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सुर्खियों में ‘सूअरों’ को जनेऊ

टीपीडीके के सदस्य मनोज एक मंदिर में गोपुरम की मूर्ति का चित्र दिखाते हुए कहते हैं कि प्रवेश द्वार पर पिरामिड़ जैसे बने टॉवर पर जनेऊ पहने हुए वराह (सूअर) विराजमान है। उनके मुताबिक ब्राह्मण यह वार्षिक धार्मिक अनुष्ठात्मक कृत्य सिर्फ यह दिखाने के लिए करते हैं जैसे केवल उन्हें ही यह जनेऊ पहनने का अधिकार है। सिंथिया स्टीफन की रिपोर्ट :

आगामी 7 अगस्त को चेन्नई के मायलापोर के संस्कृत कॉलेज के सामने सूअरों को जनेऊ पहनाने का कार्यक्रम निर्धारित है। थनथाई पेरियार द्रविड़ कड़गम के तत्वावधान में आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम अभी से सुर्खियों में है। जहां एक ओर पूरे देश के ब्राह्म्णवाद विरोधी इसकी सराहना कर रहे हैं तो दूसरी ओर इस आयोजन की तीखी आलोचना की जा रही है। वहीं इस में मामले में आयोजक संस्था टीपीडीके के सदस्य मनोज बताते हैं कि विष्णु के कई अवतारों में एक सूअर अवतार भी है। हम लोग कुछ भी ऐसा नहीं कर रहे हैं जो ब्राह्म्णों ने पहले नहीं किया हो।

टीपीडीके द्वारा जारी पोस्टर

ध्यातव्य है कि थनथाई पेरियार द्रविड़ कड़गम प्रत्येक वर्ष ब्राहणवाद के विरोध में कार्यक्रम का आयोजन करता है। मसलन पिछले वर्ष राम, सीता और लक्ष्मण के पुतले फूंके गये। यह आयोजन भी तब खूब विवादों में रहा था। वहीं इस बार के आयोजन को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस छिड़ गयी है। बहस की वजह यह कि इस बार ऐसा कार्यक्रम आयोजित किया गया है जिसमें ब्राह्मणवादी प्रथाओं पर चोट करते हुए एक सूअर को अनुष्ठानिक पवित्र धागा(जनेऊ) पहनाया जाएगा। सामान्य तौर पर जनेऊ ब्राह्मण पुरूषों द्वारा पहना जाता है। ध्यातव्य है कि यह आयोजन 7 अगस्त को किया जाएगा जो अवनी अविट्टम का दिन है, जो तमिल के अवादी महीने में पड़ता है। इस दिन सामूहिक तौर पर एक वार्षिक आनुष्ठान किया जाता है, जिसमें ब्राह्मण पुरूष अपना जनेऊ (तमिल में पूननूल या पूनल) बदलते हैं।

बहरहाल टीपीडीके का यह कार्यक्रम विवादों का केंद्र बन चुका है। ब्राह्मणवादी संगठनों ने टीपीडीके द्वारा जारी एक पोस्टर की निंदा की है और विज्ञप्ति जारी कर पोस्टर में आपत्तिजनक भाषा और अपमानजनक चित्र होने की बात कही हैं।

जबकि टीपीडीके के सदस्य मनोज एक मंदिर में गोपुरम की मूर्ति का चित्र दिखाते हुए कहते हैं कि प्रवेश द्वार पर पिरामिड़ जैसे बने टॉवर  पर जनेऊ पहने हुए वराह (सूअर) विराजमान है। उनके मुताबिक ब्राह्मण यह वार्षिक धार्मिक अनुष्ठात्मक कृत्य सिर्फ यह दिखाने के लिए करते हैं जैसे केवल उन्हें ही यह जनेऊ पहनने का अधिकार है। उनके अनुसार अन्य जातियों के लोग भी इस धागे को पहनते हैं और इनमें कुछ शूद्र कही जाने वाली जातियां भी शामिल हैं। लेकिन ब्राह्मणों के अलावा जनेऊ पहनने वाली इन अन्य जातियों को अविट्टम के दिन होने वाले इन अनुष्ठानों में कभी भी शामिल नहीं किया जाता है। जो यह दिखाता है कि वेद केवल उन्हें ही जनेऊ पहनने का अधिकार देते है।

तामिलनाडु के एक मंदिर में वाराह अवतारी विष्णु की प्रतिमा

वहीं 24 जुलाई  2017 के दिनामालर अखबार के अनुसार ब्राह्म्णवादी संगठनों ने कृष्णागिरी जिले में एक रैली का आयोजन किया। इस रैली का उद्देश्य सूअर को जनेऊ पहनाने के आयोजन का विरोध करना था। अखबार यह भी बताता है कि इस विरोध जुलूस में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इन महिलाओं और बच्चों के हाथों में प्ले कार्डस थे, जिसमें आयोजन की निंदा की गई थी और टीपीडीके की आलोचना की गई थी। जिन वक्ताओं ने रैली में प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया, उन्होंने फिल्मों में ब्राह्मणों के अपमानजनक चित्रण को समाप्त करने का भी आह्वान किया। प्रसिद्ध नाट्कर्मी व फिल्मकार सह ब्राह्म्ण समर्थक संस्था के संस्थापक सी. वी.सेकर ने भी यह आयोजन करने के लिए टीपीडीके की निंदा की है।  

(अनुवाद : सिद्धार्थ)


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लेखक के बारे में

सिंथिया स्टीफेन

सिंथिया स्टीफेन स्वतंत्र लेखिका व विकास नीति विश्लेषक हैं। वे लिंग, निर्धनता व सामाजिक बहिष्कार से जुड़े मुद्दों पर काम करतीं हैं

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