h n

मनुवादी कर रहे बस्तर के आदिवासियों और ओबीसी को हिन्दू बनाने का प्रयास

लोकेश सोरी छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के पखांजूर थाने के आदिवासी नेता हैं। उन्होंने 27 सितंबर 2017 को दुर्गापूजा के आयोजकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराकर इतिहास रचा था। पुलिस ने उन्हें ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जमानत मिलने पर रिहा हुए तामेश्वर सिन्हा ने उनसे बातचीत की :

आदिवासी हिंदू नहीं हैं। भाजपा आदिवासियों काे हिंदू बनाने का षडयंत्र कर रही है। यह कहना है भारत में पहली बार दुर्गापूजा के आयोजकों के खिलाफ पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करवाने वाले लोकेश सोरी का। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के पखांजूर थाने में बीते 27 सितंबर 2017 को लोकेश ने यह मुकदमा दर्ज करवाया था। परंतु 29 सितंबर को पुलिस ने उन्हें ही गिरफ्तार कर लिया। बाद में सत्रह दिनों के बाद कांकेर की निचली अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया।

सत्रह दिनों के बाद जमानत मिलने पर जेल से रिहा हुए लोकेश सोरी अपने समर्थकों के साथ

उनके रिहा होने के बाद फारवर्ड प्रेस के लिए तामेश्वर सिन्हा ने उनसे विशेष बातचीत की। इस बातचीत में उन्होंने बस्तर के गोंड आदिवासियों के इलाके में रावेन और महिषासुर की परंपरा, राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक विषयों पर विस्तार से चर्चा की।  इस दौरान उन्होंने बस्तर को आदिवासियों का देश घोषित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में पांचवीं अनुसूची का प्रावधान है और आदिवासी बहुल इलाकों के लिए विशेष व्यवस्था है। परंतु सरकारें इस संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन कर रही हैं।

बस्तर के इलाकों में लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे गोल्डी जार्ज के अनुसार भी कांकेर और उसके आसपास के इलाकों में रहने वाले अधिसंख्य मूलनिवासी स्वयं को हिन्दू नहीं मानते हैं। हालांकि बांग्लादेशी शरणार्थी जो दलित और ओबीसी भी हैं, स्वयं को हिन्दू मानते हैं। इनकी संख्या कम है। लेकिन हाल के वर्षों में आरएसएस ने पूरे इलाके में सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को बढ़ावा दिया है और इस क्रम में कई दलित जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी से बाहर निकालकर ओबीसी में शामिल किया गया है। इनमें महार जाति के लोग हैं।

प्रस्तुत है तामेश्वर सिन्हा द्वारा लोकेश सोरी से बातचीत का संपादित अंश :

आपने दुर्गापूजा के आयोजकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया। इसकी वजह क्या थी?

कांकेर के हमारे इलाके पखांजूर में बाहरी लोग पिछले कई वर्षों से दुर्गापूजा का आयोजन कर रहे हैं। लेकिन इस आयोजन के साथ ही वे हमारे पुरखों रावेन और महिषासुर का अपमान भी करते हैं।  इस इलाके में हम आदिवासी, दलित, पिछड़ा वर्ग के लोग अधिक हैं जिनके लिए रावेन और महिषासुर आराध्य हैं। इस मामले को आजतक किसी ने उठाया नहीं था। हमारे जो पूर्वज हैं महिषासुर जिन्हें हम गोंडी भाषा में परीओ पाड कहते हैं। बाहरी लोग दुर्गा की ऐसी मूर्तियाें की सार्वजनिक पूजा करते हैं जिसमें वह हमारे महिषासुर त्रिशुल से वध करती है। मुझे अपने पुरखों का अपमान सहन नहीं हुआ और मैंने पखांजूर थाना में जाकर इसकी शिकायत दर्ज करवायी।

लोकेश जी आपने भाजपा के स्थानीय नेता रहने के बावजूद यह मामला दर्ज करवाया। जबकि भाजपा पर ब्राह्म्णवादी मूल्यों को बढ़ावा देने की बात कही जाती है।

आपने सही कहा। ब्राह्म्णवाद तो उनका(भाजपाइयों) शुरू से है। मुझे उससे कोई लेना-देना नहीं है। मेरा कहना है कि उन्हें जो करना है करें लेकिन हमलोग जो पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में रहते हैं, यहां हस्तक्षेप न करें। संविधान की धारा 244 एवं अन्य प्रावधानों के तहत हमारा बस्तर क्षेत्र विशेष क्षेत्र हैं। मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि हमारे क्षेत्र में आदिवासी, दलित और ओबीसी हिंदू नहीं हैं। ब्राह्म्णवाद हिंदू धर्म को दर्शाता है। भाजपा की यह नीति रही है कि वह हम दलितों,आदिवासियों और ओबीसी का हिन्दूकरण करे ताकि वे हमारा शोषण कर सकें। उनकी मानसिकता है कि हम अपनी परंपरा जो प्रकृति पर आधारित है, उसे भूलकर उनकी काल्पनिक कहानियों में विश्वास करें और अपने सांस्कृतिक इतिहास को भूल जायें।

लोकेश जी, जब आप दुर्गापूजा के आयोजकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाने पहुंचे तब आपके साथ कैसा बर्ताव किया गया?

मैं मामला दर्ज कराने पखांजूर थाना गया था। वहां एक ब्राह्मण बैठा था। दारोगा था। नाम था धीरेंद्र नाथ दूबे। उसने मुझे भद्दी-भद्दी गालियां दी। उसने कहा कि छत्तीसगढ़ के अन्य इलाकों में गोंड-सोंड (अपशब्द) रहते हैं लेकिन वे तो हिंदू हैं और तुमलोग कैसें गोंड हो (अपशब्द)। ऐसा कहते हुए उस ब्राह्मण दारोगा ने मेरी शिकायत को उछालकर मेरी ओर फेंक दिया। मैंने विरोध किया।

उसी थाने में आपके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया और आपको गिरफ्तार भी किया गया। क्या था असली मामला?

मामला क्या था। मुझे फंसाने की कोशिश की गयी। मैं शुरू से सामाजिक कार्यकर्ता रहा हूं। मैंने अपने समाज के लिए हमेशा आवाज उठाया है। मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि बाहरी लोगों ने हमारे क्षेत्र में जाति और धर्म के आधार पर हमारे लोगों को बांटने की कोशिशें की है। वे आज भी यही प्रयास कर रहे हैं। हम इसका विरोध करते हैं। दरअसल मैंने एक सवाल जो कि उनकी ही मान्यताओं से जुड़ा था, उसके बारे में जानकारी लेनी चाही तो उनलोगों ने तिल का ताड़ बना दिया और मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया।

अब आपके आंदोलन की रूपरेखा क्या होगी?

एक बात तो साफ-साफ कह दूं कि मैं अपने पुरखों का अपमान नहीं सहुंगा और इसके लिए लड़ता रहूंगा। इसके अलावा मैं अभी एक आंदोलन चला रहा हूं जिसके तहत हम बस्तर संभाग को अलग देश के रूप में मान्यता दिये जाने की मांग कर रहा हूं। संविधान में इसका प्रावधान भी है। इसी बस्तर देश में वे इलाके भी शामिल किये जायें जो पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र में आते हैं। इसका सामाजिक और आर्थिक पक्ष भी है। हमारे बस्तर में सभी प्रकार के खनिज मिलते हैं। वे हमारी धरती से ही बहुमूल्य खनिज निकालते हैँ और दूसरे देशों में बेचते हैं। बदले में हम बस्तर के लोगों को कुछ भी नहीं मिलता है। हम इसके खिलाफ आंदोलन तेज करेंगे।


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित,

ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :

जाति के प्रश्न पर कबीर (Jati ke Prashn Par Kabir)

https://www.amazon.in/dp/B075R7X7N5

महिषासुर : एक जननायक (Mahishasur: Ek Jannayak)

https://www.amazon.in/dp/B06XGBK1NC

चिंतन के जन सरोकार (Chintan Ke Jansarokar)

https://www.amazon.in/dp/B0721KMRGL

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना (Bahujan Sahitya Ki Prastaawanaa)

https://www.amazon.in/dp/B0749PKDCX

 

 

लेखक के बारे में

तामेश्वर सिन्हा

तामेश्वर सिन्हा छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इन्होंने आदिवासियों के संघर्ष को अपनी पत्रकारिता का केंद्र बनाया है और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रिपोर्टिंग करते हैं

संबंधित आलेख

सामाजिक आंदोलन में भाव, निभाव, एवं भावनाओं का संयोजन थे कांशीराम
जब तक आपको यह एहसास नहीं होगा कि आप संरचना में किस हाशिये से आते हैं, आप उस व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा...
दलित कविता में प्रतिक्रांति का स्वर
उत्तर भारत में दलित कविता के क्षेत्र में शून्यता की स्थिति तब भी नहीं थी, जब डॉ. आंबेडकर का आंदोलन चल रहा था। उस...
पुनर्पाठ : सिंधु घाटी बोल उठी
डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर का यह काव्य संकलन 1990 में प्रकाशित हुआ। इसकी विचारोत्तेजक भूमिका डॉ. धर्मवीर ने लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि...
यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
कबीर पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक 
कबीर पूर्वी उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर के जनजीवन में रच-बस गए हैं। अकसर सुबह-सुबह गांव कहीं दूर से आती हुई कबीरा की आवाज़...