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जम्मू-कश्मीर में एससी, एसटी और ओबीसी सहित किसी के अधिकार सुरक्षित नहीं : शेख अब्दुल रहमान

केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिए डोमिसाइल नीति का एलान किया गया है। राज्य से पूर्व सांसद शेख अब्दुल रहमान बताते हैं कि हिंदू-मुसलमान सभी इसका विरोध कर रहे हैं। इस नीति से जम्मू-कश्मीर में रहने वाले हर वाशिंदे को नुकसान होगा। फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार से विशेष बातचीत

साक्षात्कार

[पिछले वर्ष 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को केंद्र सरकार ने निष्प्रभावी कर दिया और विशेष दर्जा प्राप्त इस राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर व लद्दाख, में बांट दिया। वहां राजनीतिक गतिविधियों पर भी रोक लगा दी गई। अब भारत सरकार के रूख में बदलाव आया है। इसके तहत ही पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सहित अनेक नजरबंद राजनीतिज्ञों को रिहा किया गया है। साथ ही वहां के लिए डोमिसाइल पॉलिसी को हरी झंडी दे दी गयी है। हालांकि इसमें भी पेंच सामने आया है। एक अप्रैल को जारी अधिसूचना में केवल चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में अधिवासियों को शत-प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गयी। फिर दो दिन बाद, केंद्र सरकार ने फैसले में संशोधन किया और ग्रुप बी, ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरियों में आरक्षण देने की बात कही। केंद्र के इन क़दमों के संबंध में फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार ने पूर्व सांसद शेख अब्दुल रहमान से दूरभाष पर विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं संपादित अंश]

अभी हाल ही में केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में डोमिसाइल पालिसी (अधिवास नीति) बनाई है। ऐसा कहा जा रहा है कि यहां के अधिवासियों को नौकरियों में आरक्षण मिलेगा। इसे आप किस रूप में देखते हैं?

देखिए, सरकार हर फैसला राजनीति को ध्यान में रखकर ही लेती है। इससे मुल्क को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। 5 अगस्त, 2019 को केन्द्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने और 35ए में संशोधन करने का फैसला लिया। वह एक तरह से मुल्क के हितों के खिलाफ है क्योंकि जम्मू-कश्मीर का विलय इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट (जिसमें राजा-महाराजों को अख्तियार था कि वे अपनी इच्छानुसार अपने राज्य का हिंदुस्तान या पाकिस्तान में विलय कर सकते थे) के तहत हुआ था। लेकिन महाराजा हरि सिंह ने 14 अगस्त 1947 (विलय करने की अंतिम तिथि) तब भी दोनों में से किसी भी देश में अपने राज्य का विलय नहीं किया। वे कहते रहे कि जम्मू-कश्मीर आजाद मुल्क रहेगा। उन्होंने दोनों मुल्कों को खत लिखा कि वे दोनों के साथ बराबर के ताल्लुकात रखेंगे। इसी बीच 22 अक्टूबर को पाकिस्तान के कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। उस समय महाराजा के पास फौज तो थी, लेकिन वह नाकाफी थी। उन्होंने भारत सरकार से मदद मांगी। भारत सरकार ने कहा कि आपने तो विलय किया ही नहीं है। इस प्रकार मजबूरन महाराजा हरि सिंह ने 27 अक्टूबर, 1947 को भारत के साथ विलय संंबंधी दस्तावेज पर दस्तखत कर दिए। लेकिन महाराजा ने यह शर्त रखी कि केवल तीन मामलों में भारत सरकार के निर्णय पर लागू होंगें. ये तीन मामले थे – विदेशी मामले, रक्षा और संचार। यह सब करारनामे में में दर्ज है। उसके तहत हम [जम्मू-कश्मीर] भारत का हिस्सा बन गये। 

लेकिन अवाम यानी जनता का सपोर्ट जरूरी था। 1948 में भारत का संविधान बना। उसमें अनुच्छेद 370 जोड़कर जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा तसलीम (अंगीकृत) किया गया और इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर की अंतरिम विधानसभा में अवाम के चुने हुए नुमाइन्दों ने तय किया कि जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा है। 1956 में यह कानून निर्मित हुआ। 

केन्द्र सरकार ने 370 हटाने के साथ ही वहां की’ विधानसभा को भी खत्म कर दिया। इस समय यही स्थिति है। (हालांकि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई बाकी है)। 

ऐसे में अभी यह सामने आना बाकी है कि केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर को राज्य के रूप में प्राप्त अधिकार मिलेंगे या नहीं। मैं आपको बताना चाहता हूं कि इन अधिकारों के लिए ही हमारी “प्रजा परिषद” ने संघर्ष किया था। मैं प्रजा परिषद का संस्थापक सदस्य था। हम लोगों ने जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के लिए बहुत संघर्ष किया और जेल भी गये ।

क्या प्रजा परिषद का जुड़ाव आरएसएस से था?

प्रजा परिषद आरएसएस से संबद्ध नहीं था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सहित आरएसएस के कुछ लोग जरूर उसमें थे। प्रजा परिषद एक रीजनल आवामी तहरीक (क्षेत्रीय स्तर पर जनता का संगठन) था। 1965 तक यह अस्तित्व में रही। भारत की स्वतंत्रता के समय यह मुद्दा था कि जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के साथ रहे या भारत के साथ। हम लोगों ने इस बात के लिए आंदोलन चलाया था कि हम पाकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहते हैं। इसके लिए हम लोग गिरफ्तार भी हुए थे। हम मानते हैं कि भारत में लाेकतंत्र है और यहां की सोसायटी लिबरल (उदार) है। हमारा भविष्य भारत के साथ है। लेकिन केन्द्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को धारा 370 को खत्म कर दिया। यह महाराजा हरि सिंह के साथ किए गए करारनामे के खिलाफ हुआ। भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से वे सारे अधिकार छीन लिये, जिन्हें हमने संघर्ष करके हासिल किया था ।

डोमिसाइल पॉलिसी को लेकर आप क्या कहेंगे?

देखिए, महाराजा हरि सिंह के चाचा प्रताप सिंह की 1926 में मौत के बाद एक अभूतपूर्व बदलाव आया। उनकी मृत्यु के बाद 1926 में महाराजा हरि सिंह ने गद्दी संभाली। उस समय यहां के मुसलमान अनपढ़ थे। मजदूरी कर अपनी जिन्दगी गुजर-बसर करते थे। मुसलमानों के पास न जमीनें थीं और न नौकरियां। शासन-प्रशासन में उनकी हिस्सेदारी नाममात्र की थी। 

शेख अब्दुल रहमान, पूर्व सांसद, जम्मू-कश्मीर

दरअसल कश्मीर में कश्मीरी पंडित महासभा एवं डोगरा सदर सभा थी, जिन्होंने महाराजा हरि सिंह पर दबाव डाला था कि रियासत के लोगों की सुरक्षा के लिए कुछ कानून बनाये जाने चाहिए। उन्हें डर था कि यदि दूसरे राज्यों के लोग यहां आ गए तो शासन-प्रशसन से लेकर जमीनों तक से उनका अधिकार छीन जाएगा। कश्मीरी पंडित सभा एवं डोगरा सदर सभा की मांग पर महाराजा ने 1927 में राज्य की विषय सूची संबंधी कानून बनाये। इसके बाद हालात बदलने लगे थे, शेड्यूल कास्ट के कुछ लोग पढ़-लिख गये, उनकी नुमाइंदगी भी होने लगी। लेकिन अब जो डोमिसाइल की नीति बनाई गयी है इससे अलगाववादियों को बड़ी ताकत मिलेगी। वे पहले से ही भारत के खिलाफ साजिशें करते रहे हैं। उन्हें यहां के युवाओं को बहकाने का बहाना मिल जाएगा। वे कहेंगे कि तुम्हारी सारी नौकरियाँ चली गयींतुम्हारे लिए चतुर्थ श्रेणी- माली और चौकीदार की नौकरियां ही बची हैं। लेकिन उसमें वे बाहरी भी शामिल होंगे जो 15 साल से दूसरे राज्यों से आकर यहां रह रहे हैं। 

लेकिन ताजा अपडेट है कि सरकार ने तो इस कानून को वापस ले लिया है?

केंद्र सरकार ने यह समझदारी का काम किया है। वह फारूख अब्दुल्ला एवं मिस्टर बुखारी (पीडीपी) से बात कर रही है। वह मिस्टर बुखारी को आगे करना चाहती है। सरकार को लगता है कि कहीं उन्हें माइनस न कर दिया जाय, क्योंकि वहां के मुसलमानों के अलावा हिन्दू भी इस डोमिसाइल कानून की मुखालफत (विरोध) कर रहे हैं।

जम्मू कश्मीर के हिन्दू इस फैसले से क्यों नाराज हैं?

उन्हें डर है कि इससे उनकी नौकरियां और जमीनों पर मालिकाना हक खत्म हो जायेगा। बाहर के लोग आकर जमीनें खरीदेंगे। उससे ये बेजमीन (भूमिहीन) हो जायेंगे। सरकार ने इस कानून को वापस लेने का फैसला लेकर समझदारी का काम किया है। लेकिन आगे ये देखना होगा कि यह कानून किस शक्ल में आता है।

जम्मू कश्मीर में दो तरह के लोग हैं। एक, पीओके से आये हुए शरणार्थी एवं दूसरे वाल्मिकी समाज के लोग। ऐसा कहा जाता है कि पीओके से आने वाले शरणार्थी दलित एवं पिछड़े मुसलमान हैं। उनको रिजर्वेशन का लाभ मिले, इससे आपको परेशानी क्या है?

पीओके से आए शरणार्थियों को स्टेट सब्जेक्ट के पूरे अख्तरियात (अधिकार प्राप्त) हैं। उनको रियासत का ही बाशिन्दा (निवासी) माना जाता है। उनके साथ कोई भेद-भाव नहीं किया जाता है। जो थोड़े बहुत सियालकोट (पाकिस्तान) से आए हुए थे, उनकी मांग थी कि हमें भी ये हक मिलें। उनको जमीन खरीदने एवं नौकरियों पाने का अधिकार नहीं था। लेकिन असल बात ये है कि उनकी पहली पीढ़ी जो यहां आई थी, वह मर-खप गयीजो नयी पीढ़ी है, उनके लिए मैं बार-बार मांग उठाता था कि उनका कुछ हक रखना चाहिए। मौजूदा केंद्र सरकार के फैसले से पाकिस्तान के शरणार्थियों को फायदा मिलेगा, लेकिन बहुत कम। वे पहले ही पैसे-वैसे खर्च करके अपने नागरिकता संबंधी दस्तावेज बनवा चुके हैं। जो थोड़े-बहुत गरीब-गुरबे बचे हुए हैं, मैं उनके हकों (अधिकारों) के लिए भी लड़ता रहता हूं। इनकी संख्या लगभग एक लाख से सवा लाख तक है। मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि नई डोमिसाइल पॉलिसी से यहां के लोगों के अधिकार सुरक्षित नहीं रह गये हैं। इनमें एससी, एसटी और ओबीसी सभी शामिल हैं।

यह भी पढ़ें : जम्मू में दलितों, आदिवासियों, खानाबदोशों और पिछड़ों के साथ एक दिन

जम्मू कश्मीर में आरक्षण का देर से लागू होने का क्या कारण है?

अनुसूचित जाति को आरक्षण तो शुरू से रहा है। लेकिन अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण नहीं था। मैं जब मेम्बर आफ पार्लियामेंट था तब मैंने इस बात के लिए संघर्ष किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की मदद से इसमें कामयाब भी हो गया। यह मान लिया गया कि यहां माल-मवेशी चराने वाले चरवाहे ट्राइब्स (जनजाति) हैं। इनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला। अनुसूचित जातियों को नौकरियों में रिजर्वेशन था, लेकिन उन्हें राजनीतिक आरक्षण नहीं था। राजनीतिक आरक्षण के मुद्दे पर कई बार विचार विमर्श हुआ। मैंने राज्यसभा में इनकी समस्यायें रखीं। जो गुर्जर और बकरवाल आदि जातियों के लोग हैं, राजौरी और पूंछ में इनकी संख्या अधिक है। इन्होंने इस सीट पर जीत हासिल की थी। और बगैर रिजर्वेशन के ही इनकी नुमाइन्दगी हो जाती है, जो इनकी संख्या से ज्यादा है। इसलिए आरक्षण की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की जरूरत है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में इनकी संख्या अधिक है।

डोमिसाइल कानून को लेकर आप क्या सुझाव देना चाहते हैं?

सरकार को यह नीति वापस लेनी चाहिए और जिस प्रकार महाराजा हरि सिंह ने स्टेट सब्जेक्ट लागू किये थे, वह पहले की तरह बहाल किया जाना चाहिए। यहां के लोगों के नौकरियों एवं जमीन पर उनके हक को उसी प्रकार महफूज (सुरक्षित) रखा जाए जिस प्रकार से पूर्वोत्तर के राज्यों, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड में हैहमारे युवाओं को ऐसा कतई नहीं लगना चाहिए कि वे घर से बेघर होंगे, बेजमीन होंगे और उन्हें बाहर के लोगों का चपरासी और चौकीदार बनना पड़ेगा।

(संपादन : इमानुद्दीन/अमरीश)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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