बिहार विधान सभा ने 27 फरवरी 2019 को सर्वसम्मति से 2021 में जातीय आधार पर जनगणना के प्रस्ताव को पारित कर दिया है। इसके तहत जनगणना में जाति को शामिल करने के सर्वसम्मत प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजने का निर्णय लिया गया। इसे लेकर कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। ऐसे भी कहा जा रहा है कि जातिगत जनगणना के प्रस्ताव को सदन में पारित करवाकर नीतीश कुमार ने इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र मास्टर स्ट्रोक खेला है। लेकिन उनके खुद का राजनीतिक इतिहास कई सवाल खड़े करता है।
दरअसल, 25 फरवरी को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के कार्यस्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि जाति आधारित जनगणना का प्रस्ताव विधान सभा की ओर से केंद्र को भेजा जाये। इस संदर्भ में 27 फरवरी को जाति आधारित जनगणना का प्रस्ताव अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने विधान सभा के पटल पर रखा, जिसे सदन ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया। इस दौरान अध्यक्ष ने कहा कि 2021 में दसवर्षीय जनगणना होनी है, जिसकी प्रक्रिया अगले मई महीने से शुरू होगी। इसी आलोक में बिहार विधान सभा में यह प्रस्ताव लाया गया, जिस पर संक्षिप्त चर्चा के बाद पारित कर दिया गया।
प्रस्ताव पारित, दावेदारी शुरू
जातीय जनगणना के प्रस्ताव को लेकर सत्ता और विपक्ष के बीच दावेदारी का दौर शुरू हो गया है। दोनों पक्ष इस0को लेकर श्रेय लेने की होड़ में है। लेकिन इस प्रस्ताव को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मंशा पर सवाल भी उठाया जाने लगा है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस प्रस्ताव के बहाने आईवाश किया है। उन्हें इस बात का जवाब देना चाहिए कि राज्य में आरक्षण की सीमा 70 फीसदी से अधिक करने में क्या परेशानी है।

बहरहाल, बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की साख पर सवाल खड़े हो गए हैं। उनके उपर ऊंची जातियों को राज हस्तांतरित करने का आरोप लगता रहा है। खास तौर पर अमीरदास आयोग के खात्मे से लेकर सवर्ण आयोग के गठन के बाद उनकी छवि सवर्णों के शुभचिंतकों वाली बन गई है। संभवत: यही वजह है कि उन्होंने जातिगत जनगणना का प्रस्ताव को विधान सभा से पारित करवाया, ताकि पिछड़ों व दलितों की नाराजगी कम हो सके।
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क्या होगा इस प्रस्ताव का हाल?
अब सवाल इससे आगे का है। इस प्रस्ताव का असर क्या होगा। एक साल पहले भी विधान सभा में इस आशय का प्रस्ताव पारित किया था और केंद्र सरकार को भेजा था। उस प्रस्ताव के साथ केंद्र सरकार ने क्या किया, ए बात राज्य सरकार ने सदन को आज तक नहीं बताया। यह भी नहीं बताया कि प्रस्ताव के साथ भेजे गये पत्र का जबाव केंद्र सरकार ने दिया या नहीं। ऐसे में एक प्रस्ताव की अनदेखी के बाद विधान सभा द्वारा दूसरा प्रस्ताव पारित करने का क्या आशय है।
दरअसल, चाहे वह बिहार में एनआरसी लागू नहीं करने का फैसला हो या फिर जातिगत जनगणना संबंधित प्रस्ताव, बिहार के सवर्ण नीतीश कुमार से निराश हैं। यहां तक कि भाजपा के नेताओं ने भी दबी जुबान से इन प्रस्तावों का विरोध भी किया है। लेकिन भाजपा 2015 में नीतीश कुमार के बगैर चुनाव लड़ने का परिणाम देख चुकी है, लिहाजा वह यह कभी नहीं चाहेगी कि देश के प्रमुख राज्यों में से एक बिहार में उसका राज खत्म हो। वहीं नीतीश कुमार के इरादे भी साफ नहीं हैं। वे राजद के साथ जाने की संभावनाओं की हत्या नहीं करना चाहते हैं।
बहरहाल, बिहार विधानसभा में जातिगत जनगणना संबंधी प्रस्ताव पारित होने के बाद नीतीश कुमार ने गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है। देखना है कि केंद्र सरकार इस प्रस्ताव का क्या हश्र करती है। वजह यह भी कि इसी तरह का प्रस्ताव महाराष्ट्र और उड़ीसा विधानसभा द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है।
(संपादन : नवल/गोल्डी)