डा. रामविलास शर्मा ने अपने एक निबन्ध में लिखा है, “प्राचीन भारत में भरत, कोसल और मगध, इन तीनों गण-समाजों की निर्णायक भूमिका थीI….भरत गण यज्ञवादी संस्कृति का उपासक था। मगध गण इसका परम विरोधी थाI…..मगध की आधार भूमि से ही जैन और बौद्ध धर्मों का प्रवर्तन हुआI…मगध और भरत गणों के बीच में पड़ते थे कोसलI ये लोग कर्मकांडी नहीं थे, और वेद-विरोधी मतों के प्रचारक भी नहीं थेI ये लोग मुख्यत: कवि और कविता-प्रेमी जन थेI महाभारत और रामायण, इन दोनों महाकाव्यों का घनिष्ठ संबंध कोसल गण से हैI….वाल्मीकि तमसा के किनारे रहते थेI वह आदि कवि के रूप में विख्यात हैंI” रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ‘भाषा ओ छंद’नाम की कविता में वाल्मीकि नारद से कहते हैं, “अब तक देवताओं पर काव्य लिखा गया है, मैं अपने काव्य में मनुष्य को अमर करूँगाI”[1]
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