सवर्णों को आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालों में आंध्र प्रदेश के पूर्व चीफ जस्टिस वी. ईश्वरैय्या भी हैं। वे राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और वर्तमान में अन्य पिछड़ा वर्ग को गोलबंद करने की अखिल भारतीय मुहिम में जुटे हैं। फारवर्ड प्रेस ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है इस बातचीत का संपादित अंश :
सुशील मानव (सु.मा.) : सवर्णों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण के मुद्दे पर आपके द्वारा दाखिल किए गए याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या संज्ञान लिया?
जस्टिस ईश्वरैय्या (ज. ई.) : यह असंवैधानिक है। समानता और समाजिक न्याय के खिलाफ़ है। ये हमारे साथ भेदभाव करने और आरक्षण को खत्म करने की एक साजिश है। 13 प्वाइंट रोस्टर इंदिरा साहनी केस के खिलाफ़ है, राम सिंह बनाम भारतीय संघ केस के खिलाफ़ है। यह एससी, एसटी और ओबीसी को संवैधानिक अछूत बना दिया है। संविधान में आरक्षण के लिए तीन कमजोर क्षेत्रों में शैक्षणिक और समाजिक और आर्थिक को आधार बनाया गया था जिसे केंद्र सरकार ने बदल दिया है। इसमें अब आर्थिक आधार जोड़ा गया। यह बातें मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र से कही है।
सु.मा. : मेरा प्रश्न यह था कि इस मुद्दे पर आपके द्वारा दायर किए गए याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या संज्ञान लिया?
ज. ई. : मैंने आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया है। सुप्रीम कोर्ट में आज उसकी सुनवाई की तारीख थी, मैं उसी के लिए आया हूं। लेकिन सरकार ने इसे सूची से डिलीट करवा दिया। ताकि सुनवाई न हो सके। सुनवाई होती तो चुनाव में इस पर चर्चा होती। सरकार को नुकसान होता इसीलिए इसे जानबूझकर सुनवाई नहीं होने दी गई।
सु.मा. : कोर्ट ने अगली सुनवाई की क्या तारीख़ दी है अब?
ज. ई. : 10-12 मार्च की एक अस्थायी तारीख बतायी गई है। हालांकि इसमें भी बदलाव संभव है। सुनवाई के 5-6 दिन पहले इसे ऑनलाइन सूचित कर दिया जाता है।
सु.मा. : आप प्रधानमंत्री से मिलने गए थे, उनसे क्या बात हुई?
ज. ई. : हां, हमलोगों ने एक 14 प्वाइंट मुद्दे का ज्ञापन बनाया है। इसकी प्रति प्रधानमंत्री, भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह, कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी, बसपा, राजद और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को भी भेज दी गयी है। इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री कार्यालय में उनके प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र से मुलाकात हुई और हमलोगों ने उन्हें अपना ज्ञापन सौंपा।
हमलोगों ने यह निर्णय लिया है कि जो पार्टी हमारे मांग पत्र को स्वीकार करेगी, हम उसका समर्थन करेंगे। यह हमारा हक़ है। सामाजिक न्याय भी यही है। इसमें हमारी मांग है कि महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए और उस आरक्षण में पिछड़े वर्ग की महिलाओं को 40 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। हमारा वोट करने का अधिकार है। हमें नकारने का अधिकार भी है। इस लोकतंत्र में हर वोट का मूल्य एक समान है। लोकतंत्र में हर इंसान का मूल्य समान है। लोकतंत्र में प्रजा राजा है और सांसद विधायक मंत्री उसके सेवक हैं। हमें हमारा हक़ मिलना ही चाहिए।
सु.मा. : डिपार्टमेंटवाइज रोस्टर पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
ज. ई. : संविधान में एसटी को 7.5 प्रतिशत एससी को 15 प्रतिशत और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिला है। तीनों को मिलाकर 49.5 प्रतिशत होता है। विभागवार आरक्षण मंडल कमीशन के खिलाफ़ है। यूजीसी ब्राह्मणवादियों और बनियों की चाल है। उसका यह कदम एक षडयंत्र है। हमारी मांग है कि या तो रोस्टर को उलटा कर दो पहला पद एसटी को दो, दूसरा एससी को तीसरा ओबीसी को और फिर अगला अनारक्षित करो। इसके अलावा अनारक्षित सीटों पर भी फ्रॉड नहीं होना चाहिए। खुली प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए।
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सु.मा. : क्या आपको लगता है कि इधर दो सालों में आये अधिकांश फैसलों में और इससे पूर्व के बथानीटोला, शंकरबिगहा जैसे नरसंहारों के मामलों में न्यायपालिका की भूमिका पक्षपातपूर्ण रही है?
ज. ई. : न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया पर ब्राह्मणवादियों का कब्जा है। ये सब लोग मिलकर गलत तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं। इसके चलते सामाजिक न्याय नहीं मिल पाता। ये न्याय के खिलाफ, और संविधान के खिलाफ़ फैसला देते हैं। ये संविधान की शपथ लेकर पद पर बैठते हैं और संविधान के खिलाफ़ फैसले देते हैं। अतः इन्हें संविधान के बजाय इनके बीबी-बच्चों और कुल देवता की शपथ दिलाई जाए। ताकि ये उनकी कसमें खाकर संविधान विरोधी फैसले न दे सकें।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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