h n

वर्ण और जाति के सापेक्ष दो महापंचों की संपत्ति

यह सिर्फ दो न्यायाधीशों/व्यक्तियों के बीच धन-दौलत, जमीन-जायदाद और सोना-चांदी की तुलना नहीं है। वस्तुत: ये दो सामाजिक वर्ग-समूहों की धन-संपत्ति के ऐतिहासिक संबंधों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बता रहे हैं डॉ. सिद्धार्थ रामू

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने अपनी और अपने परिजनों (मुख्यत: पत्नी) की धन-संपत्ति की घोषणा की है। यह घोषणा सर्वोच्च न्यायालय के वेबसाइट पर उपलब्ध है। धन-संपत्ति का जो ब्यौरा न्यायाधीशों ने प्रस्तुत किया है, उससे समझ जा सकता है कि इस देश में किसी व्यक्ति के पास कितनी धन-संपत्ति होगी, उसमें सबसे बड़ा निर्धारक तत्व उसकी वर्ण-जाति है। बिना संदेह इस धन-संपत्ति का संबंध पैतृक संपत्ति और विरासत से भी जुड़ा होता है, लेकिन वह भी वर्ण-जाति जुड़ी हुई है।

इसे भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और उनकी पत्नी के धन-संपत्ति तथा भावी मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और उनकी पत्नी की धन-संपत्ति से समझा जा सकता है।

बताते चलें कि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना आगामी 13 मई को सेवानिवृत हो रहे हैं और 14 मई को जस्टिस बी.आर. गवई मुख्य न्यायाधीश की जिम्मेदारी संभालेंगे।

सुप्रीम कोर्ट के वेबसाइट पर उपलब्ध दोनों की धन-संपत्ति के ब्यौरे बताते हैं–

  1. न्यायाधीश संजीव खन्ना के पास कुल फिक्स डिपोजिट 55.75 लाख रूपए हैं जबकि जस्टिस गवई के पास कुल फिक्स डिपोजिट 19.63 लाख रूपए हैं। यानी जस्टिस गवई के पास जस्टिस खन्ना की तुलना में एक-तिहाई फिक्स डिपोजिट है।
  2. दोनों न्यायाधीशों ने कुछ निवेश भी किया है। जस्टिस खन्ना के पर्सनल प्राविडेंट फंड में कुल 1 करोड़ 6 लाख रुपए हैं, जबकि जस्टिस गवई के पर्सनल प्रोविडेंट फंड में केवल 6 लाख 59 हजार रुपए ही हैं। साफ है कि जस्टिस खन्ना के पास पीपीएफ में राशि जस्टिस गवई की तुलना में 94 प्रतिशत अधिक है।
  3. ऐसे ही जस्टिस खन्ना के जीपीएफ खाते में 1 करोड़ 77 लाख रुपए हैं। वहीं जस्टिस गवई के जीपीएफ खाते में केवल 35 लाख 86 हजार रुपए हैं। यानी जस्टिस खन्ना से पांच गुना कम।
  4. दोनों न्यायाधीशों के ज्वाइंट फेमिली ऐसेट (पत्नी व नाबालिग बच्चे) का आंकड़ा भी दिलचस्प है। जस्टिस खन्ना और उनकी पत्नी ने म्युचुअल फंड और शेयर मार्केट में 1 करोड़ 39 लाख रुपए का निवेश कर रखा है। जबकि इस मामले में जस्टिस गवई और उनकी पत्नी शून्य की हैसियत रखते हैं।
  5. जस्टिस खन्ना की पत्नी का पर्सनल प्रोविडेंट फंड में 64 लाख 5 हजार रुपए हैं, जबकि जस्टिस गवई की पत्नी के पीपीएफ खाते में केवल 6 लाख 59 हजार रुपए हैं। साफ है कि जस्टिस गवई की पत्नी का यह फंड जस्टिस खन्ना की पत्नी की तुलना में सिर्फ 10 प्रतिशत है।
  6. जस्टिस खन्ना की पत्नी का फिक्स डिपोजिट 24 लाख रूपए है और जस्टिस गवई की पत्नी का फिक्स डिपोजिट शून्य है।
  7. जस्टिस खन्ना के पास 250 ग्राम सोना है। जस्टिस गवई के पास निजी तौर पांच लाख 25 हजार 859 रुपए के मूल्य के सोना और अन्य जेवरात हैं। यदि सभी सोने के भी हुए तो करीब 50 ग्राम ही होगा।
  8. जस्टिस खन्ना की पत्नी के पास 700 ग्राम सोना और डायमंड हैं। वहीं जस्टिस गवई की पत्नी के पास 750 ग्राम सोना है। सिर्फ इसी आंकड़े के हिसाब से जस्टिस गवई की पत्नी को जस्टिस खन्ना की पत्नी की तुलना में अधिक संपत्तिशाली कहा जा सकता है। लेकिन इसमें एक दिक्कत यह है कि जस्टिस खन्ना की पत्नी के पास डायमंड है, लेकिन जस्टिस गवई की पत्नी के पास नहीं।
  9. जस्टिस खन्ना के पास पांच किलो चांदी है। वहीं जस्टिस गवई ने चांदी का जिक्र नहीं किया है।
  10. रियल स्टेट (अचल संपत्ति) के मामले में दोनों न्यायाधीशों के बीच तुलना करना मुश्किल है, क्योंकि अचल संपत्तियों की कीमत का उल्लेख नहीं किया गया है। जस्टिस खन्ना के पास दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर से सटे कॉमनवेल्थ खेल गांव में 2446 वर्ग फुट फ्लैट है। उनके पास दक्षिणी दिल्ली में एक डीडीए फ्लैट है। इसके अलावा जस्टिस खन्ना के पास गुरुग्राम (गुडगांव) के शीशपाल विहार के 2016 वर्ग फुट के फ्लैट में 56 प्रतिशत का शेयर है। उनके पिता दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश देवराज खन्ना के डलहौजी, शिमला अवस्थित मकान में भी उनका हिस्सा है।
  11. जस्टिस गवई के पास महाराष्ट्र के अमरावती में पिता से विरासत में मिला एक आवासी मकान है। इसके अलावा दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी और मुंबई के बांद्रा में एक अपार्टमेंट है। साथ ही, महराष्ट्र के अमरावती और नागपुर में उनके पास कृषि भूमि है।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना व जस्टिस बी.आर. गवई

अचल संपत्ति के मामले में दोनों न्यायाधीशों के बीच अंतर साफ तौर पर नहीं दिखता। यह ध्यातव्य है कि जस्टिस गवई के पिता महाराष्ट्र के बड़े दलित राजनेता रहे। वे रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के नेता थे और कांग्रेस से उनके नजदीकी संबंध थे। अपने राजनीतिक कैरियर में वे विधायक, सांसद और राज्यपाल भी रहे थे।

अब यदि अचल संपत्तियों के आंकड़ों को छोड़ दें तो अन्य आंकड़ों को देखने पर साफ पता चलता है कि जस्टिस गवई की आर्थिक हैसियत जस्टिस खन्ना की तुलना में बहुत कम है। हालंकि इससे दोनों की आर्थिक हैसियत पर कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता है कि जस्टिस खन्ना पिछले 6 महीने (11 नवंबर, 2024 से 13 मई, 2025 तक) से मुख्य न्यायाधीश हैं और जस्टिस गवई 14 मई को मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। जाहिर तौर पर जस्टिस खन्ना ने यह धन-दौलत, सोना-चांदी और मकान इन 6 महीनों में नहीं ही बनाई होगी और न ही जस्टिस गवई अपने मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल में कोई अपार संपत्ति बना लेंगे।

इन आंकड़ों पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। वजह यह कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कम-से-कम लीगल संपत्ति को छुपाकर दिखाना मुश्किल है, क्योंकि ऐसी गलती बहुत भारी पड़ सकती है। खोजी पत्रकार और मीडिया उसे तुरंत ही सामने ला देंगे। कारण यह कि घोषित संपत्ति की जांच-पड़ताल आसानी से की जा सकती है।

दोनों न्यायाधीशों के धन-दौलत और सोना-चांदी की तुलना तथा इनके बीच के अंतर की तह में वर्ण-जाति में पैदा बुनियादी खाई है। स्वाभाविक है कि इसमें ऐतिहासिक तौर पर किसी खास विशेषाधिकार वर्ण-जाति में पैदा होने से धन-दौलत पर नियंत्रण का विशेषाधिकार हासिल होता है। इसके विपरीत किसी वंचित समाज में पैदा होने से ऐतिहासिक तौर पर धन-दौलत संबंधी पारिवारिक-सामाजिक वंचना भी जुड़ी होती है।

यह सिर्फ दो न्यायाधीशों/व्यक्तियों के बीच धन-दौलत, जमीन-जायदाद और सोना-चांदी की तुलना नहीं है। वस्तुत: ये दो सामाजिक वर्ग-समूहों की धन-संपत्ति के ऐतिहासिक संबंधों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारतीय समाज के वर्ण-जातिवादी सामाजिक श्रेणीक्रम आर्थिक श्रेणीक्रम को भी सामने लाता है, जो वर्तमान का भी उतना ही बड़ा सच है।

भारत में समान पद पर पहुंचने का मतलब यह नहीं है कि द्विज-सवर्ण और दलित समान हो जाते हैं। जिन समाजों से वे आएं हैं उनके बीच की आर्थिक-सामाजिक खाई, उन व्यक्तियों की बीच भी मौजूद रहती है। यही आर्थिक खाई जस्टिस खन्ना और जस्टिस गवई के मामले में दिखाई दे रही है। यह व्यक्तियों के बीच की खाई नहीं है, यह सामाजिक खाई की अभिव्यक्ति है, जो आज भी भारतीय समाज में द्विज-सवर्णों और दलितों के बीच मौजूद है।

(आलेख में आंकड़े 7 मई, 2025 को प्रकाशित ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित रपट और सुप्रीम कोर्ट के वेबसाइट से उद्धृत हैं)

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

डॉ. सिद्धार्थ रामू

डॉ. सिद्धार्थ रामू लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

संबंधित आलेख

‘गया’ को ‘गया जी’ कहना राजनीति से प्रेरित हो सकता है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता : राजेंद्र प्रसाद सिंह
‘गया’ को अगर आप ‘गया जी’ बनाते हैं तो बोधगया का भी नाम या तो सम्राट अशोक के शिलालेख पर जो साक्ष्य है, उसके...
‘जाति नहीं, धर्म पूछा था’, किससे कह रहे हैं भाजपाई?
सुरक्षा चूक और आतंकवाद के खात्मे की दावे की पोल खुलने के बाद भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोगों ने सामाजिक न्याय तथा धर्मनिरपेक्षता...
देश में युद्ध की परिस्थितियां रहीं, इसलिए जातिगत जनगणना के सवाल पर हम अलर्ट मोड में हैं, चुप नहीं बैठेंगे : मनोज झा
ट्रंप के कहे का प्रतिकार तो हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी की ओर से होना चाहिए। बिना देर किए प्रतिकार होना चाहिए। क्योंकि यह सरकारों...
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का लक्ष्य शिक्षा का आर्यकरण करना है
आर्य-द्रविड़ संघर्ष आज भी जारी है। केंद्र सरकार की शैक्षणिक नीतियां इसका उदाहरण हैं। नई शिक्षा नीति इस संघर्ष का एक हथियार है और...
भारतीय संविधान, मनुस्मृति और लोकतंत्र
“दंगे को छोड़ कर अन्य सभी अवसरों पर प्रत्येक जाति अपने को दूसरी जातियों से अलग दिखाने और रहने का प्रयास करती है।” आंबेडकर...