हिंदी के प्रख्यात पत्रकार, संपादक और लेखक श्री राजकिशोर का निधन हो गया। आज 4 जून 2018 को नई दिल्ली के एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे फेफड़ों में संक्रमण के कारण बीते कई दिनों से यहां भर्ती थे। उनके निधन से पत्रकारिता और साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है।
राजकिशोर जी के परिवार पर बीते एक-डेढ़ महीने के अंदर यह दूसरा वज्रपात हुआ है। इससे पहले बीते 22 अप्रैल 2018 को उनके पुत्र विवेक राज का निधन हो गया था। करीब 40 वर्षीय विवेक एक सजग पत्रकार के साथ-साथ फिल्म तथा वृत्त चित्र निर्माता थे। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत बीबीसी से की थी। बीबीसी में रहते हुए उन्होंने 3 वर्ष तक बीजिंग में काम किया। वे लगभग 12 वर्ष तक बीबीसी में कार्य करते रहे और वहाँ से दक्षिण एशिया के ब्यूरो पद से सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद वे अमेरिका के सबसे लोकप्रिय टीवी चैनल एबीसी के साथ जुड़े और स्वतंत्र रूप से भी काम करते रहे। वे बिल गेट्स की स्वच्छता से संबंधित एक बड़ी परियोजना में काम कर रहे थे।

राजकिशोर जी अपने इकलौते पुत्र के निधन के दुःख से उबर ही नहीं पाये कि उनकी तबीयत बीते 15 मई को अचानक बिगड़ गई। उनकी पत्नी उन्हें लेकर नज़दीक के अस्पताल गईं। जहां डाक्टर ने कहा कि इन्हें जल्दी किसी ऐसे अस्पताल में ले जाइये, जहां ऑक्सीजन देने की सुविधा उपलब्ध हो। पड़ोसियों की मदद से उन्हें नोएडा सेक्टर-27 के कैलाश अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां उनकी स्थिति में सुधार न देख अगले दिन (बुधवार) की सुबह उन्हें एम्स ले जाया गया। एम्स में लंबे इलाज के बाद भी उनकी स्थिति में सुधार नहीं हो सका।
राजकिशोर जी अपने पीछे अपनी पत्नी, बेटी और पोते-पोती छोड़ गये हैं। उनके परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा है। पहले अपने बेटे और अब अपने जीवन-साथी को खोने वाली उनकी जीवन संगिनी का दु:ख शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। हालांकि, एम्स में इलाज के दौरान उन्होंने हिम्मत से काम लिया और अंतिम समय तक राजकिशोर जी के साथ खड़ी रहीं।
फारवर्ड प्रेस परिवार के साथ वे जुड़े रहे। राजकिशोर अपने वैचारिक लेखन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने उपन्यास व कविताएं भी लिखी हैं। हाल ही में उन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब ‘एनहिलेशन ऑफ कास्ट’ का ‘जाति का विनाश’ शीर्षक से हिंदी अनुवाद किया है, जो फारवर्ड प्रेस बुक्स से शीघ्र ही प्रकाश्य है। दुर्भाग्यवश यह उनकी अंतिम कृति साबित हो रही है। उनका इस कदर चले जाना यही कहता है-
बड़े ग़ौर से सुन रहा था ज़माना,
तुम ही सो गये दास्तां कहते-कहते।
(कॉपी संपादन : नवल/प्रेम बरेलवी)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :
दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार
जाति के प्रश्न पर कबीर चिंतन के जन सरोकार