धरती आबा बिरसा मुंडा (15 नवंबर, 1875 – 9 जून, 1900) झारखंड ही नहीं, पूरे भारत के आदिवासियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। जून का महीना सभी आदिवासियों के लिए विशेष महत्व वाला महीना है। इसी महीने की 9 तारीख को बिरसा मुंडा की शहादत का दिन आता है और वहीं 30 जून को हूल (विद्रोह) दिवस के रूप में याद किया जाता है। बताया जाता है कि स्थानीय जमींदारों की संरक्षक अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें धीमा जहर देकर जेल में ही मार दिया था। तब उनकी उम्र केवल 25 वर्ष की थी। वहीं 30 जून 1855 को सिदो–कान्हू के नेतृत्व में अंग्रेजों और महाजनों के खिलाफ हूल (विद्रोह) हुआ था, जिसमें करीब 20 हजार लोग मारे गए थे।
जहां बिरसा ने ली अंतिम सांस, अब बनाया जा रहा संग्रहालय
रांची के वर्तमान सर्कुलर रोड या कचहरी रोड में ब्रिटिश काल में रांची सेंट्रल जेल बनाया गया था। बिरसा मुंडा को इसी जेल में रखा गया था। इसी जेल में उन्हें धीमा जहर देकर मार दिया गया था। जिसे झारखंड अलग राज्य बनने के आठ साल बाद होटवार में बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारा बनाकर स्थानांतरित कर दिया गया और रांची सेंट्रल जेल को तोड़कर बिरसा मुंडा संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है। इसमें बिरसा मुंडा की जीवनी को दर्शाया जाएगा। संग्रहालय में एक तरफ बिरसा मुंडा से जुड़ी स्मृतियां संजो कर रखी जाएंगी, तो दूसरी तरफ देश के स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के वीर सपूतों की बलिदान से लोगों को रू-ब-रू कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति को संरक्षित किया जाएगा।

बताया जा रहा है कि पुराने जेल परिसर में बिरसा मुंडा की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी, जो इस संग्रहालय में पहुंचने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा। वहीं, परिसर में उनकी जीवनी पर आधारित लाइट एंड साउंड शो का भी प्रावधान किया जाएगा।

बताते चलें कि झारखंड की प्रमुख जेलों में से रांची के बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारा होटवार है। इसी जेल में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला मामले बंद रखा गया था, जिन्हें हाल ही में जमानत पर रिहा किया गया है।
कोकर और लालपुर के बीच है बिरसा की समाधि
रांची के कोकर क्षेत्र में कोकर और लालपुर के बीच अवस्थित नाला डिस्लरी पुल के पास बिरसा मुंडा की समाधि है। कहा जाता है कि बिरसा मुंडा की मौत के बाद इसी स्थान पर अंग्रेजों उन्हें जलाया था। यहां एक बड़ा सा हिस्सा आज भी खाली है, जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है। पूर्व में यहां बड़ा सा तालाब रहा होगा, जिस पर अब इमारतें बना दी गई हैं। पिछले साल शरारती तत्वों ने बिरसा मुंडा की मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया था। इसे लेकर आदिवासी काफी आक्रोशित हुए। बाद में स्थानीय प्रशासन ने मूर्ति की मरम्मती करवाने के बाद पूरे स्थल को सुरक्षित कर दिया है।
हीनू चौक पर थी बेड़ियों में जकड़े बिरसा की मूर्ति
पहली बार रांची के हीनू चौक पर एकीकृत बिहार में बिरसा मुंडा की प्रतिमा लगाई गई थी। मूर्तिकार ने बिरसा की मूर्ति को जंजीर से बंधा हुआ दिखाया था। सन् 1980 के दशक में जब उपन्यासकार महाश्वेता देवी रांची आई थीं। उन्होंने बिरसा की प्रतिमा को देख कहा था कि बिरसा को जंजीर में जकड़ा हुआ दिखाना उनका अपमान होगा। फिर वहां नई प्रतिमा लगाई गई, जो आज भी मौजूद है। वह चौक हवाई अड्डा की ओर भी जाता है।
बिरसा के नाम पर हैं कई शिक्षण संस्थान
बिरसा मुंडा के नाम पर रांची में ही बिरसा कृषि विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय परिसर में भी बिरसा मुंडा की आकर्षक प्रतिमा है। वहीं दुमका में फूलो झाँनौ मुर्मू डेयरी प्रौद्योगिकी महाविद्यालय है। यहां के प्रांगण में भी बिरसा मुंडा की बड़ी प्रतिमा है।
बिरसा के नाम पर हवाई अड्डा
बिरसा मुंडा के नाम पर रांची के हीनू मोहल्ले के समीप बिरसा मुंडा हवाई अड्डा है। इसका प्रबंधन भारतीय विमानपतन प्राधिकरण करती है। यह मुख्य शहर से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर है। यह भारत का पच्चीसवां सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है।

सौ फीट का मीनार
इसके अलावा खूंटी जिले में स्थित डोम्बारी बुरू पहाड़ी पर बिरसा मुंडा के नाम पर एक 100 फीट का मीनार है, जिसे राम दयाल मुंडा और मेघनाथ के सहयोग से बनाया गया है। डोम्बारी बुरु का ऐतिहासिक महत्व इसलिए है कि इसी पहाड़ी से बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी हुई थी।
(संपादन : नवल)
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