावधानी बरती जाती है कि ‘डेनवास’ के अंतर्गत पात्रता प्रमाणित करने हेतु पर्याप्त दस्तावेज जिला मजिस्ट्रेट को उपलब्ध रहते ही हैं। जैसे कि– “अत्याचार से संबंधित किसी भी सूचना को नियम-5 के अंतर्गत संज्ञान में लिया जाता है और फिर नियम-6 के अधीन अनुभागीय दंडाधिकारी या पुलिस उपाधीक्षक या उससे उच्च दर्जे का अधिकारी इनकी जांच करता है। सूचना की पुष्टि के बाद, नियम-12(1) के तहत, पुलिस अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट, दोनों अपराध स्थल का निरीक्षण करते हैं और पुलिस अधीक्षक यह सुनिश्चित करता है कि उपयुक्त धाराओं के अंतर्गत एफआईआर दर्ज की जाय।” 

लेकिन ‘डेनवास’ का वार्षिक बजट इतना कम है कि पीड़ितों के एक छोटे से हिस्से को भी कवर नहीं कर पाएगा। जाहिर तौर पर यह प्रांरभ से ही सरकार की मंशा को दर्शाता है कि पीड़ित दलितों और आदिवासियों के त्वरित सहायतार्थ योजना को विफल करने के लिए ही इसे इस तरह से असमर्थ बनाया गया था। 

(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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