दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र का विकास दलित समाज, उसकी चेतना, संस्कृति और विचारधारा पर निर्भर करता है, जो एक लंबी प्रक्रिया में होते हुए धीरे-धीरे हो रहा है। यह वर्तमान के दलित रचनाकारों की रचनाओं...
सभी मुस्लिम महिलाओं को लाचार और बतौर वस्तु देखी जाने वाली बताने की बजाय, लेखिका हमारा परिचय ऐसी महिला किरदारों से कराती हैं जो मजबूत हैं, जिनके तेवर विद्रोही हैं, जो अन्याय को चुनौती देती...
पितृसत्ता की जड़ें समाज के हर वर्ग में अत्यंत गहरी हो चुकी हैं। फिर चाहे वह प्रगतिशीलता के आवरण में लिपटा तथाकथित प्रगतिशील सभ्य समाज हो या स्त्री/पुरुष समानता की पैरवी करने वाली बुद्धिजीवी जमात।...
स्वभाव से मृदु भाषी रहीं डॉ. रोज केरकेट्टा ने सरलता से अपने लेखन और संवाद में खड़ी बोली हिंदी को थोड़ा झुका दिया था। उसे अपने क्षेत्र की बोलियों की मिठास से जोड़ कलकल बहती...