सुषमा असुर ने कोलकाता के एफई ब्लॉक रेसिडेंट्स एसोसिएशन द्वारा इस माह नवरात्रि व दुर्गा पूजा के अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने के निमंत्रण को पहले स्वीकार किया और फिर अस्वीकार। परन्तु अंततः उन्होंने कोलकाता जाने का निर्णय लिया। वे झारखण्ड के दूरस्थ नेत्रहाट इलाके से, अपने सात-सदस्यीय दल के साथ कोलकाता पहुंचीं। टी.वी.न्यूज़ चैनलों में, सुषमा असुर और उनके दल को पंडाल के बाहर एक पारंपरिक मातमी धुन पर नृत्य करते दिखाया गया। पंडाल के अन्दर थी दुर्गा की मूर्ति, जिसमें वे महिषासुर का वध कर रहीं थीं।
सुषमा ने एन.डी.टी.वी. को बताया, “मैं पंडाल के अन्दर जाकर अपनी परंपरा नहीं तोड़ूगीं। यह हमारे लिए मातम का समय है, जश्न का नहीं।” असुर, महिषासुर को अपना पूर्वज और नायक मानते हैं। पहले सुषमा कोलकाता जाने के बारे में असमंजस में थीं, क्योंकि समाचारपत्रों में यह प्रकशित हुआ था कि वे 7 अक्टूबर को फूल बगान सर्बोजोनिन दुर्गा पूजा समिति नामक संस्था द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा समारोह का उद्घाटन करेंगीं। परन्तु साल्ट लेक के एफई ब्लॉक के सुभाष रॉय और अन्यों ने जब बार-बार उन्हें टेलीफोन व ईमेलों के ज़रिये यह भरोसा दिलाया कि फूल बगान समिति से उनका कोई लेनादेना नहीं है और यह भी कि सुषमा और उनके दल से दुर्गा पूजा में भाग लेने की अपेक्षा नहीं की जा रही है, तो उनकी आशंकाएं दूर हो गयीं। वे अपने दल के साथ बस से कोलकाता के लिए रवाना हुईं। सुषमा ने कहा कि यह उनके लिए एक मौका है जब वे कोलकाता के लोगों को बता सकतीं हैं कि ‘असुर ‘राक्षस’ नहीं हैं, बल्कि उनके जैसा एक समुदाय हैं।
आयोजकों में से एक सुभाष रॉय, उर्जा और खनन क्षेत्रों के इंजीनियरिंग परामर्शदाता हैं और इस्पात व अल्युमीनियम संयत्रों और खानों की अपने यात्राओं के दौरान उनका ‘कुछ-कुछ साबका’, झारखण्ड के मूलनिवासी समुदायों से पड़ता रहता था। सुषमा के कोलकाता आने से वे खुश हैं। वे कहते हैं, “इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। लोगों के मन में असुरों के बारे में कई भ्रांतियां थीं। वे सचमुच उन्हें ‘राक्षस’ समझते थे। जब लोगों ने उन्हें आमने-सामने देखा, उनसे बातचीत की, उनके साथ खाना खाया, तब उन्हें समझ में आया कि वे राक्षस नहीं हैं। यही संदेश हम देना चाहते थे और हम इसमें सफल रहे”।
एफई ब्लॉक के रहवासियों ने अपने मेहमानों को कोलकाता के दर्शनीय स्थल घुमाने की व्यवस्था की और रांची की उनकी वापसी यात्रा के लिए एक वातानुकूलित बस उपलब्ध करवाई। उन्होंने पुराने कपड़े और कुछ धन, जिसमें असुरों के गाँव के विकास के लिए एक प्रतीकात्मक राशि शामिल थी, सुषमा और उनके दल को सौपी। रहवासियों ने यह भी निश्चय किया है कि वे एक असुर लड़की की शिक्षा की व्यवस्था आपस में चंदा इकठ्ठा कर करेगें। उन्होंने समुदाय के अन्य सदस्यों की मदद करने की इच्छा भी व्यक्त की।
एफई ब्लॉक के रहवासियों के मन में इस आयोजन का विचार कैसे आया? दरअसल, सुभाष राय ने पहले से ही असुर जनजाति के बारे में सुन रखा था। “वे इस धरती के मूलनिवासी हैं। हम जानते हैं कि इतिहास क्या कहता है परन्तु जब हम बहुत पीछे जाते हैं तो शायद इतिहास हमें जो बताता है वह पूरी तरह से सच नहीं होता। वह निश्चय ही एक बहुत बहादुर कुल या वंश था। महिषासुर उनके कुल का नेता या उनके लिए भगवान की तरह था। हमारे ग्रन्थ कहते हैं कि उसका विनाश करने के लिए तीन देवताओं को मिलकर आदिशक्ति का सृजन करना पड़ा। इससे यह साफ़ है कि महिषासुर बहुत शक्तिशाली रहा होगा”, वे कहते हैं। परन्तु अब असुर लुप्त होने की कगार पर हैं। एफई ब्लॉक के रहवासी, असुरों की भलाई के लिए कुछ करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने दुर्गा पूजा का अवसर चुना।
सुषमा, “असुर झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखरा” की सदस्य हैं। उनकी साथी वंदना टेटे, कोलकाता से आए निमंत्रण को स्वीकार करने के सुषमा के निर्णय से सहमत नहीं थीं। जैसा कि फॉरवर्ड प्रेस ने पहले लिखा था, वंदना और सुषमा ने एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर, इस निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था। जब सुषमा कोलकाता में थीं तब वंदना ने रांची में कहा, “उन्हें वहां नहीं जाना था, विशेषकर इस वक्त, क्योंकि अगर वे पंडाल में जाने से इंकार भी कर देंगीं तब भी अभी वहां जो वातावरण है, उसमें उनकी कोई नहीं सुनेगा”।
दुसरी ओर, एफई ब्लॉक रेसिडेंट्स एसोसिएशन को आशा है कि इस आयोजन से कोलकाता के लोगों में असुर समुदाय के प्रति सौहार्द और प्रेम का भाव पनपेगा। प्रश्न यह है कि यह सौहार्द और प्रेम कहाँ तक जायेगा? क्या कोलकातावासी यह निश्चय करेगें कि पंडालों में महिषासुरमर्दन नहीं दिखाया जायेगा?
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सुभाष राय अभिभूत हैं कि असुरों का दल नवरात्रि – जो उनके लिए मातम का समय है – के दौरान कोलकाता आया। असुर यह मानते हैं कि नवरात्रि के दौरान महिषासुर को धोखे से मारा गया था और इस अवधि में वे अपने घरों से बाहर भी नहीं निकलते। क्या इसी तरह, कोलकातावासी भी यह कोशिश करेंगे कि वे पंडालों में दुर्गा की ऐसी मूर्तियाँ स्थापित करें, जिनमें उन्हें महिषासुर का वध करते नहीं दिखाया गया हो? सुभाष रॉय कहते हैं, “नहीं, मैं ऐसा नहीं चाहूँगा। बिलकुल नहीं”।
शायद वंदना टेटे ठीक कह रहीं थीं। जो लोग हमें राक्षस समझते थे, उन्हें “यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि हम उनके जैसे ही हैं”, उन्हें हम पर दया आयी, परन्तु उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी। झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखरा, जो सिमटते जा रहे असुर समुदाय की संस्कृति के संरक्षण और दस्तावेजीकरण के लिए काम कर रहा है, १८ अक्टूबर को सुषमा से यह स्पष्टीकरण मांगेगा कि उन्होंने निमंत्रण क्यों स्वीकार किया। अगर यह पाया गया कि सुषमा ने संगठन के सिद्धांतों की अवहेलना की है, तो उन्हें संगठन छोड़ने के लिए कहा जा सकता है।
महिषासुर से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए ‘महिषासुर: एक जननायक’ शीर्षक किताब देखें। ‘द मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन, वर्धा/ दिल्ली। मोबाइल : 9968527911ऑनलाइन आर्डर करने के लिए यहाँ जाएँ : महिषासुर : एक जननायकइस किताब का अंग्रेजी संस्करण भी ‘Mahishasur: A people’s Hero’ शीर्षक से उपलब्ध है।