भयंकर बाढ़ के बीच भी याद रहा जातिवाद और छुआछूत का सवर्णी संस्कार
जीव की प्रकृति है कि वह संकट में एक हो जाता है। पर भारतीय उप महाद्वीप के मनुष्यों ने इस मानवीय गरिमा से अपने को मुक्त रखा है। वे घनघोर संकट में भी अपनी जातीय—सांप्रदायिक श्रेष्ठता के दस रास्ते खोज लाते हैं और उसी में आनंदित होते हैं। केरल में भी उसी जातीय, पौराणिक मूर्खता के प्रहसन का चरमोत्कर्ष देखने को मिला कि जब जिंदगी मौत के मुंह में समाने को थी और तब भी कुछ ‘संस्कारी’ जनेऊ और जाति खोजने में लगे थे।
केरल में आई बाढ़ के बीच 25 जुलाई को अलापुझा जिले के हरिपद में 20 लोगों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत इसलिए मुकदमा दर्ज करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने दलितों का खाना अपने साथ नहीं बनने दिया और न ही उनका बनाया खाना खाया। सवर्णों के लिए राहत कैंप में दूसरा चूल्हा जलाना पड़ा। केरला पुलायार महासभा ने जिलाधिकारी को दिए अपनी शिकायत में कहा कि अंजीलीमूदू के पालीपद प्राथमिक विद्यालय में लगे खाने के कैंप में कुछ लोगों ने दलितों को बहुत बेइज्जत किया और उनका बनाया खाना नहीं खाया।
बाढ़ में फंसे ब्राह्मण परिवार ने नाव पर चढ़ने से पहले पूछा नाविक का धर्म
दूसरी घटना केरल के कोल्लम जिले की है, जहां कुछ लोगों ने एक नाव पर इसलिए चढ़ने से मना कर दिया, क्योंकि उसका नाविक एक क्रिश्चियन था। 47 वर्षीय मछुआरे मैरिअन जॉर्ज ने वेबसाइट सीएनएन को बताया कि 17 अगस्त को जब वह कोल्लम जिले के एक परिवार जिसमें 17 लोग थे, जब उनको लेने बाढ़ से निकाल सुरक्षित स्थान पर ले जाने पहुंचा तो उनका पहला सवाल था, ‘यह एक क्रिश्चियन बोट नहीं है न?’ जॉर्ज ने कहा, हां यह एक क्रिश्चियन की बोट है और मैं क्रिश्चियन हूं।’

बाढ़ में फंसा एक दंपत्ति
मछुआरा मैरियन जॉर्ज केरल के उन हजारों स्वयंसेवी मछुआरों में से एक था जो अपनी इच्छा से, बगैर किसी सरकारी मदद के केरल के भीतरी और शहरी इलाकों में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रहे हैं।
मैरियन जॉर्ज के मुताबिक, ‘मुझसे सवाल करने वाला परिवार हिंदुओं की ऊंची जाति ब्राम्हण से था। परिवार चाहता था कि जब वे मेरी नाव में बैठे तो उनका शरीर मुझसे किसी तरह से न छुए। मैंने कहा भी, आप लोग आ जाइए, मुझसे आपका शरीर नहीं टच करेगा। पर बाद में उनमें से एक ने मेरी नाव में बैठने से ही साफ इनकार कर दिया।’
पांच घंटे बाद जब जॉर्ज वापस लौटा तो अभी उस परिवार को रेस्क्यू नहीं किया गया था। वह परिवार फिर से जॉर्ज को देखते ही मदद के लिए चिल्लाने लगा। लेकिन तब भी इस परिवार ने कहा कि देखना, हमसे तुम्हारा शरीर न छू जाए। खैर, जॉर्ज ने इस जातीय—सांप्रदायिक भेदभाव को सहन करते हुए ब्राम्हण परिवार को सुरक्षित स्थान पर ले गया, क्योंकि उसे इंसान बचाना था जाति नहीं।

केरल में चलाया जा रहा रेस्क्यू आपरेशन
भेदभाव के पीछे द्विजवादी मानसिकता
आरएसएस विचारक एस गुरुमूर्ति ने कहा कि केरल में आई बाढ़ की तबाही का असली कारण है, केरल के सबरीमाला मंदिर में औरतों के घुसने की इजाजत देना। मूर्खों और पोंगापंथियों जैसी बात करने वाले एस गुरुमूर्ति स्त्रियों की हकों को संविधान सम्मत ढंग से लागू किए जाने के प्रबल विरोधी संगठन आरएसएस के विचारक ही नहीं हैं, बल्कि मोदी सरकार ने उन्हें हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के स्वतंत्र निदेशक के तौर पर नियुक्त भी किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी अवैज्ञानिक सोच का आदमी अगर देश की शीर्षस्थ आर्थिक संस्था के मुखिया के तौर पर बैठेगा तो देश का बेहतर आर्थिक विकास कैसे संभव है, अगर होगा भी तो औरतें और हाशिए का समाज कहां होगा?

शिक्षा पर संघी सोच भारी : भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के सदस्य और आरएसएस विचारक एस. गुरुमूर्ति
हालांकि ऊचे पदों पर बैठे लोगों द्वारा अंधविश्वासी बातें करना कोई नई बात नहीं है, गांधी ने भी एक बार ऐसी बात कही थी, जिसकी कवि रवींद्र नाथ टैगोर ने खुली आलोचना की और बताया कि गांधी आपकी बातों से अंधविश्वास का बढ़ावा मिलता है, समाधान भले न निकले। 1934 में बिहार में आए भूकंप के बारे में गांधी ने कहा कि भूकंप की यह तबाही इसलिए आई है, क्योंकि यहां छुआछूत और जातीय भेदभाव बहुत ज्यादा है।
इन दोनों उदाहरणों से समझें तो साफ होगा कि गांधी हों या गुरुमूर्ति दोनों को ही अपनी बातों को सही साबित करने के लिए अंधविश्वासों और अवैज्ञानिक बातों का सहारा लेना पड़ा। ये सहारा एक समानता वाले राष्ट्र की नींव कभी नहीं रख पाएगा और न रख पाया। देश में जातीय भेद और उसके समर्थन वाले संस्कार भारतीय समाज के डीएनए बन गए हैं और अमानवीयता और गैरबराबरी का बड़ा आधार जातीय भेद है।
ढकोसले से दूर नहीं होगा छुआछूत
ख्यात लेखक और दलित चिंतक शरण कुमार लिंबाले कहते हैं, जिस तरह का जातिवाद, छुआछूत, संप्रदायवाद केरल में नजर आया वह केवल वहीं तक सीमित नहीं है, भारत में जब-जब जहां-जहां ऐसे हादसे होते हैं वहां देशभर में यह आमतौर पर नजर आया है। जातिवाद हमारे खून में इस तरह व्याप्त है कि यह जन्म से शुरू होकर मृत्यु के बाद तक कायम रहता है। हमारे देश में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई किसी धर्म का हो, राष्ट्रपति से लेकर गांव का मुखिया तक हरेक के मन में जातिवाद छुपा है। हिंदू धर्म के परिप्रेक्ष्य में कहें तो मनुवाद ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है हर इंसान के मन में।
जाति की अक्षयता और आगे का रास्ता
लिंबाले आगे बताते हैं कि यह खुशी और गम दोनों में समान रूप से हावी रहता है। जातिवाद ने मनुष्य को किस तरह जकड़े हुए है उसे इससे समझा जा सकता है सवर्ण जाति का इंसान मर रहा हो और कोई दलित उसे छू ले तो वह कहेगा कि तू मुझे मत छू नहीं तो मैं अपवित्र हो जाउंगा मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी। मैं मरने के बाद नरक में जाउंगा, मोक्ष नहीं मिलेगा मुझे। इन कुछ सालों में तो जातिवाद—धर्म को तो जैसे खुलेआम संरक्षण मिला है, वह अकल्पनीय है। कब कौन जातिवाद, धर्म, संप्रदाय के नाम पर मॉब लिंचिंग का शिकार हो जाए कहना मुश्किल है। मोदी जी ने स्वच्छ भारत अभियान की पहल की है, मगर स्वच्छ भारत तब होगा जब मनुष्य का मन स्वच्छ होगा और समाज में नवजागरण आएगा। नए कपड़े, बॉब कट हेयरस्टाइल, फॉरव्हीलर, बुलेट ट्रेन तक की यात्रा से नवजागरण और स्वच्छ भारत नहीं होगा, क्योंकि मन अभी भी 16वीं सदी का है। मन की स्वच्छता के बगैर यह सिर्फ एक ढकोसला है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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Galat baat
Aise insaan ko jaatibad per hi jhod Dena chahiye kyonki jaati pahale or insaniat bad main tab inko ahasash hoga jaatibaad failane se apna nuksan hai or dusron ka bhi kiya insaan hai is duniya main