अगर एक पंक्ति में परिचय देना हो, तो छेदी लाल साथी (1 फरवरी 1921, – 13 नवंबर 2004) उत्तर प्रदेश के पहले पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थे। किन्तु दूसरी पंक्ति में वह बोधानंद और शिवदयाल चौरसिया के बाद के दौर के सबसे जुझारू बहुजन योद्धा थे।
सबसे पहले मैंने उनके बारे में अपने शहर रामपुर में ही सुना और वह भी एक कवि-शायर के मुँह से। सिर्फ सुना ही नहीं, बल्कि उन्होंने अपनी किताब ‘अतीत से बातें’ में बाकायदा उनका जिक्र भी किया है। यह शायर थे रघुवीरशरण दिवाकर राही, जो शायरी में दिवाकर राही के नाम से मशहूर थे। उनका ‘शराबी’ पिक्चर में यह शे’र बहुत मकबूल हुआ था- ‘आज तो उतनी भी मयस्सर नहीं मयखाने में, जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में’ उनके साथ मेरा काफी उठाना-बैठना था। मैं उन दिनों (1994-98) सिविल लाइंस में उनकी कोठी के पीछे रोशन बाग में सरकारी छात्रावास के आवास में रहता था। रविवार को कभी-कभी वह भी मेरे घर पर आ जाते थे और मैं तो उनके पास जाता ही रहता था। एक दिन जब मैं उनके निवास पर गया, तो मैंने देखा कि उनके पास एक सांवले रंग के दुबले-पतले व्यक्ति बैठे हैं, जिनकी आँखों पर काले फ्रेम का मोटे लेंस का चश्मा था। दिवाकर जी शहर के नामीगिरामी वकील भी थे। इसलिए उनके होने से मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। उनके घर में मुझे सभी जानते थे, इसलिए मैं बिना समय लिए कभी भी शाम को अचानक ही उनके बैठके में चला जाता था।
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