इस चुनाव में जाति ही केंद्रीय विषय रही। जाति की पार्टी, पार्टी की जाति, जाति का उम्मीदवार और उम्मीदवार की जाति के आसपास पूरा चुनाव अभियान घूमता रहा। इस चुनाव में कोईरी की तरह भूमिहार...
वर्ष 1990 में जब बिहार के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक मोड़ आता है और लालू यादव सत्ता की बागडोर संभालते हैं तो विधान सभा की सामाजिक संरचना भी उलट जाती है। पहली बार पिछड़े विधायकों...
ललन सिंह जब अकड़-अकड़ कर मोकामा को अनंतमय कर देने और विरोधी वोटरों को घरों में बंद कर देने की बात कर रहे थे तब ऐसा लग रहा था कि घोड़े पर सवार आक्रांताओं की...
बिहार का अच्छा होना या देश का अच्छा होना तब तक हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता जब तक हमारा समाज आगे नहीं बढ़ेगा, क्योंकि जब तक समाज आगे नहीं जाएगा, तब तक हमारी हालत...