h n

नारद को हिंदी पत्रकारिता का जनक बताने के निहितार्थ

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर नारद को न केवल पहले पत्रकार के रूप में स्थापित किया जाता है बल्कि इस मिथकीय चरित्र को अकादमिक क्षेत्र में शोध ग्रंथ तैयार करवा कर उन्हें एक इतिहास के रूप में बनाए रखने की नियमित कवायद चलती है। इस मिथकीय चरित्र को उदंत मार्तंड के प्रकाशन से जोड़ना दरअसल हिंदी पत्रकारिता में हिंदुत्व् की नई राजनीतिक परियोजना का हिस्सा है। बता रहे हैं अनिल चमड़िया

मीडिया विमर्श

विश्व और देश भर में जिन-जिन भाषाओं के जरिये पत्रकारिता की जाती है, क्या हिंदी पत्रकारिता की तरह सभी भाषाओं के अलग-अलग पत्रकारिता दिवस एक साल में मनाया जा सकता है? उसके लिए तो 365 दिन कम होंगे। भारत में पत्रकारिता के लिए प्रशिक्षण के केंद्र व शिक्षा के लिए विभाग खोले गए हैं। मसलन, 1941 में पंजाब विश्वविद्यालय में पत्रकारिता का एक अलग विभाग खोला गया। लेकिन यह केवल किसी एक भाषा तक सीमित नहीं था। जबकि बाद में हिंदी पत्रकारिता के लिए अलग विभाग, केन्द्र व विभिन्न संस्थान स्थापित किए गए। आखिर हिंदी में पत्रकारिता में विशिष्ट रूप से क्या पढ़ाई व बताई जाती है?

पूरा आर्टिकल यहां पढें : नारद को हिंदी पत्रकारिता का जनक बताने के निहितार्थ

लेखक के बारे में

अनिल चमड़िया

वरिष्‍ठ हिंदी पत्रकार अनिल चमडिया मीडिया के क्षेत्र में शोधरत हैं। संप्रति वे 'मास मीडिया' और 'जन मीडिया' नामक अंग्रेजी और हिंदी पत्रिकाओं के संपादक हैं

संबंधित आलेख

मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह से विश्वविद्यालयों को अपने कैडर से...
आखिर ‘चंद्रगुप्त’ नाटक के पन्नों में क्यों गायब है आजीवक प्रसंग?
नाटक के मूल संस्करण से हटाए गए तीन दृश्य वे हैं, जिनमें आजीवक नामक पात्र आता है। आजीवक प्राक्वैदिक भारत की श्रमण परंपरा के...
कौशांबी कांड : सियासी हस्तक्षेप के बाद खुलकर सामने आई ‘जाति’
बीते 27 मई को उत्तर प्रदेश के कौशांबी में एक आठ साल की मासूम बच्ची के साथ यौन हिंसा का मामला अब जातिवादी बनता...
अपने जन्मदिन पर क्या सचमुच लालू ने किया बाबा साहब का अपमान?
संघ और भाजपा जहां मजबूत हैं, वहां उसके नेता बाबा साहब के विचारों और योगदानों को मिटाने में जुटे हैं। लेकिन जहां वे कमजोर...
कॉमरेड ए.के. राय कहते थे, थोपा गया विकास नहीं चाहते आदिवासी
कामरेड राय की स्पष्ट धारणा थी कि झारखंडी नेतृत्व के अंदर समाजवादी एवं वामपंथी विचारधारा उनके अस्तित्व रक्षा के लिए नितांत जरूरी है। लेकिन...