राष्ट्र के विचार में धर्म और अध्यात्म मिलाने का उतावनापन
देश की सत्ता में काबिज भाजपा और उसके सरपरस्त आरएसएस ने एक बार फिर अपनी कथित वैचारिकी के प्रसार के लिए सरकारी संस्थानों का उपयोग किया है। पहले यूजीसी का इस्तेमाल कर देश भर के 4305 पत्र-पत्रिकाओं को काली सूची में डाल दी गयी जिसमें हंस, फारवर्ड प्रेस, वागर्थ और ईपीडब्ल्यू (वेब संस्करण) भी शामिल हैं। देश भर के बुद्धिजीवियों ने यूजीसी के इस हरकत की कड़े शब्दों में निंदा की और लगभग एक सुर में कहा कि यूजीसी के सहारे केंद्र सरकार केवल उन विचारों को ही आगे बढ़ाना चाहती है जिसका संबंध आरएसएस से है।
अब केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का उपयोग किया है। संस्थान के विंटर स्कूल ने देश भर के शोधार्थियों का आह्वान किया है कि वे “गांधी और उनके समकालीन- जीवन और विचार” विषय पर पन्द्रह दिनों तक अध्ययन-वाचन करें। इस बहाने केंद्र सरकार जिन महापुरुषों की वैचारिकी पर विचार-विमर्श चाहती है उनमें सबसे खास हैं दीनदयाल उपाध्याय।
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यानी देश की कई महान विभूतियों की वैचारिकी को साथ परखने की कोशिश की जाएगी। यह आयोजन एक दिसंबर से 15 दिसंबर तक होगी जिसके लिए देशभर के स्कॉलर्स का आह्वान किया गया है।
संस्थान ने गांधी के समकालीनों में यों तो 1894 और 1898 में दुनिया छोड़ चुकी शख्सियतें भी शामिल की हैं लेकिन संस्थान ने समझाने के लिए दीन दयाल उपाध्याय का नाम खास तौर पर लिया है। दीन दयाल उपाध्याय 1916 में जन्मे थे और उनकी मृत्यु 1968 में हुई थी। वह भारतीय जनसंघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और एकात्म मानवदर्शन के प्रणेता कहे जाते हैं। उनकी जन्मशती पर सत्तारूढ़ दल ने 2016-17 विशेष आयोजन भी किए थे और उनके वैचारिक प्रबोधनों का प्रचार-प्रसार किया था। खासकर 1947 के ‘राष्ट्रधर्म’ मासिक के छपे उपाध्याय के आलेखों का खूब प्रचार हुआ था।
इसी कड़ी में संस्थान ने कहा है कि वह दीन दयाल उपाध्याय के ‘चिति’ (आत्मा या सार जैसे हिंदी में कहा जाता है कि ‘शांत चित् से सोचिए’, जिससे चिति शब्द निकला कहा जाता है?) को उसी तरह समझना चाहता है जैसे कि गांधी के बताए रास्ते और सदाचरण जैसी सामाजिक आख्याएं और वर्णन हैं।
“गांधी और उनके समकालीन : जीवन और विचार” पर जोर देते हुए संस्थान ने कहा है कि मौजूदा समय में जब कि राष्ट्रीय और वैश्विक संदर्भ में कई अन्याय दिखते हैं और जीवन के सभी क्षेत्रों में नैतिक मूल्यों में तेजी से गिरावट आई है, भ्रष्टाचार, असमानता, उपभोक्तावाद, जाति/ लिंग, सांप्रदायिकता, आतंकवाद बढ़ा है और पर्यावरण नष्ट होता जा रहा है- इन सबके मद्देनजर मोहनदास करमचंद गांधी और उनके दौर में सक्रिय रहे समकालीन लोगों को उनके विचारों, कार्यों और लेखों के माध्यम से लोगों को सच्चाई, प्रेम और करुणा का पाठ दिया जा सकता है। इनके आधार पर समग्र सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक परिवर्तन को लेकर जरूरी उम्मीद बंधती है और यह समाज में शांति सुनिश्चित करने के अलावा सद्भाव और खुशी का संदेश मिलता है।
संस्थान के अनुसार, “हम समझते हैं कि गांधी और उनके समकालीन चिंतक जैसे कि दीनदयाल उपाध्याय ने सटीक ही कहा है कि देश की “चिति” (आत्मा या सार) जो कि आसानी से दिखाई और समझ आने वाली सांस्कृतिक विविधताएं (भाषाई, धार्मिक, जातीय, क्षेत्रीय आदि) हैं, का प्रतिनिधित्व करते हैं। अपने दृष्टिकोण में (गांधी के साथ) मतभेदों के बावजूद, उनके ‘जीवन, विचार और कार्य’ को नैतिक कर्तव्य (धर्म), न्याय (धर्म), धार्मिकता (धर्म), नैतिक आचरण (धर्म) को (राष्ट्र के) जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी प्रतिबद्धता में शामिल किया गया है। संक्षेप में, ‘धर्म’ की बहुआयामी अवधारणा भारत की ‘चिति’ या सार है। जब जब देश की इस अत्यंत नैतिक शक्ति चिति को बाहरी या आंतरिक कारणों से ठेस पहुचंती है और उसका ह्रास होता है तो लोग भ्रष्टाचार, अन्याय और शोषण से शिकार होते हैं। इसलिए, ‘गांधी और उनके समकालीन’ विषय का महत्व बहुत बढ़ जाता है…।”
चिति क्या है?
दीन दयाल उपाध्याय के शब्दों में चिति क्या है? 1947 में अपने आलेख में उपाध्याय ने लिखा, “किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व उसकी चिति के कारण होता है। चिति के ही उदयावपात होता है। भारतीय राष्ट्र के भी उत्थान और पतन का वास्तविक कारण हमारी चिति का प्रकाश अथवा उसका अभाव है। आज भारत उन्नति की आकांक्षा कर रहा है। संसार में बलशाली एवं वैभवशाली राष्ट्र के नाते खड़ा होना चाहता है। चारों ओर लोग इस ध्येय का उच्चारण कर रहे हैं तथा उसके लिए प्रयत्नशील भी हैं। ऐसी दशा में हमको अपनी चिति का ज्ञान करना आवश्यक है। बिना चिति के ज्ञान के प्रथम तो हमारे प्रयत्नों में प्रेरक शक्ति का अभाव रहने के कारण वे फलीभूत नहीं होंगे; द्वितीय मन में भारत के कल्याण की इच्छा रखकर और उसके लिए जी तोड़ परिश्रम करके भी हम भारत को भव्य बनाने के स्थान पर उसको नष्ट कर देंगे। हमारे राष्ट्र जीवन की चिति क्या है? हमारी आत्मा का क्या स्वरूप है? इस स्वरूप की व्याख्या करना कठिन है; उसका तो साक्षात्कार ही संभव है, किंतु जिन महापुरुषों ने राष्ट्रात्मा का पूर्ण साक्षात्कार किया, जिनके जीवन में चिति का प्रकाश उज्ज्वलतम रहा है उनके जीवन की ओर देखने से, उनके जीवन की क्रियाओं और घटनाओं का विश्लेषण करने से, हम अपनी चिति के स्वरूप की कुछ झलक पा सकते हैं।” (राष्ट्रधर्म मासिक, अंक 6 सौजन्य- कमल संदेश)
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जाहिर है इस एकाकी चिंतन और एकात्म मानवदर्शन में उच्च अध्ययन संस्थान को राष्ट्रनिर्माण में कोई बड़ी भूमिका दिखती है जो आंबेडकर और महात्मा गांधी की रही है। संस्थान का कहना है कि निस्संदेह ही विंटर स्कूल की कोशिश भारत और इंडिया के संदर्भ में चिति (सार या अर्थ) को समझने की है कि इस अवधारणा में गांधी के बरक्स बहुआयामी राष्ट्रीय संदर्भ क्या हैं। किसी भी नए विचार का आविष्कार का दावा किए बिना, गांधी के सदाचार या धर्म (धार्मिकता) केंद्रित दृष्टि और अभ्यास के साथ, आधुनिक समय में स्वराज, सत्याग्रह, स्वदेशी और सर्वोदय जैसी भारतीय अवधारणाओं के सर्वकालिक पुनर-संदर्भ क्या हो सकते हैं।
इन महापुरुषों के नाम शामिल
संस्थान ने युवा स्कॉलर्स और शिक्षकों के सामने गांधी और उनके समकालीन लोगों को अध्ययन संदर्भ के लिए कई महान चिंतकों के नाम भी सुझाएं हैं। इनमें जोती राव गोविंदराव फुले (1827-1890), बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय (1838- 1894), स्वामी विवेकानंद (1863-1902), सर सैयद अहमद खान (1817-1898), रवींद्रनाथ टैगोर (1861-1941) से लेकर मौलाना अबुल कलाम आजाद, मुहम्मद अली जिन्ना, नारायण गुरु, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, भगत सिंह, मदन मोहन मालवीय, चार्ल्स फ्रीर एंड्रयूज, मीरा बहन, भागिनी बहन ‘निवेदिता, श्री अरबिंदो, सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस, विनायक दामोदर सावरकर, केशव बलराम हेडगेवार, माधव सदाशिव गोलवलकर, सी राजगोपालाचारी, जवाहर लाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, सरलादेवी, कस्तूरबाई “कस्तूरबा” मोहनदास गांधी, जे.सी.कुमारप्पा, स्वामी श्रद्धाहन, डॉ. भीमराव आंबेडकर, विनोबा भावे, भाई पुराण सिंह, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया के नाम शामिल हैं।
बहरहाल, किसी भी गंभीर और उच्च अध्ययन की पहल स्कॉलर्स के लिए खुशखबरी होती है। लेकिन मंशा अगर दीन दयाल उपाध्याय के चिति के समझने से संदर्भ से खुलती हो और चिंतकों की सूची में आंबेडकर, नेहरू, फुले, भगत सिंह के साथ हेडगेवार और गोलवलकर दिखाई देते हों तो स्कॉलर्स के लिए मुख्य अध्ययन में फुट नोट बढ़ाने का काम ज्यादा हो सकता है!
बताते चलें कि इस अध्ययन के लिए कुल 25 प्रतिभागी चुने जाएंगे जो अपने बायोडाटा के साथ 500 शब्दों में अन्य के अलावा ये भी बताएंगे को ‘धर्म’ क्या है और वह अंग्रेजी के ‘रिलीजन’ से कितना अलग और अर्थभिन्न है। हमारा सुझाव है कि शोधार्थी आवेदन करने से पहले अगर स्कॉलर्स और शिक्षक राष्ट्रधर्म में प्रकाशित दीन दयाल उपाध्याय के चिति संबंधी चार आलेख ठीक से पढ़ लें तो उनको काफी सहूलियत हो सकती है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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