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NEET में ओबीसी आरक्षण : भ्रम, यथार्थ और केंद्र की मंशा

ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर नीट शुरुआत से ही विवादों के घेरे में रही है। साथ ही इस संबंध में भ्रम भी फैलाया जा रहा है। सवाल है कि क्या भ्रम फैलाये जाने से ओबीसी युवाओं का मनोबल कमजोर नहीं होगा? जैगम मुर्तजा की खबर

क्या नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट यानी नीट के तहत अखिल भारतीय कोटा में ओबीसी को इस साल आरक्षण नहीं दिया जा रहा है? नीट-2021 का ऐलान होते ही हर तरफ इस तरह की चर्चा है। सोशल मीडिया से लेकर गांव की चौपाल तक लोग इस चर्चा में व्यस्त हैं। लेकिन क्या यह बात सही है? सवाल यह भी है कि यदि फैलाई जारी खबर यदि भ्रामक है तो क्या इसे फैलाने वाले ये नहीं समझते हैं कि उनके कारण ओबीसी के प्रतिभावान अभ्यर्थियों का मनोबल कमजोर होगा?

ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर नीट शुरुआत से ही विवादों के घेरे में रही है। यह आरोप भी बेबुनियाद नहीं है कि देश के तमाम मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली यह परीक्षा दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों के साथ भेदभावपूर्ण रही है। राज्याधीन मेडिकल संस्थाओं व विश्वविद्यालयों में केंद्रीय कोटे में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ मिलेगा या नहीं, यह सवाल अभी तक सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच है। इस बीच नीट-2021 का ऐलान होते ही सोशल मीडिया से लेकर सियासी हलक़ों में यह अफवाह तेज़ हो गई है कि नीट में ओबीसी का आरक्षण ख़त्म कर दिया गया है।

दरअसल, नीट-2021 की विवरणिका के मुताबिक़, एससी, एसटी और ओबीसी के छात्रों के लिए क्वालिफाइंग परीक्षा में जीव विज्ञान, भौतिकी और रसायन विज्ञान के कुल अंकों में पहले की ही तरह दस फीसद छूट का प्रावधान है। सामान्य और ईडब्लूएस कोटा के तहत दाख़िला पाने वालों छात्रों के बारहवीं की परीक्षा में इन तीन विषयों में 50% अंक होने चाहिएं जबकि ओबीसी, एससी और एसटी के छात्रों के लिए यह अनिवार्यता 40% अंकों की है।

राज्याधीन संस्थाओं व कॉलेजों आदि के केंद्रीय कोटे में ओबीसी को मिले आरक्षण, इसके लिए आवाज उठाने की जरूरत

इसी तरह विवरणिका के नियम 5.1.7 के उपनियम I और II के मुताबिक़ राज्य सरकारों के विश्वविद्यालयों और मेडिकल कालेजों में राज्यों के कोटे की सीटों पर आरक्षण सबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में लागू प्रावधानों के मुताबिक़ होगा। वहीं नियम III में कहा गया है कि निजी मेडिकल कॉलेजों में स्नातक सीटों पर आरक्षण केंद्र/राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की नीति के मुताबिक़ दिया जाएगा। ग़ौरतलब है कि ऑल इंडिया कोटा में एमबीबीएस की 15 फीसदी सीट और स्नातकोत्तर की 50 फीसदी सीटें केंद्र के अधीन होती हैं। इसके तहत देश के किसी भी हिस्से से अभ्यर्थी का नामांकन रैंकिंग के आधार पर हो सकता है।

वहीं विवरणिका के नियम 5.2.1 में अखिल भारतीय कोटा का साफ-साफ ज़िक्र है। इसमें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के गैर क्रीमी लेयर के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान पहले की ही तरह बरक़रार है। आर्थिक आधार पर कमजोर वर्गों (ईडब्लूएस) के लिए 10 प्रतिशत और विकलांगाें के लिए 5 प्रतिशत कोटा भी क़ायम है।

यह भी पढ़ें : मेडिकल कॉलेजों में दाखिला : ओबीसी की 3 हजार से अधिक सीटों पर उच्च जातियों को आरक्षण

फिर विवाद कहां है? सनद रहे कि ओबीसी और ईडब्ल्यूएस का आरक्षण सिर्फ केंद्रीय संस्थानों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए है। 

दरअसल विवाद के जड़ में यही है। केंद्र सरकार द्वारा पहले की तरह राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में केंद्रीय कोटे के तहत ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। जबकि तमाम केंद्रीय संस्थानों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कोटा नियम लागू है। विवरणिका में कहा गया है कि मद्रास हाईकोर्ट ने 27 जुलाई, 2020 को रिट याचिका (8324/2020) के तहत दिए अपने आदेश में एक कमेटी का गठन करने का आदेश दिया था। न्यायालय के आदेश पर ही महानिदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं, भारत सरकार, तमिलनाडु सरकार, मेडिकंल काउंसिल ऑफ इंडिया और डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया को इसके सदस्य मनोनीत किए गए। इस कमेटी की जिम्मेदारी यह तय करने की थी कि अगले अकादमिक सत्र यानी 2021-22 से ऑल इंडिया कोटे के तहत एमबीबीएस व पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सों में दाखिले हेतु ओबीसी को आरक्षण कैसे दिया जाय।

कहां कहां है ओबीसी को आरक्षण?
  • राज्याधीन मेडिकल संस्थाओं व कॉलेजों में राज्यों के कोटे में राज्य सरकारों के आरक्षण संबंधी प्रावधानों के अनुसार

  • केंद्रीय मेडिकल संस्थाओं, विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में 27%

यहां हो रही है ओबीसी के साथ हकमारी
  • राज्याधीन मेडिकल कॉलेजों व संस्थाओं के केंद्रीय कोटे में

मद्रास हाईकोर्ट के आदेश से गठित उपरोक्त कमेटी ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी। रिपोर्ट के अवलोकन के बाद केंद्र सरकार ने कमेटी की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सलोनी कुमार व अन्य बनाम डीजीएचएस मामले (रिट याचिका 596/2015) के आलोक में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया। इस मामले का संबंध भी राज्याधीन संस्थानों में केंद्रीय कोटे के तहत ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने से है। अभी तक इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आया है। केंद्र सरकार कह रही है कि इस कारण ही राज्यों द्वारा समर्पित किए गए सीटों में केंद्रीय कोटे के तहत ओबीसी को आरक्षण तभी दिया जा सकेगा जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फैसला सुनाएगी।

बताते चलें कि इस मामले में जनवरी 2020 में ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेज इम्प्लॉयज (एआईओबीसी) के महासचिव जी. करुणानिधि का प्रधानमंत्री के नाम पत्र अभी भी उतना ही प्रासंगिक है। तब करूणानिधि ने कहा था कि शैक्षणिक सत्र 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के दौरान स्नातक (यूजी-एमबीबीएस) और स्नातकोत्तर (पीजी) कोर्सों में ओबीसी को राज्याधीन संस्थाओं में केंद्रीय कोटे के तहत 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया गया है। करुणानिधि ने उदाहरण देते हुए तब बताया था कि वर्ष 2018-19 में मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर कोर्सों में देश भर में ओबीसी के केवल 220 छात्रों का दाख़िला हुआ। जबकि 27 प्रतिशत के हिसाब से कुल 7,982 सीटों में से  2,152 सीटों पर ओबीसी को आरक्षण मिलना चाहिए था। इसी प्रकार स्नातक कोर्स (एमबीबीएस) में केवल 66 सीटों पर ओबीसी वर्ग के छात्रों को आरक्षण मिला। जबकि कुल सीटों की संख्या 4,061 थी और 27 प्रतिशत के हिसाब से 1,096 सीटों पर ओबीसी छात्रों का दाख़िला सुनिश्चित कराने की ज़िम्मेदारी भारत सरकार की थी, जिसमें वह विफल रही।

बहरहाल, यह तो सफ है कि नीट द्वारा जारी विवरणिका में यह कहीं नहीं कहा गया है कि नीट परीक्षा में ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जाएगा। जो पेंच है, वह सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार द्वारा मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर गठित कमेटी की रिपोर्ट को पेश किया जाना है। वैसे इसका असर भी केवल राज्याधीन संस्थाओं में केंद्रीय कोटे के तहत ओबीसी आरक्षण पर पड़ेगा। ऐसे में स्पष्ट है कि भ्रामक सूचनाओं के प्रसार से ओबीसी अभ्यर्थियों का मनोबल कमजोर होगा। जबकि आवश्यकता यह है कि भारत सरकार पर यह दबाव बनाया जाय कि वह राज्याधीन संस्थआों में केंद्रीय कोटे के तहत ओबीसी अभ्यर्थियों को आरक्षण दे, जिसके कारण हजारों की संख्या में ओबीसी के सीटों पर सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों का दाखिला दे दिया जा जाता है। यह ओबीसी अभ्यर्थियों की हकमारी है।

(संपादन : नवल/अनिल/अमरीश)


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सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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