हिंदी साहित्यकार बनाफर चंद्र का निधन बीते 2 नवंबर की रात बिहार के डेहरी ओन सोन में हो गया। उनके निधन पर सासाराम के एक गांव में ग्रामीणों ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

युवा साहित्यकार डॉ. हरे राम सिंह के नेतृत्व में श्रीरामपुर गांव के निवासियों ने सामुहिक रूप से बनाफर चंद्र के साहित्यिक योगदानों की चर्चा की और उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। इस संबंध में हरे राम सिंह ने वीडियो भी जारी किया है।
बताते चलें कि बनाफर चंद्र 67 वर्ष के थे और भोपाल में रहते थे। उनका जन्म 2 जुलाई 1950 को बिहार के काराकाट के श्रीरामपुर गांव में कुशवाहा परिवार में हुआ था। उनकी रचनायें बहुजन परंपरा और श्रम संस्कृति पर आधारित थाीं। उनकी मुख्य रचनाओं में ‘धारा’, ‘जमीन’, ‘काला पक्षी’, ‘अधूरा सफर’, बीता हुआ कल’,’ सवालों के बीच’, ’बस्ती’ और ‘अंधेरा’ आदि शामिल हैं।
वीडियो पर जारी अपने शोक संदेश में डॉ. हरे राम सिंह ने ग्रामीणों को बनाफर चंद्र के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कुशवाहा परिवार में जन्में बनाफर चंद्र जी लोगों के जीवन से जुड़े थे। उनकी रचनाओं में गांव, समाज, सामंतवाद के खिलाफ आक्रोश और समरस समाज की स्थापना के भाव निहित होते थे। उन्होंने यह भी बताया कि बनाफर चंद्र को रेणु सम्मान 1996 में मिला। उनके निधन से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है।
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