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सम-सामयिकी

जोतीराव फुले और हमारा समय
असहिष्णुता और प्रतिगामी सोच के इस दौर में फुले को पढ़ना और समझना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव हो सकता है। हाल में ‘फुले’ फिल्म की रिलीज़ को लेकर हुआ विवाद इसका एक उदाहरण है।...
सामाजिक न्याय का पेरियारवादी मॉडल ही समयानुकूल
आमजनों को दोष देने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि उनके दलित-ओबीसी नेताओं ने फुले-आंबेडकरवाद को ब्राह्मणों और मराठों के यहां गिरवी रख दिया है। ब्राह्मणी खेमा इस तरह के एकतरफा सांस्कृतिक अभियान की वजह...
एक नहीं, हजारों डॉ. रोज केरकेट्टा की आवश्यकता
डॉ. रोज केरकेट्टा के भीतर सवर्ण समाज के ज़्यादातर प्रोफेसरों की तरह ‘सभ्य बनाने’ या ‘सुधारने’ की मानसिकता नहीं थी। वे केवल एक शिक्षिका नहीं, बल्कि एक पीढ़ी की प्रतिनिधि स्वर बनकर हमारे बीच उपस्थित...
महाबोधि विहार मुक्ति आंदोलन : सिर्फ फेसबुक पर ही मत लिखिए, आंदोलन में शामिल भी होइए
इस आंदोलन का एक यह भी दुखद पहलू है कि जिस बिहार की धरती पर ब्राह्मणवादियों का आजादी के सात-आठ दशक बाद भी अभी तक कब्जा बना हुआ है, उसी बिहार में भगवान बुद्ध और...
‘शरबत जिहाद’ : भारतीय मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की ज़मीन तैयार करता विमर्श
यह महज संयोग नहीं है कि केंद्र सरकार द्वारा संसद में बहुमत के बल पर वक्फ संशोधन विधेयक...
राजस्थान : मंदिर प्रवेश करने पर टीकाराम जूली का अपमान क्यों?
जाति, हमारी सोच से ज्यादा शोषक बन चुकी है‌। इसलिए, इस पर बुनियादी रूप से दोबारा पुनर्विचार किया...
संसद मार्ग में आंबेडकर मेला : दिखी सरकारी उपेक्षा और नजर आया मीडिया का पक्षपात
स्थानीय प्रशासन इस मेले को संसद मार्ग के बजाय पंत मार्ग पर आयोजित कराने के पक्ष में था...
बिहार में कांग्रेस : दलित-अतिपिछड़ों की पक्षधरता या महज दिखावा?
सामाजिक न्याय की बात कर रही कांग्रेस में बदलाव के बाद भी 40 जिला अध्यक्षों में 14-15 सवर्ण...
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