पिछले दिनों संपन्न हुए उपचुनावों के परिणाम ने भाजपा और आरएसएस की नींद उड़ा दी है। खासकर गोरखपुर की सीट पर मिली पराजय ने योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक पहचान पर सवालिया निशान लगा दिया है। ऐसे में खुद का खूंटा मजबूत करने के लिए आदित्यनाथ ने राजनाथ सिंह के फार्मूले को अपनाने का एलान किया है। बताते चलें कि राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए पिछड़ा वर्ग को अति पिछड़ा वर्ग में बांटने की बात कही थी। जब उन्होंने ऐसा किया था तब उनके सामने मुलायम सिंह यादव और कांशीराम थे। दलित और ओबीसी की उस एकता ने उस नारे को चरितार्थ कर दिया था जिसमें कहा गया था – एक हो गए मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गये जयश्री राम।

आज फिर सपा और बसपा एक साथ हैं। लिहाजा पुराने फार्मूले को लागू करने की कोशिशें की जा रही है।
राष्ट्रीय स्तर पर भी आरक्षण का सवाल मुख्य मुद्दा बन चुका है। जहां एक ओर आरएसएस-भाजपा आरक्षण की समीक्षा करने की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर वे पार्टियां जिनके एजेंडे में आरक्षण है, वे समीक्षा को आरक्षण को खात्मे के रूप में देख रही हैं। सरकार का कहना है कि वह आरक्षण की समीक्षा करके इसका लाभ उन्हें देना चाहती है जो अभी तक इससे वंचित हैं। जाहिर तौर पर ऐसा वे निस्वार्थ भावना से नहीं कह रहे हैं। इसमें कई पेंचोखम हैं।
पहले इस आंकड़े को समझते हैं जो भारत सरकार कार्मिक एवं लोक शिकायत मंत्रालय के वेबसाइट पर जारी किया गया है। इसके मुताबिक 1 जनवरी 2016 को केंद्र सरकार के अधीन सभी कर्मचारियों की संख्या 32 लाख 57 हजार 812 है। इसमें एससी की संख्या 5 लाख 69 हजार 768, एसटी की संख्या 2 लाख 75 हजार 984 और ओबीसी कर्मचारियों की संख्या 7 लाख 2 हजार 951 है। जबकि सामान्य वर्ग के कर्मचारियों की संख्या 17 लाख 9 हजार 109 है। यानी न तो एससी व एसटी को उनकी संख्या के अनुसार आरक्षण का लाभ मिल सका है और न ही ओबीसी को।

केंद्रीय सेवाओं में एससी, एसटी और ओबीसी
श्रेणी | कुल नौकरियां | एससी | एसटी | ओबीसी | सामान्य |
---|---|---|---|---|---|
ग्रुप ए | 84,521 | 11,312 | 5005 | 11002 | 57,202 |
ग्रुप बी | 2,,90,598 | 46,583 | 20,910 | 42,975 | 1,80,130 |
ग्रुप सी | 28,33,696 | 4,89,749 | 2,46,685 | 6,41,873 | 14,55,389 |
अन्य(सफाई कर्मचारी) | 48,997 | 22,124 | 3384 | 7101 | 16,388 |
कुल | 32,57,812 | 5,69,768 | 2,25,984 | 7,02,951 | 17,09,109 |
श्रोत : केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 1 जनवरी 2016 को जारी |
इन आंकड़ों के परे भी एक आंकड़ा है। देश में ग्रुप ए के तहत कुल 84 हजार 521 कर्मचारी हैं। अब जरा इसमें आरक्षितों का प्रतिनिधित्व देखिए। ग्रुप ए में अनुसूचित जाति के कुल कर्मचारियों की संख्या 11 हजार 312 है। अनुसूचित जनजाति के कर्मियों की संख्या केवल 5005 और 60 फीसदी से अधिक की आबादी वाले ओबीसी वर्ग के कर्मियों की संख्या केवल 11,002। जबकि 15-18 फीसदी वाले ऊंची जातियों के कर्मियों की संख्या 57 हजार 202 है। आरक्षण की समीक्षा की बात कहने वालों की राजनीति को समझने से पहले कुछ आंकड़ों की और पड़ताल करते हैं।

ग्रुप बी की नौकरियों की बात करते हैं। कुल कर्मियों की संख्या 2 लाख 90 हजार 598 है। इसमें एससी,एसटी और ओबीसी सभी को मिला दें तो कुल संख्या 1 लाख 10 हजार 468 पहुंचती है। वहीं गैर आरक्षित कर्मियों की संख्या 1 लाख 80 हजार 130 है।
अब जरा उच्च शिक्षा की नौकरियों में आरक्षण के अनुपालन पर निगाह डालते हैं। इसी वर्ष बजट सत्र के दौरान राज्यसभा सदस्य पी. एल. पुनिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में मानव संसाधन विकास विभाग के मंत्री प्रकाश जावेडकर ने बताया कि देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 11,109 कर्मी विभिन्न कोटि के पदों पर पदस्थापित हैं। इनमें एससी 1023, एसटी 439 और ओबीसी 993 हैं। जबकि ऊंची जातियों के कर्मियों की संख्या 8513 है।
देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण
सामान्य | अनुसूचित जाति | अनुसूचित जनजाति | ओबीसी | विकलांग | कुल | |
---|---|---|---|---|---|---|
पद क्षमता | 11721 | 2096 | 1046 | 1897 | 345 | 17106 |
नियुक्ति | 8513 | 1023 | 439 | 993 | 141 | 11109 |
जाहिर तौर पर केंद्र सरकार के ये आंकड़े बताते हैं कि प्रावधान होने के बावजूद आरक्षण का अनुपालन समुचित रूप से नहीं किया जा रहा है। ऐसे में आरक्षण की समीक्षा की बात करना राजनीतिक चाल ही है। हालांकि केंद्र सरकार के इस चाल में उसके घटक दल ही साथ खड़े नहीं दिख रहे हैं। एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के वरिष्ठ नेता रामबिहारी सिंह ने बताया कि उनकी पार्टी आरक्षण की समीक्षा पर भाजपा के साथ नहीं है। उन्होंने बताया कि उनकी पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने लोकसभा में कहा है कि क्रीमीलेयर की व्यवस्था ही खत्म हो। उनके मुताबिक सरकार आरक्षण की समीक्षा करने के पहले आरक्षित वर्गों का समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करे।

योजना आयोग व राज्य सभा के पूर्व सदस्य डॉ. भालचंद्र मुणगेकर के अनुसार पिछड़ों में पिछड़ों की तलाश महज भ्रम फैलाने के जैसा है। उन्हाेंने कहा कि क्रीमीलेयर का प्रावधान इसलिए किया गया था कि जो समर्थ हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ न मिल सके। इसलिए पिछड़ों में और पिछड़ों की बात करना महज उन्हें धोखा देने के समान है।

वहीं प्रख्यात बहुजन चिंतक व साहित्यकार प्रेम कुमार मणि के अनुसार योगी आदित्यनाथ कुछ नया नहीं कर रहे हैं। बिहार में कर्पूरी ठाकुर ने अति पिछड़ा वर्ग बनाया था। यह लालू प्रसाद के कार्यकाल में भी जारी रहा और नीतीश कुमार ने भी इसे नहीं छेड़ा। भाजपा के लिए भी यह पहला मौका नहीं है। स्वयं नरेंद्र मोदी ने 2014 में लोक सभा चुनाव के दौरान अति पिछड़ा का कार्ड खेला था। लेकिन उन्हें यह बताना चाहिए कि उन्होंने अति पिछड़ों के लिए क्या किया। जहां तक अति पिछड़ा को अधिक अधिकार दिये जाने की बात है तो इसमें गलत क्या है। मेरी सलाह तो यह है कि इसे जेएएनयू में आरक्षण के लिए निर्धारित अंक प्रणाली के आधार पर लागू किया जाय। मतलब यह कि अति पिछड़ा के विभिन्न मानक तय किये जायें। जैसे सबसे अधिक प्राथमिकता भूमिहीन अतिपिछड़ों को मिले। गांवों में रहने वाले अति पिछड़ों को भी प्राथमिकता में शामिल किया जाय। मैं तो यह मानता हूं कि 27 फीसदी का आंकड़ा ही गलत है। पिछड़ा वर्ग की आबादी 54 फीसदी है। लेकिन मंडल कमीशन ने 27 फीसदी आरक्षण दिया। अनुपालन के संबंध में अबतक जो आंकड़े आये हैं, उसके अनुसार 7 से 8 प्रतिशत ही आरक्षण ओबीसी को मिल पाता है। मैं तो यह मांग करता हूं कि ओबीसी को उनकी आबादी के हिसाब से आरक्षण मिलना चाहिए और एेसे प्रावधान तय किये जायें ताकि 54 फीसदी पर अति पिछड़े वर्ग के लोग काबिज हो जायें। इसका तो आगे बढ़कर स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन भाजपा और आरएसएस केवल राज करने के लिए बांटने की राजनीति कर रहे हैं। दरअसल वे अपने मुख्य एजेंडे जिनमें राम मंदिर और ब्राह्मणवादी एजेंडे शामिल हैं, उन्हें लागू करने के लिए अति पिछड़ों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं।

जबकि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता घनश्याम तिवारी ने कहा कि भाजपा वोटों के लिए जाति की राजनीति कर रही है। राम मनोहर लोहिया ने भी कहा था कि जातियां भारतीय समाज की सच्चाई है। इनके बीच की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक खाई को पाटा जाना चाहिए। लेकिन भाजपा इस खाई को बढ़ाने का प्रयास कर रही है। इसमें उसे विफलता ही हाथ लगेगी। तिवारी ने कहा कि वर्तमान में नौकरियों के संबंध में जो आंकड़े आये हैं, वे बताते हैं कि किस तरह आरक्षित वर्ग के लोगों को ठगा गया है। आरक्षण का अनुपालन शतप्रतिशत करने के बजाय आंकड़ों की बाजीगरी की जा रही है।

वहीं बसपा के वरिष्ठ नेता व बांसगांव विधानसभा से 2020 में होने वाले चुनाव के लिए घोषित प्रत्याशी श्रवण निराला मानते हैं कि आरक्षण को लेकर आरएसएस का नजरिया नकारात्मक है। वह वर्षों से खाली पड़े बैकलॉग को लेकर कोई पहल नहीं करना चाहती है। साथ वह यह भी नहीं चाहती है कि सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्गों को उनका वाजिब हक मिले। केवल वोट के लिए दलितों और ओबीसी को बांटना चाहती है। इसकी वजह बताते हुए निराला ने कहा कि समाजवादी पार्टी और उनकी पार्टी बहुजन समाज पार्टी के बीच एकता के कारण उपचुनावों में मिली हार के बाद भाजपा साजिश रच रही है। लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिलेगी।

बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है जब पिछड़ा वर्ग को बांटने का प्रयास किया गया है। दिसंबर 2005 में लालू प्रसाद के बाद सत्तासीन हुए नीतीश कुमार ने सबसे पहले जो तीन फैसले लिए, उनमें जस्टिस अमीरदास आयोग को भंग करने के बाद दूसरे नंबर पर अति पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन का फैसला था। वे भी बिहार में यादवों को ओबीसी की अन्य जातियों से अलग कर देना चाहते थे। यही अब योगी आदित्यनाथ कर देना चाहते हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे आरएसएस का ब्रम्हास्त्र करार दे रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा के इस ब्रम्हास्त्र का असर क्या होता है। वजह यह कि राजनाथ सिंह के फार्मूले को उस समय भी यही संज्ञा दी गयी थी और अनुमान लगाया गया था कि समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी की राजनीतिक धरती छीन जाएगी।
(कॉपी एडिटर : नवल)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :
दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार