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दुर्गा पूजा मनाने वालों पर एफआईआर दर्ज, मनुवादी परंपरा को मिल रही चुनौती

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के पखांजुर थाने में दुर्गा पूजा के बहाने आदिवासियों का अपमान करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। यह ऐतिहासिक मौका है जिसका असर आने वाले समय में दिखेगा। सांस्कृतिक अत्याचार सह रहे करोड़ों लोग अब बेड़ियों को तोड़ने का साहस दिखा सकेंगे। बता रहे हैं नवल किशोर कुमार :

इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक का सातवां साल। तारीख 28 सितंबर 2017 और दिन गुरूवार। भारत के मूलनिवासियों के लिए ऐतिहासिक बन गया। किसी ने अभी तक इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि भारत जिसे ब्राह्मणवादियों ने ऐसा सांस्कृतिक उपनिवेश बना रखा था कि कोई भी मूलनिवासी फिर चाहे वह आदिवासी हो, दलित हो या फिर पिछड़े वर्ग के लोग अपने सांस्कृतिक अधिकारों के लिए आवाज भी उठा सकें, उस भारत में दुर्गा के तथाकथित भक्तों के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया जाएगा। वह भी तब जब देश में भगवावादियों का एकछत्र राज है। दिलचस्प यह भी कि यह ऐतिहासिक घटना उस भारत के उस प्रांत में घटित हुई जहां आरएसएस समर्थित भाजपा की सरकार है। इस प्रांत का नाम है छत्तीसगढ़ और मुख्यमंत्री हैं आरएसएस के कट्टर समर्थक रमण सिंह। लेकिन भारत के करोड़ों मूलनिवासियों को जो जीत मिली है, उसकी वजह राजनीतिक से अधिक वह सांस्कृतिक संघर्ष है जिसकी कमान कभी कबीर ने संभाली तो कभी जोती राव फुले और बाद में डॉ भीमराव आंबेडकर और पेरियार ने।

एफआईआर दर्ज, आरोपियों की गिरफ्तारी करने की कार्रवाई शुरू

डा. लाल रत्नाकर द्वारा वर्ष 2017 में बनायी गयी महिषासुर की नयी पेंटिंग

सबसे पहले बात ऐतिहासिक जीत की करते हैं। खबर यह है कि छत्तीसगढ़ में दुर्गा पूजा आयोजन समिति के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। इसकी पुष्टि किसी और ने नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ कांकेर जिले के पुलिस अधीक्षक के. एन. ध्रुव ने की है। खबर यह है कि छत्तीसगढ के कांकेर जिले के पखांजुर थाने में स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोगों ने दुर्गा पूजा समिति के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। इस कारण कांकेर जिले से लेकर छत्तीसगढ़ के शीर्ष पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया है।

दरअसल अनुसूचित जाति मोर्चा के कांकेर जिला उपाध्यक्ष लोकेश सोरी ने अपने एफआईआर में कहा है कि महिषासुर अनुसूचित जनजाति के लोगों के पुरखा हैं। पखांजुर थाने के परलकोट इलाके में दुर्गा पूजा पंडालों में मूर्तियों में दुर्गा द्वारा उनका वध करते हुए दिखाया गया है। उन्होंने कहा है कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के अनुच्छेद  244(1), अनुच्छेद 13(3) (क), अनुच्छेद 19(5) (6) के प्रावधानों के अनुसार आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, पुरखों, देवी-देवताओं के उपर हमले एवं अपमान ·करना अनुचित एवं दंडनीय है।

अब इस मामले में जबकि एफआईआर दर्ज कर लिया गया है बकौल पुलिस अधीक्षक, कांकेर श्री ध्रुव ने फारवर्ड प्रेस को दूरभाष पर बताया कि आरोपितों के बारे में जानकारी खंगाली जा रही है। उनके मोबाइल नंबर के सहारे उनकी खोजकर गिरफ्तार करने की कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने कहा कि एफआईआर में शामिल आरोपियों के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने का यदि मामला सामने आता है तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।  साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मामला आदिवासी बनाम गैर आदिवासी का नहीं है। भारतीय कानून की नजर में सब एक समान है।

अपने पुलिस कप्तान के तर्ज पर ही पखांजुर थाने के एसडीओपी शोभराज अग्रवाल ने भी इस बात की पुष्टि की कि गुरूवार को अनुसूचित जाति मोर्चा के लोकेश सोरी अपने साथियों के साथ थाना आये थे और उनलोगों ने लिखित रूप में अपनी शिकायत सौंपी है। उन्होंने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए शिकायत पर कार्रवाई शुरू कर दी गयी है।

बैतूल जिले में जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर दी गयी चेतावनी

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के पखांजुर थाने में आदिवासियों द्वारा दर्ज करायी गयी शिकायत

इसी कड़ी में एक और खबर छत्तीसगढ़ के ही बैतूल जिले से जहां आदिवासी समाज के लोगों ने महिषासुर की अपमानजनक मूर्ति और रावण व मेघनाथ का पुतला दहन करने वालों के खिालाफ गोलबंद हुए हैं। बीते 26 सितंबर 2017 को बड़ी संख्या में लोग आदिवासी विकास परिषद के बैनर तले जिला समाहरणालय पहुंचे और अपर जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा। अपने ज्ञापन में आदिवासी समुदाय के द्वारा कहा गया है कि रावण आदिवासियों के आराध्य देव हैं। वे उन्हें और उनके पुत्र मेघनाथ को सदियों से पूज रहे हैं। ऐसे में रावण का पुतला जलाना आदिवासियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इतना ही नहीं आदिवासी समाज ने अपने ज्ञापन में चेतावनी दी है कि यदि कोई आयोजन समिति राजा रावण का पुतला दहन करती है तो उनके विरूद्ध दंड संहिता 1860 के अंतर्गत 153(अ), 295 और 295(अ), 298 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करायी जाएगी।

अपने ज्ञापन में आदिवासी विकास परिषद ने बताया है कि बैतूल जिले में प्रतिवर्ष मेघनाथ एवं खंडेराय मेला होली के बाद आयोजित होता है जिसमें सभी समाज के लोग जुटते हैं। उनका कहना है कि हर समाज जो खेती और पशुपालन का कार्य करता है, वह खेती के क्रम में मसलन बीज रोपण से लेकर फसल कटने तक खेत के देवता महिषासुर की पूजा करता है। रावण आदिवासी समाज के सहपूर्वज हैं। उन्हें दशहरा में जलाना या राक्षस कहना देशद्रोह की श्रेणी में आता है।

अब सबसे बड़ा सवाल यही से शुरू होता है। छत्तीसगढ़ भारत का वह राज्य जिसकी पहचान सलवा जुडम और आपरेशन ग्रीन हंट का पर्याय बन गयी है। आये दिन नक्सलियों और पुलिस के बीच लड़ाई के लिए कुख्यात छत्तीसगढ़ में यह क्या हो गया? क्यों छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपनी लड़ाई को उस मुकाम तक ले आये कि अदालत भी अब यह मानने लगी है कि सांस्कृतिक अधिकारों का उनका दावा जायज है और किसी को भी उनकी सांस्कृतिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं है।

शिबू सोरेन ने किया था विद्रोह का आगाज

गौर से देखें तो यह लड़ाई केवल छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की नहीं है। वर्ष 2007 में ही दिशोम गुरू और झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने रांची के मोहराबादी मैदान में रावण वध कार्यक्रम में शामिल होने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया था कि रावण उनके कुलगुरू और पुरखा हैं। लेकिन तब सांस्कृतिक प्रतिरोध अपने प्रारंभिक अवस्था में था और मुख्यमंत्री रहने के बावजूद शिबू सोरेन यह राज्यादेश निकालने का साहस नहीं दिखा सके थे कि उनके राज में रावण का वध नहीं किया जा सकता।

विवेक की गिरफ्तारी के बाद सड़क पर उतरे थे आदिवासी

राक्षस नहीं इंसान : रावण की डिजिटल पेंटिंग (इंडियन एक्सप्रेस)

लेकिन पिछले वर्ष यानी 2016 में यह मामला तब परवान चढ़ा जब छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव जिले के युवा सामाजिक कार्यकर्ता विवेक कुमार सिंह को पुलिस ने इस आरोप में गिरफ्तार किया कि उन्होंने दो वर्ष पहले अपने फेसबुक वॉल पर महिषासुर के सांस्कृतिक और धार्मिक पक्ष में टिप्पणी करते हुए दुर्गा का अपमान किया है। पिछड़ी जाति (कुर्मी) से आने वाले विवेक ने राज्य समर्थित मनुवादियों का बखूबी मुकाबला किया। अपने व्यवासाय की चिंता किये बगैर उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी। जमानत मिलने के बाद भी उन्होंने अपनी लड़ाई को जारी रखा है। असल में छत्तीसगढ़ में बड़े बदलाव की बुनियाद इसी घटना ने डाल दिया। इसके बाद छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा से लगे मुंगेलीकर जिले के निवासी विकास खांडेकर को इसी तरह के आरोप में गिरफ्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया।

मनीष कुंजाम की गिरफ्तारी के बाद बदला माहौल

बात तब और बढ़ गयी जब सुकमा इलाके के कोंट विधानसभा क्षेत्र के पूर्व सीपीआई विधायक मनीष कुंजाम के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। यह सारी घटनाएं एक के बाद एक होती गयीं। हालत यह हो गयी कि जिस छत्तीसगढ़ सरकार की पुलिस ने विवेक कुमार सिंह और विकास खांडेकर को गिरफ्तार करने में एक पल की देरी नहीं की थी, उसने मनीष कुंजाम को हाथ तक नहीं लगाया। मामला केवल पूर्व विधायक होने का नहीं था। असल मामला बस्तर और उसके आसपास के आदिवासी समुदाय का जागरूक हो जाना था।

महिषासुर शहादत दिवस को लेकर सोशल मीडिया पर लोकप्रिय हो रहे पोस्टर

मनीष कुंजाम पर आरोप था कि उन्होंने एक वाट्स ऐप पोस्ट के जरिए दुर्गा-महिषासुर मिथक को आदिवासी परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया। उन्होंने लिखा था कि ब्राह्मणों ने संताल महिषासुर को धोखे से मारने के लिए दुर्गा को भेजा था। बस्तर के एक कांग्रेस नेता द्वारा शिकायत किए जाने पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई थी। उसके बाद, धर्म सेना ने सुकमा में उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज करवाया था। इतना ही नहीं सर्व हिन्दू समाज ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किए और इलाके में पुलिस को धारा 144 लगानी पड़ी।

तब कुंजाम के पक्ष में कई जनजातीय संगठन और समूह उनके समर्थन में आगे आए थे। मसलन कोया समाज ने एक बयान जारी कर कहा कि कुंजाम ने किसी समुदाय के अराध्य को अपमानित नहीं किया था। उन्होंने तो केवल यह कहा था कि वे महिषासुर के भक्त हैं।

मनुवादियों को महंगा पड़ा महिषासुरवंशियों को गाली देना

उनके जागरूक होने का ही परिणाम रहा कि पिछले वर्ष 12 मार्च 2016 को जब राजनंदगांव जिले में मनुवादियों को मूलनिवासियों के साझा संघर्ष के खिलाफ सड़क पर उतरना पड़ा। आदिवासियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान मनुवादियों ने जमकर नारा लगाया – महिषासुर के औलादों को, जूते मारो सालों को। जब वे विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तब उनका एक नारा यह भी था – रामायण और गीता को नहीं मानने वालों को, जूता मारो सालों को।

मनुवादियों द्वारा बनाया गया रावण के पुतले

मनुवादियों का यही नारा उनके लिए सबसे खतरनाक साबित हुआ। उसी दिन जागरूक आदिवासियों ने राजनंदगांव जिले के मानपुर थाने में मामला दर्ज कराया। तब स्थानीय मनुवादी मीडिया ने इस खबर को छिपाने की तमाम कोशिशें की। लेकिन अदालत में मामला उलटा पड़ गया। हालत यह हुई कि राजनंदगांव जिले की निचली अदालत ने छह आरोपितों, जिन्होंने महिषासुर को अपना पुरखा मानने वाले आदिवासियों को गाली दी थी, उन्हें अग्रिम जमानत देने से इन्कार कर दिया। तब राजनंदगांव पुलिस भी मनुवादी धर्म का पालन कर रही थी। मामला दर्ज होने बाद आठ महीने तक किसी भी आरोपित को गिरफ्तार करने की जहमत नहीं उठायी।

लेेकिन आक्रोशित आदिवासियों का आंदोलन कहां रूकने वाला था। वे सड़क पर आये दिन अपने सांस्कृतिक अधिकारों के लिए उतर रहे थे। परंतु आदिवासी समुदाय कमान से निकले तीर की तरह साबित हुए। पुलिस को मजबूर होकर एक अारोपी सतीश दूबे को गिरफ्तार करना पड़ा। मामला छत्तीसगढ़ कोर्ट पहुंच गया। वजह यह कि निचली अदालत अग्रिम जमानत की याचिका को पहले ही खारिज कर चुकी थी।

अदालत में मनुवादियों के खिलाफ लड़ी छत्तीसगढ़ सरकार

अब यह मामला पूरी तरह बदल चुका था। दो पक्ष सामने थे। पहला पक्ष था सतीश दूबे, वल्द जगदीश प्रसाद दूबे, उम्र करीब 47 वर्ष, पता – वार्ड संख्या 12, थाना और तहसील मानपुर, जिला – राजनंदगांव, छत्तीसगढ़। दूसरा पक्ष के रूप में स्वयं छत्तीसगढ़ सरकार थी। आरोपी सतीश दूबे की तरफ से केस लड़ने वाला वकील एक ब्राह्म्ण था। नाम था – शैलेंद्र दूबे। जबकि छत्तीसगढ़ की सरकार की तरफ से वकील विनोद टेकाम थे।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला : महिषासुर को आराध्य माननेवालों को गाली देने वाले सतीश दूबे की जमानत याचिका को खारिज करने संबंधी न्यायादेश

तारीख थी 1 जुलाई 2016। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहला दिन जब एक राज्य सरकार मनुवादियों के खिलाफ लड़ रही थी। जज थे गौतम भादुड़ी। मनुवादी सतीश दूबे के पक्षकार वकील शैलेंद्र दूबे ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल ने कोई अपराध ही नहीं किया। मानों आदिवासियों का कोई धर्म ही नहीं। अदालत में उनके तर्कों का पुरजोर विरोध करते हुए वकील विनोद टेकाम ने तमाम तथ्यों के साथ यह साबित किया कि देश में अन्य सभी धर्म-संप्रदायों को मानने वालों के जैसे ही आदिवासियों का भी अपना धर्म है और जब कोई उनके पुरखों को गाली देता है या फिर गलत तरीके से चित्रित करता है तो  पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के अनुच्छेद  244(1), अनुच्छेद 13(3) (क), अनुच्छेद 19(5) (6) के प्रावधानों के तहत दंडनीय है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जज गौतम भादुड़ी श्री टेकाम के तर्कों से सहमत हुए और ऐतिहासिक न्यायादेश देते हुए जमानत याचिका को खारिज कर दिया।

बहरहाल इस एक घटना ने पूरे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के हौसले को नयी ऊर्जा दी। परिणाम 28 सितंबर 2017 को सामने तब आया जब कांकेर के पंखाजुर थाने की पुलिस को परलकोट इलाके में दुर्गा की प्रतिमा के बहाने महिषासुर का गलत चित्रण करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करना पड़ा। यह एक ऐतिहासिक जीत है। जीत इस मायने में कि आदि काल से सांस्कृतिक गुलामी झेल रहे मूलनिवासियों के संघर्ष के आगे ब्राह्मणवादियों को झुकना पड़ा। वैसे यह केवल आगाज ही है। आने वाले समय में इसके परिणाम सामने आयेंगे जब देश में कोई भी रावण और महिषासुर के नाम पर भारत के किसी भी मूलनिवासी को गाली देने की हिम्मत नहीं कर सकेगा। फिर चाहे वह मूलनिवासी झारखंड के असुर हों या फिर देश के कई राज्यों में रहने वाले मुंडा और उरांव। यहां तक कि दक्षिण के लिंगायतों, द्रविड़ों और बिहार के दलितों और पिछड़ों को भी छाती ठोक कर कहने की विधिक ताकत होगी कि ब्राह्मणवादी देवी-देवता उनके भगवान नहीं। उनके आराध्य तो महिषासुर, म्हसोबा, म्हतोबा, मैकासुर,, महिष, रावण, मनुस देवा हैं जो सुदूर हिमालय में बसे किन्नौर से लेकर कर्नाटक तक लगभग एक जैसे ही दिखते हैं।


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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