सावित्रीबाई फुले (3 जनवरी, 1831 – 10 मार्च, 1897) पर विशेष
आज का दिन भारत के सभी दलित-बहुजनों के लिए बेहद खास है। खास तौर पर महिलाओं के लिए। खास इसलिए कि आज के दिन वर्ष 1831 को सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था। उनका जीवन भी एक आंदोलन था। उनके सामने कितनी विषम परिस्थितियां थीं, उसका आकलन इसीसे किया जा सकता है कि महज 9 वर्ष की उम्र में उनकी शादी जोतीराव फुले से कर दी गई। उन दिनों बाल विवाह एक ऐसी कुप्रथा थी जिसका शिकार सभी होते थे।
फुले दंपत्ति साधारण दंपत्ति नहीं थी। जोतीराव फुले ने अपनी पत्नी को पढ़ाया और इतना पढ़ाया कि भारत की पहली शिक्षिका बना दिया। यह सब उनके अंदर कुछ कर गुजरने का हौसला ही था। नहीं तो एक माली परिवार में जिसका पेशा फूल-माला बेचना था, कहां सभव था कि एक महिला पढ़े और इतिहास में अपना नाम कर जाये।
जो महिलाएं वर्जनाओं को भेद लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहती हैं, सामाजिक ढांचे को तोड़ नए आयाम करना चाहती हैं, रूढ़ियों को पीछे छोड़ आगे बढ़़ना चाहती हैं, उनके लिए सावित्रीबाई फुले सबसे अधिक प्रेरणादायक आईकॉन हैं। वजह यह कि सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए उस कालखंड में स्कूलों की स्थापना की जब महिलाओं को मंदिरों में देवदास बनने के लिये मजबूर किया जाता था। यहां तक कि मंदिरों का निर्माण इसलिए किया जाता था ताकि वहां महिलाओं को गुलाम की तरह रखा जा सके।

सावित्रीबाई फुले ने तब अनाथ आश्रम खोले, जब महिलाओं के साथ बलात्कार के बाद उत्पन्न संतानों को कोई भी स्वीकार नहीं करता था। सावित्रीबाई फुले ने अस्पताल तब खोले जब शूद्र और महिलाओं की स्वास्थ्य को कोई अहमियत नहीं दी जाती थी।
वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर यदि फुले दंपत्ति का आकलन करें तो कहना गैर वाजिब नहीं कि दोनों ने मिलकर भारत में समतामूलक समाज की नींव रखी और इसके लिए क्या कमाल की प्रतिबद्धता थी उनकी। उन दिनों जब फुले दंपत्ति ने लड़कियों के लिए देश में पहला स्कूल खोला तब यह कोई सोच भी नहीं सकता था कि लड़कियां भी पढ़ लिख सकती हैं। वजह यह कि हिंदू धर्म में महिलाओं के पढ़ने-लिखने पर पूरी तरह रोक थी। यह धर्म विरूद्ध आचरण माना जाता था।
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यही वजह रही कि जब सावित्रीबाई फुले अपने स्कूल पढ़ाने जातीं तो उन्हें हर दिन समाज के भयंकर विरोध का सामना करना पड़ता। लोग उनके उपर पत्थर फेंकते। गोबर फेंककर उनके कपड़े गंदे कर देते। ऐसे में यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि वे किस तरह की गालियां देते होंगे। उस समय तो महिलाओं का घर से बाहर निकलना ही अपने आप में इतना बड़ा अपराध था कि फांसी की सजा भी कम थी। ऐसे समय में सावित्रीबाई फुले अपने घर से बाहर निकलीं और भारत के आकाश में सबसे चमकीला तारा बनकर छा गयीं। फुले दंपत्ति ने अपने जीवन में दर्जनों स्कूल लड़कियों के लिए खोले।
बहरहाल, महिलाओं को समाज में समान दर्जा दिलाने का क्रांतिकारी आंदोलन सावित्रीबाई फुले ने शुरू की, उसका असर देखा जा सकता है। आज महिलाएं जीवन के किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। इसलिए कहना अतिश्योक्ति नहीं कि सावित्रीबाई फुले हर उस महिला के लिए प्रेरणादायी हैं जो नौकरी करके परिवार को भी संभालना चाहती हैं, जो लेखिका बनना चाहती हैं, जो धर्म के नाम पर ठगने वाली बातों और काल्पनिक चीजों को नष्ट कर तर्क वाद वैज्ञानिक दृष्टिकोण स्थापित करना चाहती हैं, जो पितृसत्ता की सोच को चोट मार कर खंड-खंड कर देना चाहती हैं।
(संपादन : नवल)
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