h n

छक कर शराब पीते थे देवी-देवता

सोम वैदिक देवा-देवताओं की एक पसंदीदा शराब थी। इसे इन्द्र, अग्नि, वरूण, मारुत और आदि देवताओं को प्रसन्न करने के लिए इसे अधिकांश यज्ञों में चढ़ाया जाता था। काली और दुर्गा भी शराब पीते हुए विभिन्न ग्रंथों में उल्लेखित हैं। राज्यसभा में देवताओं के शराबी होने को लेकर सवाल उठाने वाले नेताओं को आड़े हाथों लेते प्रोफ़ेसर डी एन झा

आंध्रप्रदेश के तुंगभद्र नदी के किनारे पर आलमपुर में बने कु्मारा-ब्रह्मा मंदिर में बनी एक प्रतिमा। इस प्रतिमा में पुरुष स्त्री को शराब दे रहा है। (साभार www.kamat.com)

मीडिया में यह खबर पढ़कर मुझे हंसी आई थी कि हिंदू देवी-देवताओं का शराब से संबंध था और इस कथित आरोप पर राज्यसभा में हो-हल्ला हुआ। चूंकि आपत्तिजनक टिप्पणियां संसदीय कार्यवाही से निकाल दी गई थीं, इस कारण से मैं उस विशेष देवता का नाम नहीं ले सकता हूं, जिसके संदर्भ में शराब की बात की गई थी, न ही उस सांसद का नाम ले सकता हूं जिसने यह कथित आरोप लगाया था। हो सकता है कि हमारे राजनीतिज्ञ अपने प्राचीन साहित्य से अच्छी तरह परिचित न हों, और खासकर अतीत का उनका ज्ञान कमजोर हो सकता है। लेकिन इस आधार पर उन्हें इस बात के लिए माफ नहीं किया जा सकता कि, उन्हें इस बात का भी ज्ञान न हो कि वे जिन देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, उनके गुणों और आचरणों से परिचित न हों। यहां पर मैं, जो देवी-देवता नशीली शराब पी कर मदहोश हो जाते थे, उनके में कुछ की ओर पाठकों का ध्यान खींचना पसंद करुंगा।

वैदिक रचनाओं में सोम एक भगवान का नाम था, इसके अलावा यह एक पौधे का नाम भी था। इसी पौधे से मादक पेय निकाला जाता था और देवताओं को ज्यादातर चढ़ावे में पेश किया जाता था। एक मत के अनुसार यह सुरा नामक मादक पेय से भिन्न था। सुरा सामान्य लोगों के लिए थी। सोम  वैदिक देवा-देवताओं का एक पसंदीदा पेय था। इसे इन्द्र, अग्नि, वरूण, मारुत और आदि देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अधिकांश यज्ञों में चढ़ाया जाता था। इन देवताओं का नाम ऋग्वेद में बार-बार आता हैं। इनमें से इन्द्र के अलग-अलग 45 नाम हैं।  ॠग्वेद की एक हजार से अधिक ऋचाओं में से सबसे अधिक 250 ऋचाएं इन्द्र को समर्पित हैं। ऋग्वेद के मुताबिक वह सबसे महत्वपूर्ण देवता है। वह युद्ध का देवता है, वह वज्र जैसे शस्त्र का इस्तेमाल करता है, अत्यन्त झगड़ालू है, व्यभिचारी है और अत्यधिक शराब पीने के चलते तोंदियल है। वैदिक उद्धरणों में उसका वर्णन एक बहुत बड़े पियक्कड़ और शराबी के रूप में किया गया है। उसके बारे में कहा गया है कि दैत्य व्रीत्रा की हत्या करने से पहले वह तीन तालाबों का सोम पी गया था।

उज्जैन के काल भैरव मंदिर में काल भैरव की प्रतिमा को शराब अर्पित करते श्रद्धालु। माना जाता है कि काल भैरव शराब पीते हैं

इन्द्र के अलावा भी अनेक देवता थे पर वे सब इन्द्र जैसे पियक्कड़ नहीं लगते हैं। जैसे कि अग्नि, लगता है कि वे संयम के साथ पीते थे। हालांकि विस्तार से यदि विश्लेषण किया जाये, तो हम पाते हैं कि वैदिक भगवानों के लिए शराब का त्याग अनजानी चीज थी। साथ ही उनके सम्मान में जो यज्ञ किया जाता था, उसमें शराब एक अनिवार्य चीज थी। वाजपेय यज्ञ की शुरूआत में जो अनुष्ठान किया जाता था, उसमें सामूहिक तौर पर शराब का सेवन होता था। इस यज्ञ में यज्ञकर्ता इन्द्र को पांच कप शराब समर्पित करता था, इसके साथ ही साथ 34 भगवानो को 17 कप सोम और 17 कप सुरा  चढ़ाई जाती थी।

काल भैरव की प्रतिमा को शराब अर्पित करता एक पुजारी

वैदिक रचनाओं की तरह महाकाव्यों में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि हिंदू धर्म में जिन्हें ईश्वर का स्थान प्राप्त है वे लोग शराब का सेवन करते थे। उदाहरण के लिए महाभारत में संजय वर्णन करते हैं कि कृष्ण (भगवान विष्णु के एक अवतार ) और अर्जुन द्रौपदी और सत्यभामा (कृष्ण की पत्नी और भूदेवी की एक अवतार) बास्सिया शराब से मदमस्त हैं। महाभारत के एक परिशिष्ट हरिवंश  में वर्णन किया गया है कि विष्णु के एक अवतार बलराम कदंब मदिरा के भरपूर पान से उत्तेजित होकर अपने पत्नी के साथ नृत्य कर रहे हैं। रामायण  के एक प्रसंग में वर्णन मिलता है कि विष्णु के अवतार राम सीता को आलिंगनबद्ध करके उन्हें शुद्ध मैरेय शराब पिला रहे हैं। एक अन्य प्रसंग से लगता है कि सीता शराब खूब शौकीन थीं। जब वे गंगा नदी पार कर रही हैं तो वह गंगा से वादा करती हैं कि वह उन्हें चावल के साथ पका मीट ( जिसे हम बिरयानी कह सकते हैं ) और हजारों जार शराब भेंट करेंगी। जब वे यमुना पार कर रही हैं तो वह कहती हैं कि वह इस नदी को एक हजार गाय, और 100 जार शराब देकर पूजा करेंगी, जब उनके पति अपनी प्रतिज्ञा पूरा कर लेंगे। भगवानों द्वारा शराब का सेवन केवल वेद और महाकाव्यों की परंपरा तक सीमित नहीं है। पौराणिक कथाओं में भी यह चीज मौजूद है। इसी तरह की एक पौराणिक कथा के अनुसार समुद्रमंथन के निकली वरूणी शराब की एक भारतीय देवी है। वरूणी शराब की एक जोरदार किस्म का नाम भी था।

काल भैरव की मंदिर के आगे ‘प्रसाद’ की दुकान में धड़ल्ले से बिकता है शराब

तांत्रिक धर्म पंच ( पांच ) मकारों से पहचाना जाता है। ये पंच मकार इस प्रकार हैं- मद्य ( शराब ) मांस ( मीट ) मत्स्य ( मछली ) मुद्रा ( भंगिमा ) और मैथुन ( सेक्स संबंध )। ये पांचों चीजें भगवानों को भेंट की जाती थीं। यद्यपि केवल वामाचारी लोगों को ही इस बात का अधिकार था कि इन पंच मकारों का सेवन करें। देवी काली और उनके बहुत सारे रूपों  की, तांत्रिक परंपरा के साथ संबंध के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है। लेकिन यहां पर केवल एक देवी की चर्चा पर्याप्त है, उस देवी का नाम चंडमारी है। यह काली का एक रूप हैं, 11वीं शताब्दी की रचनाएं बताती हैं कि यह देवी मानव खोपड़ी का इस्तेमाल मदिरा पीने के पात्र के रूप में करती हैं। मध्यकाल के शुरूआत की एक किताब कुलार्णवतंत्र  बताता है कि शराब और मांस क्रमशः शक्ति और शिव के प्रतीक हैं और इनका भोग करने वाले भैरव हैं इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारत में प्राचीन काल में भैरव  को शराब चढ़ाई जाती थी। यह परंपरा हमारे समय में भी कायम है। इसे कोई देखना चाहे तो, दिल्ली के भैरव मंदिर और उज्जैन के काल भैरव मंदिर में देख सकता है। अभी भी बीरभूम में कायम एक परंपरा के तहत शराब का विशाल पात्र धर्म नाम के देवता  के सामने पेश किया जाता है। देवता को जुलूस के शक्ल में एक ‘सुंडी’ (वैश्य) के घर ले जाया जाता है। जिसका संबंध शराब बनाने वाली एक जाति से है। तांत्रिक और आदिवासी धर्म में देवी-देवताओं का अक्सर विभिन्न तरीके से शराब से संबंध है। यहां पर दिए गए कुछ उदाहरण स्पष्ट तौर पर दिखाते हैं कि कुछ देव और देवियां शराब के शौकीन थे और उनकी पूजा इसके बिना अधूरी रह जाती है।

 यहां इस बात की ओर भी ध्यान दिया जा सकता है कि प्राचीन भारत में लगभग 50 किस्म की नशीली शराबें उपलब्ध थीं। पुरूषों का शराब पीना आम बात थी।, इसके बावजूद भी कि धर्मशास्त्रों में कहीं-कहीं ब्राह्मणों के शराब पीने पर एतराज जताया गया हैं। महिलाओं द्वारा शराब पीने के उदाहरण भी कम नहीं हैं। बौद्ध जातक साहित्य में शराब पी कर मदमस्त होने के बहुत सारे प्रसंग मौजूद हैं। संस्कृत साहित्य नशीले पेयों के प्रसंगों से भरे पड़े हैं। कालिदास और अन्य लेखकों की रचनाओं में मादक पेयों की बार-बार चर्चा आती है।  इस मामले में प्राचीन भारत के लोग आनंदमय जीवन व्यतीत करने वाले लोग थे। यदि उनके भगवान जीवन की अच्छी वस्तुओं के शौकीन थे, तो हमारे राजनीतिज्ञों को दैवीय आनंदमय जीवन दर्शन के सिद्धांत से दुखी होने की जरूरत नहीं है। मद्यनिषेधवादियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए और नहीं भूलना चाहिए कि भगवान की सब कुछ पर नजर है!

(अनुवाद : सिद्धार्थ)

(मूल अंग्रेजी लेख इंडियन एक्सप्रेस के 29 जुलाई, 2017 के अंक में प्रकाशित हुआ था, यहां इसका हिंदी अनुवाद लेखक की अनुमति से प्रकाशित किया गया है)

 


 फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

डी. एन. झा

डी.एन. झा दिल्ली विश्विद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं। वे ‘मिथ ऑफ होली काऊ’ के लेखक हैं

संबंधित आलेख

सामाजिक आंदोलन में भाव, निभाव, एवं भावनाओं का संयोजन थे कांशीराम
जब तक आपको यह एहसास नहीं होगा कि आप संरचना में किस हाशिये से आते हैं, आप उस व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा...
दलित कविता में प्रतिक्रांति का स्वर
उत्तर भारत में दलित कविता के क्षेत्र में शून्यता की स्थिति तब भी नहीं थी, जब डॉ. आंबेडकर का आंदोलन चल रहा था। उस...
पुनर्पाठ : सिंधु घाटी बोल उठी
डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर का यह काव्य संकलन 1990 में प्रकाशित हुआ। इसकी विचारोत्तेजक भूमिका डॉ. धर्मवीर ने लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि...
कबीर पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक 
कबीर पूर्वी उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर के जनजीवन में रच-बस गए हैं। अकसर सुबह-सुबह गांव कहीं दूर से आती हुई कबीरा की आवाज़...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...