उत्तर भारत में चल रहे महिषासुर आंदोलन ने दक्षिण भारत के द्रविड़ अवचेतन को जगा दिया है। इस साल चेन्नई में ठीक दशहरे के दिन राम के साथ-साथ लक्ष्मण और सीता के भी पुतले जलाये गए। बड़ी संख्या में मौजूद पुलिस बल को धता बताते हुए पुतला जलाने वाले 11 पेरियार समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया है। पेरियार समर्थकों ने मांग की है कि दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में रावण का पुतला जला कर द्रविड़ों को अपमानित किया जाना बंद किया जाये।
गौरतलब है कि पेरियार रामास्वामी ने 1960 के दशक में “द रामायण : अ ट्रू रीडिंग” लिख कर तमिलनाडु में जो राम-विरोधी चेतना पैदा की थी, वह विगत वर्षों में ठंडी पड़ने लगी थी। उनके संस्कृति के अब्राह्मणीकरण के आंदोलन में दलित-बहुजनों को अपमानित करने वाले ब्राह्मण ग्रंथों में वर्णित देवी-देवताओं की मूर्तियों की सार्वजनिक स्थलों पर जूतों से पिटाई का अभियान भी शामिल रहा करता था।
यही गुस्सा एक बार फिर उभरा। चेन्नई में एक बहु-प्रचारित घटनाक्रम में, थान्थई पेरियार द्रविदर कषगम (टीपीडीके) के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली और देश के अन्य भागों में होने वाली रामलीला के विरोध में रावण लीला का आयोजन किया।
कार्यक्रम स्थल पर लगभग 200 पुलिसकर्मीयों की मौजूदगी के बावजूद, आयोजकों का दावा है कि वे पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहे और उन्होंने चार पुतलों को आग के हवाले कर दिया। इनमें से दो राम के थे और एक-एक सीता और लक्ष्मण के। कार्यक्रम का समय और स्थान पहले से घोषित कर दिया गया था। पुलिस ने मौके से 11 लोगों को गिरफ्तार किया, जिन्हें 15 दिनों के लिए जेल भेज दिया गया। चालीस अन्य व्यक्तियों को भी हिरासत में लिया गया, जिन्हें कुछ घंटों बाद रिहा कर दिया गया।
तमिलनाडू का द्रविड़ आन्दोलन शुरू से ही तमिल समाज में हिन्दू धर्म के दखल और भारत के हिन्दूकरण/ब्राह्मणीकरण के खिलाफ रहा है।
द्रविड़ आन्दोलन लम्बे समय से ऐसे आयोजनों का आलोचक रहा है जो, इस आन्दोलन के नेताओं के अनुसार, दक्षिण के द्रविड़ लोगों पर उत्तर भारत के आर्यों की विजय का जश्न हैं।
टीपीडीके के एक पदाधिकारी कुमारन ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर कहा:
“विंध्य की घाटियों के उस पार, उत्तर में रहने वालों के लिए, अक्टूबर का मतलब होता है रामलीला। यह उत्तर के लोगों के लिए उत्सव, प्रसन्नता और आमोद-प्रमोद का अवसर होता है। परन्तु दक्षिण में रहने वालों का क्या? उन्हें मिलती है शर्मिंदगी, अपमान और उपहास, क्योंकि रामलीला, द्रविड़ों पर आर्यों की विजय के प्रतीक के अलावा कुछ नहीं है”।
कुमारन का कहना है कि उत्तर भारत के अनेल शहरों में “राख के त्यौहार” रामलीला का वार्षिक मंचन फिर से होने जा रहा है। “हमने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखकर निम्न मांगें कीं:
- भारत सरकार को रामलीला के मंचन को बंद करवाना चाहिए और इसके आयोजन में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि जैसे अति-महत्वपूर्ण व्यक्तियों को भागीदारी नहीं करनी चाहिये।
- धर्मनिरपेक्षता भारत सरकार की नीति है। धर्मनिरपेक्षता में आस्था रखने वाली सरकार के महत्वपूर्ण पदाधिकारी होने के नाते, इस तरह के कार्यक्रमों में आपकी भागीदारी, उन सिद्धांतों का मखौल है, जिनमें आप विश्वास रखते हैं। पूरी विनम्रता परन्तु दृढ़ता से हम आपको यह बताना चाहते हैं कि यदि आप हमारी औचित्यपूर्ण मांगों को स्वीकार नहीं करते, तो हमें मजबूर होकर अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए उपयुक्त कदम उठाने होंगें।
रामायण हमें बताती है कि दक्षिण भारत में बंदरों ने राम की बहुत मदद की और हनुमान बंदरों के नायक थे। संभवतः, रामायण, रावण के नेतृत्व वाले दक्षिण भारतीयों के विरुद्ध आर्यों के युद्ध के कथा है और बन्दर, शायद दक्षिण भारत के काले निवासी”।
“परन्तु हमारे पत्र का कोई उत्तर हमें प्राप्त नहीं हुआ। असल में हमारा और हमारी बातों का कोई सम्मान ही नहीं है। आयोजन पर प्रतिबन्ध लगाने की बजाय, हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी ने उत्तर प्रदेश में कल (11 अक्टूबर, 2016) रामलीला के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बतौर भागीदारी की और अपने संबोधन में कहा कि “यह वह दिन है, जब अच्छाई ने बुराई पर विजय प्राप्त की थी। श्रीमान मोदी, क्या दक्षिण के लोग ‘बुराई’ हैं?”
”एक बार फिर यह साबित हो गया है कि भारत के शासकों के मन में, दक्षिण के निवासियों की भावनाओं के प्रति सम्मान का भाव नहीं है। अगर ऐसा होता, तो क्या एक धार्मिक ग्रन्थ के नायक को सम्मान देने के लिए वे वे द्रविड़ नस्ल के तीन महान नायकों के पुतलों का दहन करते। रावण, उनके भाई कुम्भकरण और पुत्र मेघनाथ के पुतले जलाना श्री मोदी और उनके सहयोगी राजनाथ सिंह के लिए मजाक हो सकता है परन्तु देश के प्रधानमंत्री होने के नाते उनका यह कर्त्तव्य है कि इसके दक्षिण भारत में रहने वाले लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी वे ध्यान दें। ऐसा करके ही राष्ट्रीय एकता की बहुचर्चित अवधारणा को मूर्त रूप दिया जा सकता है।
रामायण में द्रविड़ों का राक्षसों के रूप में नस्लवादी प्रस्तुतीकरण और नस्लवादी रामलीला के मंचन की निंदा करते हुए, ब्राह्मणवादी वर्चस्व से मुकाबला करने के लिए, हमें मजबूर होकर आपके उत्सव के विरोधस्वरूप, उसके समानांतर यहाँ एक और उत्सव मनाने के प्रबंध करने पड़ रहे हैं। यह नृवंशीय व ऐतिहासिक आधारों पर लिया गया औचित्यपूर्ण निर्णय है।
चूँकि हमारे आत्मसम्मान को चुनौती दी जा रही है अतः मजबूर होकर हम थान्थई पेरियार द्रविदर कषगम, तमिलनाडू की राजधानी चेन्नई में, रावण लीला का आयोजन करने जा रहे हैं, जिसमें उतने ही जोर-शोर से, द्रविड़ों अर्थात तमिल जनता, के सहयोग और समर्थन से, राम और सीता के पुतले जलाये जायेगें।
अगर भारत सरकार, अगले साल तक भी नस्लवादी रामलीला को प्रतिबंधित नहीं करती तो रावणलीला का आयोजन न केवल राज्य की राजधानी वरन प्रत्येक जिला मुख्यालय में भी किया जायेगा और राम, लक्ष्मण और सीता के पुतले जलाये जायेगें।”
आयोजन के लिए, चेन्नई के म्य्लापोर स्थित संस्कृत कॉलेज के सामने का मैदान चुना गया। स्थान का चयन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि म्य्लापोर चेन्नई का ब्राह्मण-बहुल इलाका है और संस्कृत को, तमिलों पर ब्राह्मणवादी वर्चस्व का प्रतीक माना जाता है।
1930 और 1940 के दशकों में पेरियार का आत्मसम्मान आन्दोलन, तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी (जिसका आज का तमिलनाडू हिस्सा है) में अपने चरम पर था। इसके बाद, सन 1998 में, तमिलनाडू के तत्समय मुख्यमंत्री करूणानिधि ने, राम बनाम रावण और आर्य बनाम द्रविड़ का मुद्दा एक बार फिर उठाया। द्रविदर कषगम के उन कार्यकर्ताओं, जिन्होंने उसी वर्ष 1 अक्टूबर को रावण लीला का आयोजन करने का प्रयास किया था, का समर्थन कर करूणानिधि ने समाज में हलचल पैदा कर दी थी।
उपरोक्त घटना पर टिपण्णी करते हुए, तमिलनाडू के जानेमाने समाज वैज्ञानिक दिवंगत डॉ.एम.एस.एस. पांडियन ने कहा था, “यह एक विशेष प्रकृति के हिन्दू धर्म से भारत को परिभाषित करने के राष्ट्रवादियों के प्रयास की प्रतिक्रिया है। तमिलनाडू का ब्राह्मण-विरोधी आन्दोलन केवल ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं था। यह तर्कितावादी आन्दोलन भी था। रामायण को उत्तर भारत के निवासी हमेशा से द्रविड़ों पर आर्य आक्रमण का रूपक मानते आये हैं। रामायण को द्रविड़ नेताओं ने इसी रूप में देखना शुरू कर दिया क्योंकि भारतीय राष्ट्रवाद हिन्दू, हिंदी और हिंदुस्तान पर आधारित एक विशेष दृष्टिकोण को भारत पर लादने पर तुला हुआ था। इसकी प्रतिक्रिया में, रावण दक्षिण भारत के नायक के रूप में उभरा। यद्यपि राम ब्राह्मण नहीं थे, तथापि उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा गया, जो ब्राह्मणवादी मूल्यों को बढ़ावा देता था”।
इस साल (12 अक्टूबर, 2016) की रावण लीला के बाद हुई पुलिस कार्यवाही का विवरण देते हुए, टीपीडीके के मनोज ने बताया, “ग्यारह व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें पंद्रह दिनों के लिए जेल भेज दिया गया। इनमें गणेश, जयकुमार, बाला और सेलवम शामिल थे। चालीस अन्यों को भी हिरासत में लिया गया परन्तु उन्हें कुछ घंटों बाद रिहा कर दिया गया”।
संगठन के एक अन्य पदाधिकारी कुमारन ने बताया, “एक हिन्दू समूह के दस लोग हमारा विरोध करने के लिए आये परन्तु पुलिस ने उन्हें हमारे नज़दीक नहीं आने दिया और उन्हें पकड़ लिया गया”।
म्य्लापोर में 12 अक्टूबर को रावण लीला के सफल आयोजन के पश्चात्, आयोजकों ने निम्न वक्तव्य जारी किया: “हर वर्ष, उत्तर भारत में रामलीला के नाम पर, द्रविड़ों को बदनाम करने के लिए, तमिल सम्राट रावण के पुतले जलाये जाते हैं। इसके विरोध में थान्थई पेरियार द्रविदर कषगम ने ‘रावण लीला’ का आयोजन करने का निश्चय किया और म्य्लापोर के संस्कृत कॉलेज के सामने राम का पुतला जलने की घोषणा की। हिन्दू मुन्नानी और हिन्दू पीपुल्स पार्टी ने पुलिस आयुक्त को ज्ञापन देकर हमें इस आयोजन की अनुमति न दिए जाने की मांग की। परन्तु थान्थई पेरियार द्रविदर कषगम ने अपनी घोषणा के अनुरूप, 12 अक्टूबर, 2016 को रमण, लक्ष्मणन और सीता के पुतले जलाये। पुलिस ने 11 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और 40 अन्य लोगों को हिरासत में लिया। इस घटना ने देश का ध्यान आकर्षित किया”।
इस घटनाक्रम का तमिलनाडू की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह देखना दिलचस्प होगा। राज्य की मुख्यमंत्री जे. जयललिता लम्बे समय से बीमार हैं और पिछले आमचुनाव में, एक सांसद के साथ राज्य में अपना खाता खोलने के बाद से, भाजपा राज्य में अपनी ज़मीन तैयार करने में जुटी हुई है।
महिषासुर से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए ‘महिषासुर: एक जननायक’ शीर्षक किताब देखें। ‘द मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन, वर्धा/ दिल्ली। मोबाइल : 9968527911ऑनलाइन आर्डर करने के लिए यहाँ जाएँ : महिषासुर : एक जननायकइस किताब का अंग्रेजी संस्करण भी ‘Mahishasur: A people’s Hero’ शीर्षक से उपलब्ध है।