भारतीय समाज में आज भी जातिप्रथा व अन्य ब्राम्हणवादी मान्यताओं और अंधविश्वास का बोलबाला है। नृत्य, नाटक और संगीत जैसी कलाओं का इस्तेमाल इन सामाजिक बुराइयों को उजागर करने, उनके बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनसे लड़ने के लिए किया जा सकता है। योगेश कुमार, जिनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जहां ईश्वर की सत्ता व कर्मकांडों पर हमेशा प्रश्नचिह्न लगाए जाते थे, ठीक यही कर रहे हैं। वे इन मुद्दों पर शोध भी करते हैं और लेखन भी। फारवर्ड प्रेस से योगेश मास्टर की बातचीत के संपादित अंश प्रस्तुत हैं :
आप एक नाट्य मंडली चलाते हैं। हमें उसके बारे में बताइए। आपके नाटकों की मुख्य विषयवस्तु क्या होती है? आप एक प्रशिक्षित भरतनाट्यम नर्तक हैं, परंतु अब आप मुख्यतः समकालीन नृत्य करते हैं। इस परिवर्तन का क्या कारण है?
मैं राजमार्ग नामक नाट्य मंडली का संस्थापक हूं। हमारी सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए हम समाज में जागृति लाना चाहते हैं। मैं समाज में व्याप्त हर तरह के अंधविश्वासों का विरोध करता हूं और हर तरह के शोषण के खिलाफ आवाज उठाता हूं। फिर चाहे इनके पीछे कोई भी वर्ग या धर्म क्यों न हो। मैं जातिगत और वर्गीय भेदभाव का विरोध करता हूं और मैं समाज, संस्कृति और धर्म के क्षेत्रों में ब्राम्हणवादियों के श्रेष्ठता के भाव की भर्त्सना करता हूं। हमारी रंगमंचीय परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य लोगों को सही तथ्यों से परिचित कराना और उनमें इन मुद्दों के विषय में जागृति पैदा करना है।
पूरा आर्टिकल यहां पढें : योगेश मास्टर ने बनाया कला को सामाजिक बुराइयों से लड़ने का हथियार