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बिना मजदूर के होंगे कृषि कार्य, नीति आयोग कर रहा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर विचार

औद्योगीकरण, शहरीकरण और भूमंडलीकरण ने मशीनीकरण के नये विस्तार आर्टिफिशियल इंटेलीलेंस के उपयोग को बढ़ावा दिया है। अब कृषि में भी इसके इस्तेमाल को लेकर चर्चा की जा रही है। भारतीय किसानों के लिए यह कितना और कैसे हितकारी हो सकता है, बता रहे हैं कुमार समीर :

भारतीय किसानों के लिए कितना हितकर होगा आर्टिफिशियल इटेलीजेंस?

वर्ष 1960 में शुरु हुई हरित क्रांति अब नये दौर में पहुंच चुकी है। कृषि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत लगातार विकास कर रहा है। हालांकि अभी भी भारतीय किसानों में से केवल एक तिहाई तक ही उन्नत तकनीक अपना रहे हैं। सरकार भी इस बात को महसूस कर रही है कि यदि सभी किसान उन्न्त तकनीक का इस्तेमाल करेंगे तब भारत अन्न व अन्य कृषि उत्पादों के उत्पादन के मामले में विश्व के अग्रणी राष्ट्रों में शुमार होगा। साथ ही इसका असर रोजगार सृजन पर भी पड़ेगा। यही वजह है कि केंद्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए भविष्य की तकनीक पर काम कर रही है। इस तकनीक का नाम है आर्टिफिशियल इंटेलीलेंस।

दरअसल, भारतीय किसान जिस समस्या से अधिक परेशान होते हैं वह मौसम का पूर्वानुमान है। तमाम प्रयासों के बावजूद यह सच्चाई है कि सिंचाई के साधन जिस व्यापक स्तर पर उपलब्ध होने चाहिए, नहीं हैं। इसके अलावा ओला वृष्टि, अत्यधिक वर्षा, अल्प वर्षा और सुखाड़ की समस्या भी भारतीय किसानों को परेशान करती है। इसका असर उनकी उत्पादकता पर भी पड़ता है।

खेतों में अब मजदूरों के बदले रोबोट करेंगे बुआई और निकाई

लेकिन अब जिस तकनीक को लेकर केंद्र सरकार पहल कर रही है, वह किसानों की आय बढ़ाने के साथ सटीक-सटीक मौसम के पूर्वानुमान की जानकारी भी देगा। जल्द ही आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, क्लाउड मशीन लर्निंग, सेटेलाइट इमेजनरी और एडवांस्ड एनालिटिक्स की मदद से छोटे और मझौले किसानों के दिन फिरने की तैयारी की जा रही है। मिट्टी के स्वास्थ्य की निगरानी करने और कटाई जैसे अन्य कृषि कार्यों को करने के लए कृषि रोबोट भी विकसित किए जा रहे हैं वहीं मशीन लर्निग माडल मौसम परिवर्तन जैसे पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण और भविष्यवाणी भी कर सकते हैं।

इसी तरह आटो पायलट ट्रैक्टर भी काफी उपयोगी है। वर्तमान के ट्रैक्टरों से अलग  यह मानव रहित ट्रैक्टर है। यानी एक ऐसा ट्रैक्टर जिसके जरिए आप अपने खेत से दूर रहकर भी अपने खेतों जुताई और बोआई से लेकर फसल की कटाई तक कर सकते हैं। वह भी केवल एक मोबाइल के जरिए। ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) से लैस यह ट्रैक्टर भले ही धीमी गति से चलता है लेकिन इसकी कार्य क्षमता बहुत अधिक होती है।

मानव रहित ट्रैक्टर : जुताई से लेकर कटाई तक करने में सक्षम

यह ट्रैक्टर कितना खास है, इसका अनुमान इसीसे लगाया जा सकता है कि जुताई करते समय ही यह मिट्टी के स्वास्थ्य की जांच भी कर लेता है। इसमें लगा सेंसर इसके उपभोक्ता को मौसम आदि की जानकारियां भी देता रहता है। इसमें कैमरे आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है जिसके जरिए घर बैठे ही खेत की वास्तविक स्थिति की भी जानकारी मिल जाती है।

आने वाले वर्षों में नहीं रहेगी ऐसे ट्रैक्टरों की जरुरत

भारत में टाटा समूह कृषि के क्षेत्र में आटोमेशन यानी स्वचालन टेक्नोलाजी का इस्तेमाल कर रहा है। इसके लिए ऐसा ड्रोन बनाया जा रहा है कि जो बिना इंसानी सहायता से खेतों में छिड़काव कर सकेगा।

घर पर करिए आराम, अब ड्रोन करेंगे खाद छींटने से लेकर फसल की निगरानी तक का काम

सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूट आफ ट्रांसफार्मिंग इंडिया) में सलाहकार अन्ना राय के मुताबिक सरकार का उद्देश्य है कि कैसे तकनीक की मदद से किसानों की आय बढ़ाई जाए। इसके लिए सरकार ने रिमोट सेंसिंग, इमेज रिकगनाइजेशन, इंटरनेट आफ थिंग्स डिवाइसेस, ड्रोन और इसरो की मदद से डाटा एकत्र करने का काम शुरू कर दिया है। इससे फायदा यह होगा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से किसानों को बुआई का वक्त, कीड़ों के हमले और मौसम का सटीक-सटीक पूर्वानुमान का बहुत पहले ही पता चल जाएगा। इस तकनीक को कर्नाटक में लागू किया जा चुका है। इसके कारण वहां के किसानों की आय में 31 फीसदी का इजाफा हुआ।

आईबीएम से समझौता : नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत व आईबीएम के प्रतिनिधि

अन्ना राय के मुताबिक अासाम, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान समेत अन्य राज्यों के दस जिलों में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। इसके लिए नीति आयोग ने आईबीएम के साथ साझेदारी की है। उन्होंने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से न केवल कृषि क्षेत्र में संसाधनों का सही-सही इस्तेमाल हो सकेगा बल्कि फसल पैदावार और वैज्ञानिक तरीके से खेती में भी मदद मिलेगी।

उच्चस्तरीय तकनीक से फायदे तो हैं लेकिन सच यह भी है कि भारतीय किसान आधुनिक कृषि तकनीकों से अवगत नहीं हैं। नई तकनीक को अपनाने के संबंध में किसानों को मार्गदर्शन करने के लिए कई शैक्षणिक और जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए। इन सभी पहलों से किसानों को उचित फसल देखभाल करने में सहायता मिलेगी जो आखिरकार फसल उत्पादकता को बढ़ावा देगा। इसलिए सरकार इन सभी बातों पर भी ध्यान देना होगा तभी कृषि क्षेत्र में भारत का विकास तेजी से संभव हो पाएगा।

क्या है आर्टिफिशियल इंटेलीलेंस?

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस दो शब्दों से मिलकर बना है। आर्टिफिशियल जिसका मतलब होता है कृत्रिम। यानी ऐसी वस्तु जो प्राकृतिक नहीं हो और वह मानव के द्वारा बनाया गया हो। वहीं इंटेलीजेंस का तात्पर्य है सोचने, समझने एवं सीखने की योग्यता। यानी इस तरह का सिस्टम जो व्यवहार प्रतिक्रिया देने में दक्ष हो और जो मानव से भी बेहतर हो। इसे लघु शब्दों में एआई भी कह सकते हैं।     

केवल कृषि में ही नहीं स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल पर विचार कर नीति आयोग

सामान्य भाषा में समझने के लिए हम कह सकते हैं कि इस प्रकार का अध्ययन जिसमें हम एक ऐसा साफ्टवेयर विकसित करें जिससे एक कम्प्यूटर भी इंसान की तरह और उससे बेहतर प्रतिक्रिया दे सके। एआई में कई विषय आते हैं जिसमें दर्शन. समाजशास्त्र, गणित और भाषा का ज्ञान होता है। एआई को चार भागों में विभाजित कर सकते हैं। 1. इंसान की तरह सोचना 2 इंसान की तरह व्यवहार करना, 3. तर्क और विचारों युक्त यानी संवेदनशील, बुद्धिमान, तथ्यों को समझना एवं तर्क एवं विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया भी देना। इस तरह हम कह सकते हैं कि कृत्रिम तरह से एक ऐसा सिस्टम विकसित करना जो इंसान की तरह कार्य कर सके, सोच सके एवं अपनी प्रतिक्रिया दे सके।  

कब हुई शुरुआत?

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। इसके जनक जान मैकार्थी के अनुसार यह विशेष रूप से बुद्धिमान कम्प्यूटर प्रोग्राम को बनाने का विज्ञान और अभियांत्रिकी है यानी यह मशीनों द्वारा प्रदर्शित किया गया इंटेलीजेंस है। याद रहे कि इस विषय पर स्टार वार, आई रोबोट, मैट्रिक्स, टर्मिनेटर, ब्लेड रनर जैसी फिल्में बन चुकी हैं और इसे देखने से काफी हद तक इसे समझा जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस वाला सिस्टम 1997 में शतरंज के सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में शुमार गैरी कास्परोव को हरा चुका है।

हालांकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का आरंभ 1950 के दशक में ही हो गया था, लेकिन इसकी महत्ता को 1970 के दशक में मान्यता मिली। जापान ने सबसे पहले इस ओर पहल की और 1981 में फिफ्थ जेनरेशन नामक योजना की शुरुआत की थी। इसमें सुपर कम्प्यूटर के विकास के लिए 10 वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। इसके बाद अन्य देशों ने भी इस ओर ध्यान दिया। ब्रिटेन ने इसके लिए एल्वी नाम का एक प्रोजेक्ट बनाया। यूरोपीय संघ के देशों ने भी एस्प्रिट नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इसके बाद 1983 में कुछ निजी संस्थाओं ने मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर लागू होने वाली उन्नत तकनीकों का विकास करने के लिए एक संघ माइक्रो इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्प्यूटर टेक्नोलाजी की स्थापना की।

भारत में एआई की संभावना

भारत में इसकी संभावनाओं पर बात करें तो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यहां शुरुआती दौर में है और देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें इसे लेकर प्रयोग किये जा सकते हैं। देश के विकास में इसकी संभावनाओं को देखते हुए उद्योग जगत ने सरकार को सुझाव दिया है कि वह उन क्षेत्रों की पहचान करे जहां आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल लाभकारी हो सकता है। सरकार की भी मंशा है कि देश में जहां संभव हो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल किया जाए। सरकार ने उद्योग जगत से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल के लए एक माडल बनाने में सहयोग करने की भी पहल की है वहीं उद्योग जगत ने भी सरकार से इसके लिए कुछ बिन्दुओं पर फोकस करने को कहा है जिसमें प्रमुख हैं – देश में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए एक अॉथाेरिटी बने जो इसके नियम-कायदे तय करे और पूरे क्षेत्र की निगरानी करे। इसके अलावा सरकार उन क्षेत्रों की भी पहचान करे जहां प्राथमिकता के आधार पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही सुझाव भी दिए गए हैं कि ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, कृषि आदि इसके लिए उपयुक्त क्षेत्र हो सकते हैं।

बहरहाल, सरकार इसको लेकर काफी गंभीर है और राष्ट्रीय स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने के लए नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन किया गया है जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा शिक्षाविदों और उद्योग जगत को तवज्जो देने की बात की जा रही है। इसके अलावा सरकार आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, रोबोटिक्स, डिजिटल मैन्यूफैक्चरिंग, बिग डाटा इंटेलीजेंस, रियल टाइम डाटा और क्वांटम कम्यिनकेशन के क्षेत्र में शोध, प्रशिक्षण, मानव संशाधन और कौशल विकास को बढावा देने की योजना बना रही है।

यह भी पढ़ें : आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस : बहुजन युवाओं के लिए दुनिया मुठ्ठी में करने का मौका

केंद्र सरकार की गंभीरता का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि वर्तमान बजट में सरकार ने फिफ्थ जेनरेशन टेक्नोलाजी स्टार्ट अप के लिए 480 मिलियन डालर का प्रावधान किया है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को प्रमुखता दी गई है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट में इस बात का उल्लेख प्रमुखता से किया था कि केंद्र सरकार का थिंक टैंक नीति आयोग जल्द ही नेशनल आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस प्रोग्राम (एनएआईपी) की रूपरेखा तैयार करेगा। याद रहे कि चीन ने अपने त्रिस्तरीय आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कार्यक्रम की रूपरेखा जारी की थी, जिसके बल पर वह वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र में विश्व का अगुआ बनने की सोच रहा है।        

दूसरी ओर यह भी सच है कि इस मामले में सावधानियां बरतने की काफी जरूरत है क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस युक्त मशीनों से जितने फायदे हैं उतने ही खतरे भी हैं। जरा सी लापरवाही, असावधानी से काफी नुकसान का खतरा हर समय बना रहेगा। इसको लेकर एलन मस्क और स्टीफन हाकिंग दुनिया को चेता चुके हैं। उनका कहना है कि अगर मनुष्यों ने इस तकनीक के प्रति उदासीनता बरती तो ये बेहद खतरनाक साबित हो सकती हैं। सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या बुद्धिमान मशीनें बेरोजगारी बढ़ा देंगी या मानव को और निपुण बना देंगी।

ये सवाल भारतीय सामाजिक व आर्थिक परिवेश के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं जहां प्रचुर मानव संसाधन बेरोजगारी से त्रस्त है। साथ ही भूमि का वितरण भी समाज के सभी वर्गों में विषम है। ऐसे में यदि इन सवालों को छोड़ केवल आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की बात करें तो निश्चित तौर पर भारतीय कृषि को समुन्नत बनायेगा और इसका फायदा किसानों को भी होगा।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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