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पेरियार : जिन्होंने आर्य श्रेष्ठता, ब्राह्मणवाद और वर्ण-जाति व्यवस्था को चुनौती दी

पेरियार इरोड वेंकट रामासामी एक ऐसे व्यक्तित्व रहे हैं, जिन्होंने आर्य श्रेष्ठता, ब्राह्मणवाद और वर्ण-जाति व्यवस्था के खिलाफ निर्णायक संघर्ष किया। तमिलनाडु में उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्व को काफी हद तोड़ दिया। उत्तर भारत में आज भी द्विज वर्चस्व कायम है, इसे तोड़ने के लिए पेरियार के विचार अपनाना जरूरी है। बता रहे हैं, कमलेश वर्मा :

पेरियार इरोड वेंकट रामासामी का जन्म 17 सितम्बर, 1879 ईसवी को तमिलनाडु के इरोड कस्बे में हुआ था। 24 सितम्बर, 1973 ईसवी को उनकी मृत्यु वेल्लोर के सीएमसी अस्पताल में 94 वर्ष की उम्र में हुई थी। पेरियार के पिता वेंकट नाइकर एक व्यापारी थे। उनकी माँ का नाम चिन्ना थयम्म्ल था, जिन्हें लोग मुथम्म्ल भी कहते थे। पेरियार की शादी 19 वर्ष की उम्र में 13 साल की नगम्म्ल से हुई थी।

25 वर्ष की उम्र में पेरियार काशी (वाराणसी) आए थे। तमिलनाडु के एक द्रविड़ व्यापारी के द्वारा बनवाए धर्मशाला में उन्हें अपमानित करके निकाला गया, क्योंकि वहाँ भोजन की सुविधा केवल ब्राह्मणों के लिए उपलब्ध थी। भूख से परेशान पेरियार ने धर्मशाला के बाहर फेंके गए जूठे पत्तलों पर मौजूद भोजन से अपनी भूख मिटाई। जूठन के उस अंबार  पर कुत्ते भी अपनी भूख मिटा रहे थे। इस घटना ने पेरियार के मन में जातिवादी भेदभाव के प्रति स्थायी रूप से अस्वीकृति का भाव भर दिया। काशी के प्रति उनके मन में वितृष्णा का भाव भर गया क्योंकि उन्होंने इन भेदभावों की व्यापक स्वीकृति इस शहर में देखी थी। यहाँ आकर उन्होंने आर्य और द्रविड़ के भेद को भी महसूस किया। नस्ल के नाम पर द्रविड़ों के प्रति हेय दृष्टि को महसूस करने के कारण पेरियार के मन में जातिवादी श्रेष्ठता का दंभ रखनेवाले ब्राह्मणों के प्रति तीखी आलोचनात्मक दृष्टि का विकास हुआ। उन्होंने ठान लिया कि वे जातिवादी दंभ के खिलाफ निरंतर संघर्ष करते रहेंगे।

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लेखक के बारे में

कमलेश वर्मा

राजकीय महिला महाविद्यालय, सेवापुरी, वाराणसी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष कमलेश वर्मा अपनी प्रखर आलोचना पद्धति के कारण हाल के वर्षों में चर्चित रहे हैं। 'काव्य भाषा और नागार्जुन की कविता' तथा 'जाति के प्रश्न पर कबीर' उनकी चर्चित पुस्तकें हैं

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