गोंड आदिवासियों में कोया समुदाय के देवतुल्य लिंगो पेन के बड़े भाई उसेह मुदिया के नाम से प्रत्येक सात वर्ष पर होने वाले बड़े धार्मिक समागम पेन करसाड़ को इस बार आयोजकों ने धार्मिक व्यवहारों और परंपरागत प्रशिक्षणों के अलावा संवैधानिक प्रशिक्षण और कुछ प्रगतिशील विचारों पर भी केंद्रित किया है। हिंदुओं के कुंभ, मुस्लिमों के हज और बौद्धों के कालचक्र की तरह बड़े सामाजिक जुटान वाले इस विश्व प्रसिद्ध आयोजन से, कहा जा सकता है, कि गोंड आदिवासियों में जल, जंगल, जमीन और अपनी परंपराओं को लेकर नई ऊर्जा का संचार होगा।

उसेह मुदया पेन राउड़ समिति, बोमरा के बैनर तले आयोजित होने वाले इस पेन करसाड़ के आमंत्रण में ही इसमें आने वाले सभी गोंड आदिवासियों के लिए भोजन, शयन, वस्त्र, व्यवहार सबकी सामाजिक परंपराएं अनिवार्य की गई हैं। किसी भी राजनीतिक दल की पहचान, परिचय या प्रचार के साथ-साथ पूरे आयोजन में पॉलीथिन और प्लास्टिक का प्रयोग भी निषिद्ध किया गया है। पेन करसाड़ को तीन खंडों में बांटा गया है- 23-24 मई को कोया पूनेम[2] एवं संवैधानिक प्रशिक्षण, 24 मई की रात को पेन करसना [3] एवं 25 मई को पेन सेवा[4]।
यह भी पढ़ें – कौन हैं पारी कुपार लिंगो, जिनके लिए हो रहा यह भव्य आयोजन
आयोजकों के अनुसार, पेन करसाड़ से गोंडवाना के युवाओं को नई ऊर्जा, नई गति और नई दिशा मिलेगी। पुरखों के सम्मान पर आधारित और सैकड़ों-हजारों वर्षों के अनुभवों व व्यवहार वाली परंपराओं को और मजबूती मिलेगी। दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में कोया भुमकाल विचार धारा के मास्टर ट्रेनर तथा गोंड आदिवासियों की धार्मिक-सामाजिक परंपराओं और नवाचारों के सामुदायिक प्रशिक्षण केंद्र ‘गोटुल’ के प्रशिक्षक लोगों का मार्गदर्शन करेंगे। पेन करसाड़ में लड़के-लड़कियों के अलावा सभी गायता, भूमिया, माझी, पेनवो, पटेल, पुजारी[5] को शामिल होने के लिए कहा गया है।

इस आयोजन के एजेंडे में सहस्त्राब्दियों के सतत वैज्ञनिक अनुसंधानों से जांची-परखी रूढिगत विश्वासों व परंपराओ को और मजबूत करने, वर्तमान में तेजी से हो रहे पर्यावरण की क्षति व प्रकृति को नष्ट होने से बचाने, कोयतोरिन टेक्नोलाजी[6]का अनुप्रयोग करने, पेन ऊर्जाओं पर आधारित नार्र-जागा-गढ़-मंडा[7] को समझने, गोटुल एजुकेशन सिस्टम के साथ आधुनिक शिक्षा पद्धति को भी समझने, पेसा कानून, वनाधिकार कानून व भारतीय संविधान की पाँचवीं अनुसूची को समझने, गायता, पेनवो, माझी, भूमिया, पेन व्यवस्था जैसे अद्भुत तत्वों व संरचनाओं को समझकर लयह-लयोरओं[8] में आत्मविश्वास बढ़ाने आदि अनेक महत्वपूर्ण बिंदु हैं।
यह भी पढ़ें : पारी कुपार लिंगो पेन जतरा में लगा ‘हिंदू नहीं, हम गोंड हैं’ का नारा
पेन करसाड़ में आने वाले सभी प्रतिभागियों से कहा गया है कि इस आयोजन में उन्हें गोंड आदिवासियों के परंपरागत गोटुल एजुकेशन सिस्टम की तरह अनुशासित ढंग से रहना होगा! ‘प्रशिक्षक ही प्रशिक्षु और प्रशिक्षु भी प्रशिक्षक’ जैसी भावना से सब एक-दूसरे को सिखलाएंगे। खुद का ओढ़ना-बिछौना साथ लाने को कहा गया है और सबके लिए किसी भी प्रकार का नशा वर्जित किया गया है। पेन करसाड़ के अनुशासन संबन्धी नियम और इसकी सामाजिकता, दूसरे सभी धर्म, समुदाय, विचार और बुद्धि वालों के लिए प्रेरणास्रोत हो सकते हैं; जिनके आयोजन बड़े और भव्य तो होते हैं, मगर उनमें अनुशासन व सामाजिकता होती ही नहीं है।
(गोंड परंपरा व शब्दों के हिंदी अनुवाद में गोंड संस्कृति व भाषा की विशेषज्ञ चंद्रलेखा कंगाली ने सहयोग किया है)
[1] धार्मिक-सामाजिक समागम
[2] कोया समुदाय की धार्मिक रीति-रिवाजों की रात
[3] विभिन्न गांवों से देव-शक्तियों की जुटान
[4] पूजा-व्यवहार
[5] धार्मिक-सांस्कृतिक-सामाजिक पदवियाँ
[6] कोया समुदाय की प्रकृति प्रेम व पर्यावरण रक्षा आधारित परंपरा/तकनीक
[7] कोया समुदाय की प्रकृति प्रेम व पर्यावरण रक्षा आधारित परंपरा/तकनीक
[8] लड़के-लड़कियां
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :
दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार