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भालदेव-बलीराजा की स्मृति में उत्सव

बलीराजा के बैल के गोबर से बनी प्रतिमा, जिसे भालदेव कहा जाता है, गोंडूर गांव के प्रगतिशील किसान विलासराव माली के निवास पर स्थापित की गई

“इस भालदेव उत्सव में हमने बलीराजा के जीवन और उनके त्याग को याद किया। यह कृषक संस्कृति का उत्सव है। आज भी किसानों को बलीराजा के नाम से पुकारा जाता है। बलीराजा उन विदेशी आर्यों से लड़ते हुए मारे गए जो किसानों को लूट रहे थे। किसानों को इतिहास के इस सुनहरे पृष्ठ से प्रेरणा लेनी चाहिए”। ये शब्द थे महाराजा सत्यजीत सिंह राजे गायकवाड़ के, जो उन्होंने भालदेव उत्सव के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहे। एक-दिवसीय भालदेव-बलीराजा उत्सव महाराष्ट्र के धुले जिले के गोंडूर गांव में 12 सितम्बर को मनाया गया। इस अवसर पर प्रोफेसर श्रवण देवरे द्वारा बलीराजा पर लिखी गई पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया।

बलीराजा के बैल के गोबर से बनी प्रतिमा, जिसे भालदेव कहा जाता है, गोंडूर गांव के प्रगतिशील किसान विलासराव माली के निवास पर स्थापित की गई। विलासराव माली को सरकार की ओर से ‘उद्यान पंडित’ व ‘वामाश्री’ सम्मान प्रदान किए गए हैं। हर वर्ष उनका परिवार भालदेव की मूर्ति स्थापना का उत्सव मनाता है। यह परंपरा हजारों साल पुरानी है। यह उत्सव सात दिनों तक चलता है।

वरिष्ठ ओबीसी नेता दादाजी पवार ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। भालदेव के इतिहास पर प्रोफेसर देवरे द्वारा लिखित पुस्तक का जाने-माने ओबीसी पत्रकार योगेन्द्र जूनागड़े ने लोकार्पण किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जूनागड़े ने कहा, “हम सब अपने पूर्वजों का इतिहास भुला चुके हैं। बलीराजा हमारे पूर्वज थे। उन्होंने किसानों की खातिर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इस पुस्तक से बलीराजा के इतिहास को पुनर्जीवन मिलेगा। प्रोफेसर श्रवण देवरे को बलीराजा के महान इतिहास पर अनुसंधान करने के लिए तात्या साहेब महात्मा जोतिराव फुले और प्राचीन इतिहास के विद्वान कामरेड शरद पाटिल से प्रेरणा मिली। उन्हें यहां रुकना नहीं चाहिए। उन्हें कुलमाता, नवरात्रा, होली आदि त्यौहारों के इतिहास की भी खोज-खबर लेनी चाहिए”।

अपने अध्यक्षीय भाषण में दादाजी पवार ने कहा “बलीराजा ने आर्य वामन के साथ युद्ध में अपनी जान गंवा दी और उन्हें दफ्न कर दिया गया। इस कहानी को कई अलग-अलग जनश्रुतियां अलग-अलग ढंग से कहती हैं। भालदेव और बालीदेव एक ही हैं और यह बलीराजा का उत्सव है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में अपने पुत्रों, भाईयों और पतियों के सिर के चारों ओर दीपक फिराते हुए माताएं-बहनें प्रार्थना करती हैं, “इदा पीदा जाओ बालिच्य राज्या येवो”(आर्यों द्वारा खड़ी की गईं सारी मुसीबतें गायब हो जाएं और बलीराजा का राज आए)। तात्यासाहेब महात्मा जोतिराव फुले ने अपनी पुस्तक ‘गुलामगिरी’ में आर्य वामन और बलीराजा के बीच हुए भीषण युद्ध का वर्णन किया है, जिसमें बलीराजा को धोखे से मार डाला गया।

कार्यक्रम की शुरुआत में विलासराव माली ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर राजेन्द्र हाले का एकमत से मजूर सहकारी संघ की महाराष्ट्र कार्यसमिति का अध्यक्ष चुने जाने पर अभिनंदन किया गया। मराठा सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष भाऊसाहेब देवरा, पूर्व मंत्री विजय नवल पाटिल, गुलाब पाटिल, वरिष्ठ नागरिक रंगराव अन्ना कोली, सिद्धार्थ जाधव, शिरपुर के पूर्व मेयर प्रमोद चव्हाण, संभाजी ब्रिगेड के अनिल पाटिल आदि उपस्थित थे।

धन्यवाद ज्ञापन योगेश माली व स्वप्निल गोंडारकर ने किया। गोंडूर क्षेत्र के किसान और खेतिहर मजदूर बड़ी संख्या में कार्यक्रम में उपस्थित थे।

(फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर 2013 अंक में प्रकाशित)


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