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इतिहास व साहित्य के पुनर्लेखन का आह्वान

"आज भारत के विश्वविद्यालयों में वैदिक सभ्यता नामक डुप्लीकेट भारतीय इतिहास पढ़ाया जा रहा है। वैदिक सभ्यता नहीं, संस्कृति रही है, जिसका कोई ठोस तथ्य व आधार नहीं है"

IMG_2339‘आज भारत के विश्वविद्यालयों में वैदिक सभ्यता नामक डुप्लीकेट भारतीय इतिहास पढ़ाया जा रहा है। वैदिक सभ्यता नहीं, संस्कृति रही है, जिसका कोई ठोस तथ्य व आधार नहीं है.’ ये बातें प्रसिद्ध आलोचक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने पटना के गांधी संग्रहालय में 17 मई को ‘बागडोर’ द्वारा आयोजित संगोष्ठी के अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कही। उन्होंने इतिहास लेखन और साहित्य लेखन के पूर्वाग्रहों को विस्तार के साथ अपने वक्तव्य में विश्लेषित किया।

‘बहुजन साहित्य, समाज व संस्कृति’ विषयक इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि थे बिहार के वित, वाणिज्यकर एवं उर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव। यादव ने कहा कि कहा कि राजनीति सत्ता परिवर्तन के लिए होती है। समाज परिवर्तन के लिए आंदोलन की आवश्यकता पहले भी थी और आज भी है। भारत की संस्कृति पर कटाक्ष करते हुए ऊर्जा मंत्री ने कहा कि भारत की संस्कृति ‘संत, सामंत और ढोंगियों’ की संस्कृति रही है।

इस मौके पर फारवर्ड प्रेस के बहुजन साहित्य विशेषांक का लोकार्पण भी हुआ।

दलित लेखक बुद्धशरण हंस ने कहा कि बहुजन समाज जब तक धार्मिक आडंबरों से मुक्त नहीं होगा, उसका कल्याण संभव नहीं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में फुले, आंबेडकर से लेकर जगदेव प्रसाद के अर्जक संघ जैसी धाराएं रही हैं लेकिन दुखद है कि समाज में उनका प्रभाव क्षीण हुआ है। पत्रकार श्रीकांत ने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि जिस त्रिवेणी संघ के काम को उन्होंने सामने लाया, उसे साहित्य के मोर्चे पर प्रमोद रंजन जैसे लेखक आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जातियां जड़ नहीं अपितु बहुत ही गतिशील इकाई हैं।

संगोष्ठी को आलोचक महेंद्र सुमन, लेखक हसन इमाम, प्रो. सईद आलम, पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य जगनारायण सिंह यादव, पत्रकार हेमंत कुमार व अशोक यादव, सामाजिक कार्यकर्ता संतोष यादव ने भी संबोधित किया। संगोष्ठी का संचालन अरुण नारायण और धन्यवाद ज्ञापन अरुण कुमार ने किया। कार्यक्रम में राज्य के विभिन्न हिस्सों से आये के लगभग दो सौ लेखक, बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।

फारवर्ड प्रेस के जून, 2015 अंक में प्रकाशित

 

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एफपी डेस्‍क

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