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समस्याओं को उठाने के लिए आदिवासी बना रहे फिल्में

महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के धाड़गांव ब्लाक के दस अल्प-शिक्षित युवाओं के दल ने अपनी पहली लघु फिल्म बनाई है। इस वीडियो का फिल्मांकन और संपादन केवल मोबाईल फोन पर किया गया और फिल्म उनके यूटयूब चैनल ‘आदिवासी जनजागृति‘ पर उपलब्ध है

अपनी पहली फिल्म की शुटिंग के दौरान जन जागृति संस्था के सदस्य
सोशल मीडिया ने मशहूर होना बहुत आसान बना दिया है। आपको कोई भी वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करना भर है और आप रातों-रात सितारा बन सकते हैं। ऐसे वीडियो की आलोचना करने वाले भी उसकी प्रसिद्धि में योगदान ही देते हैं। भारत के सबसे अल्पविकसित जिलों में से एक के कुछ युवाओं ने सोशल मीडिया की इस ताकत का इस्तेमाल करने का फैसला किया। परंतु उनका लक्ष्य प्रसिद्धि पाना नहीं वरन् स्थानीय समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान खींचना था। महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के धाड़गांव ब्लाक के दस अल्प-शिक्षित युवाओं के दल ने अपनी पहली लघु फिल्म बनाई है। इस वीडियो का फिल्मांकन और संपादन केवल मोबाईल फोन पर किया गया है और यह उनके यूटयूब चैनल ‘आदिवासी जनजागृति‘ पर उपलब्ध है। फिल्म बाल श्रम पर आधारित है। अब वे स्व-सहायता समूहों व ग्राम स्तर के अन्य संगठनों की सहायता से गांव-गांव में छोटे प्रोजेक्टर का इस्तेमाल कर इसे दिखा रहे हैं।

 फिल्म निर्माताओं में से एक अनिल लुहार कहते हैं, ‘‘हमारे प्रखंड में लोगों को फिल्में देखना बहुत पसंद है। इसलिए जब हम स्थानीय कलाकारों के साथ मिलकर, ऐसे मुद्दों पर फिल्में बनाते हैं जो लोगों की जिंदगी से साबका रखते हैं, तो लोग इन्हें देखते तो हैं ही उससे उनमें जागृति भी आती है।‘‘
आदिवासी जनजागृति द्वारा एक नयी फिल्म की शूटिंग की जा रही है जिसमें शौचालय के उपयोग को विषय बनाया गया है

उनकी पहली फिल्म को यूटयूब पर 800 से ज्यादा लोग देख चुके हैं और उन्हें 60 से ज्यादा ‘लाईक‘ मिली हैं। उनके चैनल के 75 से अधिक सब्सक्राईबर हैं। जाहिर है कि जो वीडियो वायरल हो जाते हैं और जिन्हें लाखों लोग देखते हैं, उनके सामने ये आंकड़े कुछ भी नहीं हैं। परंतु इन्हें इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि इस इलाके में केवल बीएसएनएल का नेटवर्क उपलब्ध है और वह भी आधा-अधूरा सा। अब युवा फिल्मकारों का यह दल सिकिल-सेल रक्ताल्पता, शौचालयों के प्रयोग व तंबाकू के दुष्प्रभावों पर फिल्में बनाने की तैयारी कर रहा है।

एक सभा में लोगों को संबोधित करते नितेश भारद्वाज

नितेश भारद्वाज नामक जनसंचार में स्नातक एक युवक इस काम में उनकी सहायता कर रहे हैं। भारद्वाज भारतीय स्टेट बैंक की ‘‘यूथ फार इंडिया‘‘ फैलोशिप पर इस इलाके में काम कर रहे हैं। वे उन्हें स्थानीय समस्याओं से निपटने के लिए मोबाईल फोन का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। नीतीश कहते हैं, ‘‘हमारे गांवों की सबसे बड़ी समस्या है जागृति फैलाने के लिए संचार साधनों का अभाव मुख्यधारा का मीडिया इन इलाकों पर जरा भी ध्यान नहीं देता। टेलीविजन चैनलों के कार्यक्रम शहरों पर केन्द्रित होते हैं और गांवों के लोगों को वे एक दूसरी दुनिया के लिएं बनाए गए लगते हैं। ग्रामवासियों में जागृति फैलाने के लिए हमें स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करना होगा‘‘।

मोबाईल फोन पर फिल्म का संपादन करने में उन्हें जिस समस्या का सामना करना पड़ा वह यह थी कि वे मराठी या हिन्दी में कोई संदेश फिल्म में नहीं लिख सकते थे क्योंकि संपादन के लिए जिस एप का इस्तेमाल उन्होंने किया उसमें देवनागरी फांट नहीं था। वे इस समस्या का हल ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं।


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लेखक के बारे में

पूजिता सिंह

पूजिता सिंह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वे विभिन्न सामाजिक एवं राजनैतिक मुद्दों पर लिखती रहती हैं। वर्तमान में वे लोकसभा में इंटर्नशिप कर रही हैं और रसायन व उर्वरक मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति से संबद्ध हैं

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