नई दिल्ली, 13 अक्टूबर 2016 : उत्तर भारत के लगभग 1000 स्थानों पर इस साल महिषासुर दिवस मनाए जाने की सूचना है। अखबारों के स्थानीय संस्करणों में इनकी खबरें प्रकाशित हो रही हैं। लेकिन समाज में चल रही इस विराट हलचल से प्राय: कथित ‘राष्ट्रीय मीडिया’ निरपेक्ष है।
महिषासुर दिवस के आयोजन अतिरिक्त अखबारों के विभिन्न राज्यों के संस्करणों में एक अन्य खबर भी तैर रही है, जिससे पता चलता है कि देवी दुर्गा को कथित तौर पर अपमानिल करने वाले एक व्हाट्स एप्प मैसेज को लेकर कई जगहों पर तनाव की स्थिति पैदा हो गयी है। कुछ जगहों पर आगजनी हुई है, शहर बंद रहे हैं, धारा 144 लगाई गयी है तथा अनेक जगहों पर इस व्हाट्स एप मैसेज को प्रसारित करने वालों पर उच्च जातियों के संगठनों ने एफआईआर दर्ज करवायी है। दूसरी ओर, छत्तीसगढ के एक मामले में महिषासुर दिवस के समर्थकों ने भी अपने नायक के अपमान के विरोध में दुर्गा-भक्तों पर मुकदमा दर्ज करवाया है, जिसमें हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देने के इंकार कर दिया है।
गौरतलब है महिषासुर दिवस शरद पूर्णिमा को मनाया जाताा है, जो इस वर्ष 15 अक्टूबर को है, लेकिन कुछ जगहों पर इसकी तारीखें कुछ दिन आगे-पीछे भी रखी जाती हैं। महिषासुर दिवस का आयोजन करने वालों पर किसी प्रकार के मुकदमा या पुलिस द्वारा उत्पीडन की कोई सूचना अभी तक नहीं मिली है। विभिन्न जगहों के आयोजकों ने अपने समर्थकों से संयम से काम लेने की अपील की है।
हम इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट महिषासुर दिवस के आयोजन के बाद प्रकाशित करेंगे। आइए, तब तक हम स्थानीय अखबारों में छपी खबरों के माध्यम से एक झलक देखें कि इस मामले में क्या-क्या चल रहा है :
कई जगहों पर स्मरण किए जा रहे महिषासुर
चर्चा मेंं असुर जनजाति
हलांकि महिषासुर आंदोलन का सीधे तौर पर ‘असुर’ जनजाति से उतना जुडाव नहीं है, जितना कि गोंड, संथाल, कोया व अन्य जनजातियों से। वास्तव में एक सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में इसका गहरा जुडाव आदिवासियों के अतिरिक्त अन्य पिछडा वर्ग और अनुसूचित जातियों से है, जो न सिर्फ अपनी घरेलु पंरपरओं में असुर संस्कृति के अक्श के पाते हैं, बल्कि इसे ब्राह्मण-संस्कृति को चुनौती देने का माध्यम भी मानते हैं। अनेक ऐतिहासिक और भाषावैज्ञानिक साक्ष्य तो इस ओर इशारा करते हैं कि पेशागत रूप से महिषासुर उन पिछडी जातियों से भी संबद्ध रहे हैं, जो कृषि अथवा पशुपालन की ओर उन्मुख हुए।
लेकिन हमारा ‘भद्र लोक’ और मीडिया अपनी रूचि के अनुरूप पिछले कुछ समय से झारखंड में निवास करने वाली आदिम जनजाति ‘असुर’ के सिंह, लंबे नाखून और आदमी को जिंदा चबा जाने वाले बडे-बडे दांत ढूढ रहा है। इस साल कोलकाता में दुर्गा पूजा के एक आयोजक ने कुछ इन्हीं कारणों से सुषमा असुर व उनके साथियों को आमंत्रित किया, जिसकी धूम मीडिया में भी रही।
कुछ खबरें देखिए :
महिषासुर से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए ‘महिषासुर: एक जननायक’ शीर्षक किताब देखें। ‘द मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन, वर्धा/ दिल्ली। मोबाइल : 9968527911ऑनलाइन आर्डर करने के लिए यहाँ जाएँ : महिषासुर : एक जननायकइस किताब का अंग्रेजी संस्करण भी ‘Mahishasur: A people’s Hero’ शीर्षक से उपलब्ध है।