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सम-सामयिकी

आरएसएस का सीएमसी, वेल्लोर जैसा अस्पताल क्यों नहीं? कांचा काइतैय्या के जीवन से सबक
स्वाधीनता के बाद अगर किसी हिंदुत्ववादी ताकत का हमारे देश पर राज कायम हो गया होता और उसने सीएमसी को बंद करवा दिया होता तो कांचा काइतैय्या अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते। हाल में...
बिहार विधानसभा चुनाव : सामाजिक न्याय का सवाल रहेगा महत्वपूर्ण
दक्षिणी प्रायद्वीप में आजादी के पहले से आरक्षण लागू है और 85 फ़ीसदी तक इसकी सीमा है। ये राज्य विकसित श्रेणी में आते हैं। जबकि उत्तर भारत की हिंदी पट्टी में जहां आरक्षण आजादी के...
जनसंघ के किसी नेता ने नहीं किया था ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े जाने का विरोध : सिद्दीकी
1976 में जब 42वां संविधान संशोधन हुआ तब चाहे वे अटलबिहारी वाजपेयी रहे या फिर आडवाणी या अन्य बड़े नेता, किसी के मुंह से हमने नहीं सुना कि संविधान के इन दो पायों – ‘धर्मनिरपेक्षता’...
जेर-ए-बहस : श्रम-संस्कृति ही बहुजन संस्कृति
संख्या के माध्यम से बहुजन को परिभाषित करने के अनेक खतरे हैं। इससे ‘बहुजन’ को संख्याबल समझ लिए जाने की संभावना बराबर बनी रहेगी। वह भीड़ को समाज का दर्जा देने के बराबर होगा और...
‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक...
दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के ऊपर पेशाब : राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना है वजह
तमाम पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियां सर चढ़कर बोल रही हैं। शक्ति के विकेंद्रीकरण की ज़गह शक्ति के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति...
नीतीश की प्राथमिकता में नहीं और मोदी चाहते नहीं हैं सामाजिक न्याय : अली अनवर
जातिगत जनगणना का सवाल ऐसा सवाल है कि आरएसएस का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का जो गुब्बारा है,...
मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह...
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