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जातिगत जनगणना देश भर के ओबीसी की ओर से वाजिब मांग : भगवानलाल साहनी

जातिगत जनगणना पूरे भारत के पिछड़े वर्गों की मांग है। इसलिए सरकार का दायित्व है कि जातिगत जनगणना कराए। फारवर्ड प्रेस से विशेष बातचीत में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भगवानलाल साहनी

साक्षात्कार 

[राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भगवानलाल साहनी से फारवर्ड प्रेस के संपादक (हिंदी) नवल किशोर कुमार  की बातचीत। उनसे पिछड़ा वर्ग से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर बातचीत का संपादित अंश]

हाल ही में आपने दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों के नामांकन तथा नियोजन संबंधित  अनियमितताओं के बारे में विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ जवाब तलब किया। आपने क्या पाया?

देखिए, वहां मैंने पाया कि वर्षों से गेस्ट टीचर के रूप में या आउटसोर्सिंग के जरिए सारा काम चलाया जा रहा है। ओबीसी वर्ग के विद्यार्थियों को नामांकन संबंधी समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है। उनके सर्टिफिकेट को लेकर विश्वविद्यालय में बखेड़ा खड़ा किया जा रहा है। उनके नामांकन को रोकने के लिए तारीख मांगी जा रही है। हमने देखा कि रोस्टर प्रणाली का पालन भी नहीं किया जा रहा है। सबसे बड़ा संकट है कि पिछड़ा वर्ग के लोगों की स्थायी नियुक्तियां नहीं की जा रही हैं। आरक्षण नियमों का घोर उल्लंघन हो रहा है। विश्वविद्यालय के विभिन्न मदों, जैसे हॉस्टल आदि के मदों में आने वाले पैसों को लेकर भी हमने अनियमितताएं देखीं। इन पैसों को दूसरे विकास कार्य के मदों में डायवर्ट कर दिया जाता है। हर काॅलेज में लाइजनिंग अफसर नियुक्त किये जाने चाहिए। इनका काम पिछड़ा वर्ग के हितों को देखना है। जिन कालेजों में लाइजनिंग अफसर हैं, उन्हें पिछड़ा वर्ग के हितों की कोई जानकारी नहीं है। मैंने कुलपति को इन समस्याओं से अवगत कराया। उन्होंने आश्वासन दिया है कि वे इस पर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने हमसे कहा कि आने वाले समय में सुधार देखने को मिलेगा। लेकिन हमने देखा कि काफी देर हो रही है, तो फिर उन्हें संज्ञान कराया। कुछ समय पहले ही कुलपति और रजिस्ट्रार भी आये थे। हमने उनके सामने अपना असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने फिर आश्वासन दिया है कि इस पर ध्यान दिया जायेगा।

मेडिकल संस्थाओं में दाखिले में भी ओबीसी वर्ग को आरक्षण देय है। लेकिन राज्याधीन संस्थाओं में जो ऑल इंडिया कोटा है, उसमें ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। वह भी तब जबकि मद्रास हाई कोर्ट के आदेश के बाद एक कमेटी का गठन हो गया और उसने अपनी रिपोर्ट भी दे दी।

आप चीफ सेक्रेटरी या डीजीएचएस कह लीजिए, मैंने उनके सामने इन समस्याओं का उल्लेख किया है। एक केंद्रीय स्तर के मेडिकल काॅलेज होते हैं और दूसरे राज्य स्तर के। दोनों में आरक्षण को लेकर अलग-अलग प्रावधान हैं। राज्य सरकार आरक्षण संबंधी प्रावधानों को अपने यहां अलग से लागू करेंगी। लेकिन सेंट्रल कोटा राज्य सरकार के कोटे से अलग होता है। विश्वविद्यालय/काॅलेज के परास्तानक (पीजी) और स्नातक (यूजी) कोटे में भिन्नता है। पीजी का 15 प्रतिशत कोटा सेंट्रल कोटा है। जबकि यूजी का 50 प्रतिशत कोटा सेंट्रल कोटा है। विचारणीय है कि इसमें कोई आरक्षण नहीं है। इसी तरह का प्रश्न एससी/एसटी की ओर से उठा था। जब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला गया, तो बहुत सारे सवाल खड़े किए गए कि कमेटी का गठन कर लिया जाए, रिपोर्ट आने पर देखेंगे। लेकिन अंत में जजमेंट उनके पक्ष में गया। यह सिर्फ तमिलनाडु राज्य का मामला नहीं है, बल्कि पूरे भारतवर्ष में इस तरह की समस्याएं हैं। हमने कहा कि इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट निर्णय नहीं लेती है। जिस संस्था को सरकारी सहायता मिल रही है, उस संस्था में आरक्षण स्वाभाविक रूप से लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट, यूजीसी, डीओपीटी और पार्लियामेंट के इस संबंध में एकसमान निर्णय हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को कैसे ले जाया जा सकता है? हमने कहा कि इस तरह से आप अपने जिम्मेदारी से कबतक पीछे हटते रहेंगे, बहानेबाजी छोड़िए। मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाना, कमेटी बनाना, रिपोर्ट कब आएगा, इंतजार करना आदि ये सब मामले को टालना, पेंडिंग में डालना कब तक चलेगा! आप क्या समझते हैं कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट रोक देगा! यह तो संविधान में है। इसे आपको करना ही होगा। यह तो सबका निर्णय है। सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय के खिलाफ कैसे जा सकती है? जब एससी/एसटी को न्याय मिल गया तो ओबीसी को क्यों रोका जाना चाहिए?

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भगवानलाल साहनी को फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तक “भारतीय कार्यपालिका में सामाजिक न्याय का संघर्ष : अनकही कहानी, पी. एस. कृष्णन की जुबानी” की प्रति भेंट दी गई

एक समस्या सार्वजनिक या लोक उपक्रम में ओबीसी के कर्मचारियों के नियुक्तियों को लेकर बड़ी अनियमिततायें देखने को मिलती हैं। अभी हालात यह है कि तकरीबन 150 के ऊपर ऐसे उम्मीदवार हैं जो आइएएस के लिए क्वालीफाई कर चुके हैं। लेकिन उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि आप आरक्षित श्रेणी में नहीं आते हैं?

ये वर्षों की जड़ता है, इसे तोड़ने में समय लगेगा। ऐसा नहीं है कि हम इस पर विचार नहीं करते। अभी पत्र-व्यवहार चल रहा है। देखिए, आगे क्या होता है।

आखिरी सवाल, जातिगत जनगणना को लेकर आपकी राय क्या है?

जहां तक जातिगत जनगणना का सवाल है, तो पूरे भारतवर्ष के पिछड़े वर्गों की मांग है कि उनकी जातिगत जनगणना हो। इसलिए सरकार का दायित्व है कि जातिगत जनगणना कराए।

(संपादन : इमामुद्दीन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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