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मुझे सवर्णों की राजनीतिक हलवाही नहीं करनी है : जगदेव प्रसाद

एक ऐसा व्यक्तित्व जिसका पूरा जीवन बहुजनों के लिए संघर्ष करते बीता, बहुजनों के इस नायक की सवर्णों ने हत्या करा दी। उनकी जयंती पर उनके भाई वीरेंद्र प्रसाद उनके सादगी पूर्ण जीवन, कुर्बानियों और संघर्षों को याद कर रहे हैं। उपेंद्र पथिक ने उनके भाई की बातों को लिपिबद्ध किया है

अमर शहीद जगदेव प्रसाद ( 2 फरवरी, 1922 – 5 सितम्बर, 1974 ) पर विशेष

आजादी के बाद खासकर उत्तर भारत में गरीबों-वंचितों के मुद्दों को राजनीति के केंद्र में लाने वाले राजनेताओं में जगदेव प्रसाद ( 2 फरवरी, 1922 – 5 सितम्बर, 1974  ) का नाम प्रमुख है। उन्हें बिहार का लेनिन कहा जाता है। राममनोहर लोहिया के नारे पिछड़ा पावे सौ में साठ के नारे का विस्तार कर जगदेव प्रसाद ने नब्बे बनाम दस का नारा दिया था। वे दलितों-पिछड़ों के बड़े नेता थे। वे बिहार सरकार में तीन बार मंत्री रहे और एक समय मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार भी थे। लेकिन बहुत कम लोग इस तथ्य से परिचित होगें कि उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन में किस तरह की कठिनाईयों का सामना करना पड़़ा था। यहां तक कि एक समय उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि सुई-धागा तक खरीद सकें।

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लेखक के बारे में

उपेन्द्र पथिक

सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार उपेंद्र पथिक अर्जक संघ की सांस्कृतिक समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। वे बतौर पत्रकार आठवें और नौवें दशक में नवभारत टाइम्स और प्रभात खबर से संबद्ध रहे तथा वर्तमान में सामाजिक मुद्दों पर आधारित मानववादी लेखन में सक्रिय हैं

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