बिहार के बोधगया में गत 12 फरवरी, 2025 से एक बड़ा आंदोलन चलाया जा रहा है। यह धीरे धीरे और विस्तृत होता जा रहा है। देश भर से बौद्ध धर्मावलंबी प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में इस आंदोलन में शामिल होने पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं, बौद्ध संगठनों के अलावा अर्जक संघ समेत कई मानववादी संगठन भी इस महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं। अब इस आंदोलन की गूंज लोकसभा में भी सुनाई दे रही है। गत 2 अप्रैल, 2025 को वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर बहस के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के सांसद सुधाकर सिंह ने महाबोधि मंदिर ट्रस्ट का उदाहरण दिया और कहा कि उस ट्रस्ट में आज गैर-बौद्ध बहुमत में हैं। उन्होंने कहा कि सरकार की नजर वक्फ बोर्ड की जमीन पर है और इसके जरिए मुसलमानों, जो कि इस देश के उतने ही नागरिक हैं, जितने कि हिंदू हैं, की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भावनाओं पर प्रहार किया जा रहा है।
वहीं आंदोलन का नेतृत्व करने वाले ऑल इंडिया बुद्धिस्ट फोरम एंड ऑल बुद्धिस्ट ऑर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय महासचिव आकाश लामा ने बताया कि गया जिला के बोधगया में अवस्थित महाबोधि महाविहार विशुद्ध रूप से महामना बुद्ध का मंदिर है, जिस पर हिंदुओं ने कब्जा कर लिया है। बुद्ध के दर्शन और विचारों को गौण करके हिंदू संस्कृति लागू कर रखा है, जिससे लोग भ्रमित होने लगे हैं। हिंदुओं की तरह पूजा-पद्धति अपनाया जाने लगा है। इन सबका मुख्य कारण है बोधगया मंदिर अधिनियम-1949। इस अधिनियम के तहत मंदिर प्रबंधन समिति में बौद्ध और हिंदू दोनों को शामिल करने का प्रावधान है। जबतक यह कानून निरस्त नहीं होता तबतक कोई भी सुधार संभव नहीं है।
उन्होंने बताया कि बोधगया मंदिर अधिनियम-1949 हम बौद्ध धर्मावलंबियों के अधिकारों का हनन करता है। साथ ही, बुद्ध धम्म और संघ की पवित्रता का उल्लंघन भी करता है। इसलिए इसे निरस्त करने और उसकी जगह महाबोधि महाविहार चैत्य ट्रस्ट के गठन का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत प्रबंधन पूरी तरह से बौद्धों के हाथ में होगा। नया ट्रस्ट भिक्खू प्रशिक्षण, धम्म शिक्षा, चिकित्सा कार्यक्रम और सामुदायिक कल्याण सेवाओं के लिए केंद्र बनाएगा।

महाबोधि मंदिर मुक्ति आंदोलन से जुड़े और सरकारी वकील रहे के.के. बौद्ध ने बताया कि “भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसकी धाराएं – 25, 26, 29 और 30 – धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों की गारंटी देती हैं। लेकिन बोधगया मंदिर अधिनियम, जो 1949 में बना, वह इस संविधान की धारा के विपरीत है। यह अभी भी लागू है। बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति हिंदुओं के कब्जे में है। उससे छुटकारा के लिए हम आंदोलन कर रहे हैं और पूरे देश भर से ही नहीं विदेश के लोग भी इस मुद्दे पर हमारा समर्थन भी कर रहे हैं। यहां तक कि तथाकथित हिंदू धर्म के पिछड़े, दलित समुदाय के लोग और कई संगठन इस आंदोलन को तन, मन और धन से समर्थन कर रहे हैं। राजद विधायक सतीश दास समेत कई राजनीतिज्ञ आंदोलन स्थल पर आकर हम आंदोलनकारियों का हौसला बुलंद कर चुके हैं।”
ऑल इंडिया बुद्धिस्ट फोरम, बिहार और भिक्खू संघ के प्रभारी भंते सुनीत पाल ने बताया कि “महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के तहत 12 फरवरी, 2025 से महाबोधि महाविहार मंदिर के सामने अपनी मांगों को लेकर आमरण अनशन चल रहा था। लेकिन 27 फरवरी की रात प्रशासन द्वारा जबरन आंदोलनकारियों को वहां से हटा दिया गया और कुछ बौद्ध भिक्खुओं को मगध मेडिकल कॉलेज परिसर में ले जाकर छोड़ दिया गया। जबरन पुलिस कार्रवाई से हमलोग घबराए नहीं। और उसके विरोध में वहां से अलग हटकर बोधगया दोमुहान के निकट बड़े पैमाने पर पंडाल लगाकर भंते आकाश लामा के नेतृत्व में अनिश्चित कालीन धरना पर हमलोग बैठ गए। भले मुख्य मीडिया ने इसका प्रचार ज्यादा नहीं किया, परंतु समता विचार मंच समेत दर्जनों यूट्यूबर द्वारा इसकी खबर प्रचारित की गई। नतीजा यह हुआ कि अब बिहार ही नहीं, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश समेत देश भर के महामना बुद्ध के अनुयायी यहां सैंकड़ों की संख्या में आ रहे हैं और तन, मन और धन से सहयोग कर रहे हैं। भारी संख्या में विदेशी भी आ रहे हैं। वे भी मदद कर रहे हैं।”
उन्होंने बताया कि इस आंदोलन का नेतृत्व मुख्य रूप से आकाश लामा (दार्जलिंग), ए.के. जिमा, भदंत प्रज्ञा शील महाथेरो, भिखू नेतपाल, के.के. बौद्ध, भंते विनय रक्षित, भंते करुणाशील राहुल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आरएसएस और उससे जुड़े संगठन इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए जुटे हुए हैं। पर बौद्ध धर्मावलंबी हार मानने वाले नहीं हैं।
आंदोलन में शामिल भंते संघमित्रा ने बताया कि हम सभी महिला और पुरुष मिलकर अनिश्चितकालीन आंदोलन में जुटे हुए हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि “यह बात सही कि हम पहले जानकारी के अभाव में हिंदू बने हुए थे। पर अब बौद्ध बन गए हैं। बोधगया महाविहार के प्रबंधन समिति में केवल बौद्धों को ही रहना चाहिए। इसी के लिए यह आंदोलन है।” उन्होंने बताया कि जब वह आमरण अनशन पर बैठी थीं तो प्रशासन ने रात में अपमानित करके यहां से भगा दिया।
वहीं इस आंदोलन में कुछ पेंचीदगियां भी सामने आई हैं। कुछ भंतों का कहना है कि सवर्ण, पिछड़े और दलित सभी बौद्ध बने हैं। कई प्रमुख स्थानों पर सवर्ण से बने बौद्धों का कब्जा है। दलित से बने बौद्धों को समिति में रख लिया गया है। लेकिन पिछड़े वर्ग से बने बौद्धों को जगह मिलेगी या नहीं, इसपर लोग मौन है। मतलब भले वे बौद्ध बन गए, लेकिन कहीं न कहीं अभी भी जातीय संस्कार पूरी तरह गया नहीं है।
वहीं इस आंदोलन को शुरू से ही यूट्यूब के माध्यम से कवर करने वाले समता विचार मंच के मंटू जी ने बताया कि “हम पूरे आंदोलन के चश्मदीद गवाह हैं। आंदोलन का कारवां बढ़ता ही जा रहा है। अर्जक संघ, बहुजन समाज पार्टी, शोषित समाज दल, बामसेफ, मूल निवासी संघ, महाराष्ट्र, केरल के सैकड़ों संगठन आंदोलन में शामिल होकर इस आंदोलन को और तेज कर रहे हैं।”
बहरहाल, ऐसा ही आंदोलन 1992 में सुरई ससाई के नेतृत्व में भी हुआ था। पर वह आंदोलन किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सका था। लेकिन इस बार के आंदोलन में लोग व्यापक स्तर पर जुड़ रहे हैं। अब चूंकि बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में यह मुद्दा और जोर पकड़ सकता है। लेकिन इसका फलाफल क्या होगा, यह तो आनेवाला समय बताएगा।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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