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ब्राह्मणों को लगा कि उन्हें कटघरे में खड़ा किया गया है। बिहार की राजधानी पटना जहां कथित तौर पर समाजवादी विचारधारा के नीतीश कुमार की सरकार है, फ़िल्म दूसरे दिन ही हटा दी गई। दूसरी ओर प्रबुद्ध वर्ग के दलित चिंतकों ने दलित उद्धारक के रूप में ब्राह्मण नायक को महिमामंडित करने का विरोध किया। सुधा अरोड़ा की समीक्षा
19 सितंबर 2008 को दिल्ली पुलिस ने बाटला हाउस इनकाउंटर को अंजाम दिया था। इस घटना में आजमगढ़ के मो. आतिफ और मो. साजिद मारे गए थे। इस इनकाउंटर का औचित्य अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है। इस बीच निखिल आडवाणी निर्देशित फिल्म ‘बाटला हाउस’ 15 अगस्त को रिलीज किये जाने की सूचना है। फिल्म का विरोध कर रहे हैं संजरपुर के ग्रामवासी
बिहार के गणितज्ञ आनंद कुमार के जीवन पर बनी यह फिल्म समाज के वंचित समाज में शिक्षा के प्रति बढ़ रही जागरूकता और दावेदारी को पर्दे पर दिखाती है। आनंद इसी वंचित तबके का प्रतिनिधित्व करते हैं
Atif Rabbani reviews the film. He commends Anubhav Sinha, the director of Article 15, for the raw depiction of social realities, while arguing that the deprived themselves will have to come forward to put an end to casteism and other societal sores
लेखक आतिफ रब्बानी बता रहे हैं कि ‘आर्टिकल 15’ फिल्म के निर्देशक अनुभव सिन्हा ने समाज की सच्चाईयों को प्रस्तुत किया है। वे यह भी कहते हैं कि जातिवाद और अन्य सामाजिक विसंगतियों के खात्मे के लिए वंचितों को ही आगे आना होगा
The portrayal of the idealism and humanism of the downtrodden in these films leaves more than a tingle of wellness, writes Lalitha Dhara
लोकसभा चुनाव में अब केवल कुछ ही महीने का फासला है। फिल्मों के जरिए मतदाताओं को प्रभावित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। सवाल उठता है कि ये प्रयास कितने जनपक्षीय हैं। एक सवाल यह भी है कि एक का नकारात्मक चित्रण कर खुद को श्रेष्ठ साबित करने की यह होड़ भविष्य में कौन सा रूप अख्तियार करेगी
बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित किताबों को ऑनलाइन खरीदना और आसान हो गया है। अब आप अमेजन और फ्लिपकार्ट के जरिए अपने मोबाइल अथवा लैपटॉप की सहायता से बस कुछ सेकेंडों में ही खरीद सकते हैं
The film, starring Aamir Khan and Amitabh Bachchan, is based on ‘Confessions of a Thug’, an 1839 novel by Philip Meadows Taylor. It tells the story of the courage and the valiant past of the ten crore members of denotified and nomadic tribes of India. They were branded as criminal tribes by the British. They are struggling for their identity and rights even in independent India. Janardan Gond explains
आमिर खान और अमिताभ बच्चन द्वारा अभिनित यह फिल्म ‘फिलिप मेडोव टेलर’ द्वारा 1839 में लिखे गए उपन्यास ‘कन्फेशंस ऑफ ए ठग’ पर आधारित है। यह देश के दस करोड़ विमुक्त-धुमंतू जातियों के साहस व शौर्यपूर्ण अतीत का चित्रण करता है, जिन्हें पहले अंग्रेजों ने क्रिमिनल ट्राइब की संज्ञा दी और जो स्वतंत्रता के बाद भी अपनी पहचान और अधिकारों के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। जर्नादन गोंड का लेख :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
अामतौर पर पीरियड फिल्में यानी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनाई जाने वाली फिल्मों में बहुजन खलनायक होते हैं। लेकिन, अब एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है। हाल ही में ‘काला’ फिल्म बनाकर बहुजनों के संघर्ष को बड़े पर्दे पर दिखाने वाले पा. रंजीत अब धरती आबा बिरसा मुंडा पर फिल्म बनाएंगे। फारवर्ड प्रेस की खबर :
The film, starring Aamir Khan and Amitabh Bachchan, is based on Confessions of a Thug, an 1839 novel by Philip Meadows Taylor. It tells the story of the courage and the valiant past of ten crore members of denotified-nomadic tribes of India. They were branded as criminal tribes by the British. They are struggling for their identity and rights even in Independent India. Janardan Gond explains