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फादर स्टेन स्वामी के निधन से दलित-बहुजन जगत में शोक की लहर

‘भारत में दलित आदिवासी के लिये काम करने वाले शख्स को जीवित नहीं छोड़ा जाता है। हालांकि आपको दलित और आदिवासी नेता बहुत मिलेगें, लेकिन दलित आदिवासियों के लिये जीने मरने वाले लोग बहुत कम मिलेंगे। सत्ता के निगाह में ऐसे लोग हमेशा खटकते हैं।’ फादर स्टेन स्वामी के निधन पर अनिल चमड़िया के इस संदेश के साथ पढ़ें अन्य दलित-बहुजन बुद्धिजीवियों की टिप्पणी

फादर स्टेन स्वामी का निधन 5 जुलाई, 2021 को हो गया। लेकिन यह सामान्य मौत नहीं थी। उनकी मौत न्यायिक हिरासत में हुई। उनकी मौत के बाद भारत सरकार और न्यायपालिका पर सवाल उठाए जा रहा हैं।  

बता दें कि स्टेन स्वामी पार्किंसन बीमारी से ग्रसित थे। तंत्रिका तंत्र से संबंधित इस बीमारी में शरीर में अक्सर कंपकंपाहट होती है। मरीज़ का शरीर स्थिर नहीं रहता और संतुलन नहीं बना पाता। अतः स्टैन स्वामी को पानी का गिलास पकड़ने में परेशानी होती थी। इस बीमारी के अलावा स्टेन स्वामी अपने दोनों कानों से सुनने की क्षमता लगभग खो चुके थे। कई बार वे जेल में गिर भी गए थे। साथ ही दो बार हर्निया के ऑपरेशन की वजह से उनके पेट के निचले हिस्से में दर्द रहता था।

 

गौर तलब है कि उनकी अर्जी पर 29 मई 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। जबकि पिछले महीने एनआईए ने हाईकोर्ट के समक्ष हलफनामा देकर स्टेन स्वामी की जमानत याचिका का विरोध करते हुये कहा था कि उनकी बीमारी के कोई ‘ठोस सबूत’ नहीं हैं। और स्वामी का संबंध माओवादियों के साथ रहा है। इनके द्वारा देश में अशांति फैलाने की साजिश की गयी थी।

उनका निधन जब 5 जुलाई, 2021 को हुआ तो उसी दिन बांबे हाईकोर्ट में उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई होनी थी। राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) ने फादर स्टेन स्वामी को अक्टूबर 2020 में जिस मामले में गिरफ्तार किया था, वह एल्गार परिषद से जुड़ा है जो कि 31 दिसंबर, 2017 का है। इसके बारे में पुलिस का दावा है कि भड़काऊ भाषणों के कारण भीमा-कोरेगांव में हिंसा हुई थी। 

फादर स्टेन स्वामी की हुई सांस्थानिक हत्या : चौथीराम यादव 

उनके निधन पर दलित-बहुजन जगत में शोक की लहर है। फेसबुक व ट्वीटर आदि मंचों पर लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। मसलन, प्रसिद्ध समालोचक चौथीराम यादव लिखते हैं– “वह संत थे। आदिवासी समुदाय के सवाल और मानवाधिकारों को लेकर चलने वाले संत। दलित बहुजन बुद्धिजीवी जो सच को सच और जूछ को झूठ कहने के हिम्मत करते हैं, यह सरकार उन्हें झूठे केस में फंसाकर जेल में डाल देती है। बिना आरोप सिद्ध हुये उन्हें भीमा कोरेगांव के नाम पर कस्टडी में रखकर प्रताड़ित किया गया। गंभीर बीमारी और वयोवृद्ध होने के बावजूद उनकी जमानत याचिका खारिज़ कर दी गयी। न्यायपालिका की निर्ममता और सरकार की मिलीभगत से उनकी संस्थानिक हत्या की गयी है। भीमा-कोरेगांव के असली अपराधी सड़कों पर घूम रहे हैं। देश विदेश में इस पर थू-थू हो रही है। पूरा विश्व देख रहा है कि भारत में लोकतंत्र की कैसी हत्या की जा रही है।”

मानवता के लिए खतरनाक है सरकार का रवैया : लक्ष्मण गायकवाड़

दलित पैंथर आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में से एक लक्ष्मण गायकवाड़ ने स्टेन स्वामी की मौत पर कहा है कि– “यह बहुत गलत हुआ। काम करने वाले जो अच्छे लोग हैं, सत्ता संपत्ति से बाहर रहकर मानवता की सेवा करने वाले लोगों की अगर इस तरह से मौत होती है तो देश के लिये यह लांछन है। वे गरीब आदिवासियों लोगों के पास जाकर उनके आंसू पोछते थे। विचारधारा तो विचारधारा की तरह है। कौन ये है, कौन वो है, अरे भाई देश में विभिन्न विचार के लोग हैं। इसलिये इसे हम अच्छी बात नहीं मानते। हम उनके साथ हैं। उनकी इस तरह से हत्या होना या इस तरह से मजबूर करना आतंकवाद है, मानवता के लिये खतरनाक है।”

मुंबई के एक चर्च में फादर स्टेन स्वामी का पार्थिव शरीर

विश्व आदिवासी दिवस के प्रसार में थी फादर की अहम भूमिका : डॉ. शांति खलखो

आदिवासी साहित्यकार, और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. शांति खलखो कहती हैं– “वह मसीहा थे। मेरा उनसे व्यक्तिगत मिलना-जुलना था। हमने एक साथ बहुत काम किया था। 9 अगस्त (विश्व आदिवासी दिवस) को भारत में व्यापक बनाने में उनका बहुत महत्वपूर्ण योगदान था। आदिवासी समुदाय में चेतना और हक़ के लिये लड़ने के लिये उन्होंने प्रेरित किया। लोग जागरूक हुये  हर साल 9 अगस्त को जिला मुख्यालय में आदिवासी अधिकार दिवस मनाना शुरु किया। इन कार्यक्रमों में वह ज़रूर आते थे। आदिवासी व दलित समाज के लिये तमाम कायक्रमों की कार्य योजना और वैचारिकी में वह शामिल होते थे। युवा पीढ़ी अगर बातों को नहीं समझती थी, वहां फादर स्टेन स्वामी खुद अगुवाई करके रास्ता बताते थे। युवा पीढ़ी के गर्म ख़ून में जल्दी उबाल आ जाता है। ऐसे में वह आदिवासी आंदोलन को हिंसात्मक कार्रवाई से मुक्त कर अहिंसक बनाने में बड़ी भूमिकायें निभाते थे। उनके जाने से आदिवासी समाज के लोग बहुत दुखी है। जिस व्यक्ति ने लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ी उन्हें खुद मानवाधिकार का जो फायदा मिलना था वो नहीं मिला। उनकी मौत जिस तरह से हिरासत में हुयी है, वह बहुत दुखद व रोषपूर्ण, अन्यायपूर्ण व निंदनीय है। उन्हें जिस तरीके से बिना किसी गलती के जेल में डाला गया। उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। उनके अधिकार छीन लिए गए। हमलोग विरोध में सामूहिक आवाज़ उठायेंगे।”

क्रूर तानाशाही ने ली फादर स्टेन स्वामी की जान : बादल सरोज

एक्टिविस्ट व पत्रकार बादल सरोज ने तमाम राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग दोहराते हुये लिखा है– “यह हिरासत में की गई क्रूर हत्या है। फादर स्टेन को कई बीमारियों से पीड़ित होने के बावजूद भी यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया । एनआईए ने बार-बार उन्हें जमानत देने से इनकार किया। अदालत के हस्तक्षेप के बाद उन्हें अंततः एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, फादर स्टेन की जान आपकी सरकार की क्रूर तानाशाही ने ली है।”

सत्ता की निगाह में खटकते हैं ऐसे लोग : अनिल चमड़िया

वहीं वरिष्ठ पत्रकार, संपादक और मीडिया के सवर्णवादी चरित्र पर शोध पुस्तक लिखने वाले अनिल चमड़िया ने कहा है– “भारत में दलित आदिवासी के लिये काम करने वाले शख्स को जीवित नहीं छोड़ा जाता है। हालांकि आपको दलित नेता आदिवासी नेता बहुत मिलेगें, लेकिन दलित आदिवासियों के लिये जीने मरने वाले लोग बहुत कम मिलेंगे। सत्ता के निगाह में ऐसे लोग हमेशा खटकते हैं। इतिहास में आपको ऐसी असंख्य घटनायें मिलेंगी कि उन्हें जिंदा ही नहीं रहने दिया गया।”

फादर स्टेन स्वामी (26 अप्रैल, 1937 – 5 जुलाई, 2021)

सिस्टम ने किया अन्याय : उर्मिलेश

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश लिखते हैं– “स्टेन स्वामी नहीं रहे! लेकिन यह उनकी स्वाभाविक मौत नहीं, एक तरह की हत्या है, सिस्टम के हाथों हत्या! 84 साल के आदमी को महामारी के दौर में किसी सबूत के बगैर लगातार जेल में रखना कितना बड़ा गुनाह है! भारत अब ऐसे व्यवस्थागत-गुनाहो का ख़तरनाक द्वीप बनता जा रहा है! अफ़सोस, स्वामी साहब, आपने गरीब लोगों को न्याय दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष किया पर लोकतांत्रिक कहे जाने वाले इस मुल्क के सिस्टम ने आपके साथ सरासर अन्याय किया! आपसे कभी मिलना नहीं हुआ लेकिन काफी सुन रखा था। सलाम और श्रद्धांजलि।” 

महज मौत नहीं, संवेदनहीन सरकार द्वारा हत्या : राजेश कुमार

प्रसिद्ध नाटककार राजेश कुमार लिखते हैं– “फादर स्टैन स्वामी के निधन के समाचार सुनकर मुझे क्या, किसी को भी दुःख से ज्यादा गुस्सा आएगा। और गुस्सा आये भी क्यों नहीं? यह एक महज मौत नहीं है, एक संवेदनहीन सरकार द्वारा की गई हत्या है। और इसमें केवल सरकार ही नहीं, कई लोग शामिल हैं। पूरा सिस्टम  इस षडयंत्र में शामिल है। सबों ने मिलकर, घेरकर मारा है। बहाना भले कुछ और दे दें। असल में उन्हें बर्दाश्त नहीं है कि कोई आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक , किसान-मजदूर की लड़ाई लड़ें, उनके हित में खड़ा हो, विरोध की मुद्रा अख्तियार करें। भीमा-कोरेगांव कांड तो एक बहाना है। उन्हें डर है कि कहीं वंचित, उत्पीड़ित और हाशिये का समाज एकजुट हो गया तो सत्ता संभालना दूभर हो जाएगा। और सत्ता आज बौखला गयी है। जनतंत्र की आड़ में फासीवाद का खेल खेलने लगी है।” 

आदिवासियों के लिए लड़ रहे थे फादर : सुभाषचंद्र कुशवाहा

साहित्यकार सुभाषचंद्र कुशवाहा ने लिखा है– “हम बेहद आहत हैं। एक निर्दोष और 84 साल के बुजुर्ग, जो पार्किंसन बीमारी से ग्रसित थे, उनको झूठे आरोप में फंसा कर सांस्थानिक हत्या की गई। एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ एनआईए ने सत्ता के इशारे पर अमानवीय व्यवहार किया। यह चिंता का विषय है। फादर पर कोरेगांव के तहत जो झूठा मामला बनाया गया, वह दरअसल गरीबों की हक-हकूक की लड़ाई लड़ने वालों को ठिकाने लगाना के उद्देश्य से हुआ है। वह फासिस्ट सत्ता की हिफाजत के लिए हुए है। फादर तो आदिवासियों की लड़ाई लड़ रहे थे। 

“दरअसल, इस देश के मूल निवासियों के हितों की बात करने वाले, सत्ता और कारपोरेट, दोनों को खटकते हैं। आदिवासियों की जर-जमीन लूटने वालों के इशारे पर यह सब हुआ है। यह संविधान के मूलभूत अधिकारों की भी हत्या है। न्यायपालिका इस ओर आंख बंद किए रही। उसका कृत्य भी इतिहास में दागदार हो चुका है। उसने भी एक बेदाग बुजुर्ग को समय पर जमानत न दी, उसने संविधान की हिफाजत न की, उसने जेल में सड़ाये जा रहे देश के सामाजिक कार्यकर्ताओं के मूल्यों की तवज्जो न दी। एक बीमार व्यक्ति को उचित चिकित्सा उपलब्ध न करा कर, मार देने का मामला है। न्याय का तकाजा तो हत्या का मुकदमा चलाने का है। देखना है, न्यायालय की आंख खुलती है या नहीं?”

बिना दोष साबित किए जेल में सड़ाकर मार डाला : दिलीप मंडल

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लिखा है– “ भीमा कोरेगांव में हिंसा करने वाला आतंकवादी मनोहर कुलकर्णी भिड़े बाहर घूम रहा है और सरकार इस केस में झारखंड में आदिवासियों के लिए आंदोलन करने वाले 84 साल के बुजुर्ग स्टेन स्वामी को पकड़ लाती है। सही इलाज न मिल पाने के कारण बीमार स्टेन स्वामी मारे जाते हैं। उनके उपर आरोप कभी सिद्ध नहीं हुआ। इतिहास में इस मृत्यु को हत्या के तौर पर दर्ज किया जाएगा, जिसमें दोषी मोदी सरकार और न्यायपालिका है। सरकार और न्यायपालिका ने 84 साल के वृद्ध बीमार, चलने-फिरने से लाचार, आदिवासी अधिकारों के समर्थक स्टेन स्वामी को बिना दोष सिद्ध हुए, जेल में सड़ाकर मार डाला। लानत है।”

(संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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