मां के साथ घास भी काटी, पिता के साथ कुदाल भी चलाया : रामदेव धुरंधर

रामदेव धुरंधर ने बताया कि पहले भारत से मॉरीशस जाने के लिए केवल जलमार्ग ही एक मात्र साधन था और लोग पानी के जहाज तीन-चार महीने में माॅरीशस पहुंचते थे, तब तक रास्ते में ही कई संगी-साथी बिछड़ जाते थे। वहां उतरते ही समूह में बांधकर पिटाई शुरू हो जाती थी। खाना नहीं दिया जाता था, सिर्फ पानी मिलता था। फ्रांसीसी गोरे लोगों की जेल होती थी। वे भारतीय चतुर ‘मेटों’ के माध्यम से शोषण करते थे, जो आज वहां करोड़पति बन गए हैं। इनका काला इतिहास रहा है।

धुरंधर ने कहा कि माॅरीशस के जागरण में कबीर का बड़ा योगदान है। लेकिन, अब वहां पुराने लोग ही भोजपुरी बोलते हैं। वहां की नई पीढ़ी फ्रांसीसी भाषा की ओर मुखातिब है।
उन्होंने कहा कि 1834 से 1912 तक भारत से करीब चार-पांच लाख लोग माइग्रेट होकर माॅरीशस गए। आज यहां की आबादी 13 लाख है।
आयोजन में डाॅ. रामवचन राय तथा प्रो. यादवेन्द्र ने भी अपने विचार रखे। अतिथियों का स्वागत संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने किया। कार्यक्रम का संचालन नीरज ने किया। कार्यक्रम में लोगों ने साहित्यकारों से अनेक प्रश्न किए। कार्यक्रम में अवधेश प्रीत, अनुपम प्रियदर्शी, शशि, सुकांत नागार्जुन, प्रणव चौधरी, नवेंदु, रेशमा, शेखर, विद्याकर झा, पवन सहित कई साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी मौजूद थे।
(कॉपी संपादन : प्रेम)
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