पेरियार के विचार अब उत्तर भारत के हिंदी प्रदेशों से होते हुए पश्चिम बंगाल की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं। बीते 17 सितंबर, 2021 को पेरियार की 143वीं जयंती के मौके पर उनकी कालजयी कृति ‘सच्ची रामायण’ के बांग्ला अनुवाद का लोकार्पण किया गया। यह आयोजन कोलकाता के थियोसिफकल सोसाइटी सभागार में हुआ। इस मौके पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन भी हुआ।
बताते चलें कि पेरियार की चर्चित पुस्तक ‘सच्ची रामायण’ का बांग्ला अनुवाद ‘सत्य रामायण व अन्यान्य रचनाएं’ काउंटर इरा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसके अनुवादक सुप्रियो बंधोपाध्याय हैं। इस मौके पर अपना विचार रखते हुए सुप्रियो बंधोपाध्याय ने बताया कि पेरियार के विचार आधुनिक भारत में वैज्ञानिकता का संचार करते हैं। इसीसे मुझे इस पुस्तक का अनुवाद करने की प्रेरणा मिली।

इस अवसर पर ‘निर्भीक दृष्टिपात निष्पलक’ पत्रिका के संपादक जगदीश सरदार ने कहा कि पूरे देश में जो ब्राह्मणवादी मानसिकता और कट्टर हिंदुत्व की अवधारणा जिस उन्मादी स्वरूप में सामने आ रही है, वह चिंतनीय विषय है। पाखंडवाद को खारिज किए बगैर समतामूलक समाज की स्थापना संभव नहीं है। उन्होंने यह भी कि उनकी पत्रिका उन्मादवादियोंके विरुद्ध एक सांस्कृतिक प्रतिरोध के लिए प्रतिबद्ध है।
वहीं ‘चेतना लहर’ पत्रिका के संपादकअंनत आचार्य ने पेरियार के आंदोलन को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि पेरियार निरीश्वरवादी दर्शन के प्रति आकर्षित थे। उनके लिए धर्म नहीं, बल्कि मानवता प्रमुख थी। यही कारण है कि पेरियार दलितों को जातिवादी व्यवस्था से मुक्ति मिले, इसके पक्ष में खड़े रहे।

विशिष्ट वक्ता कनिष्क चौधुरी ने कहा कि मौजूदा समय में हम सभी को पेरियार जैसे महान व्यक्तित्व से प्रेरणा मिलती है। पेरियार के विचारों को बढ़ाना हमारा दायित्व है। वहीं युवा दलित साहित्यकार डॉ. कार्तिक चौधरी ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा कि पेरियार सच्चे जननायक थे। उनकी वैज्ञानिक दृष्टि तर्कपरक है, जो हम सभी को प्रेरणा देती है। पेरियार का आत्मसम्मान का आंदोलन ही दलित साहित्य की ऊर्जा है।
आदिवासी लेखिका श्रावणी टुड्डू ने अपने वक्तव्य में कहा कि दलित और आदिवासियों में एकता स्थापित कर दोनों को साथ मिलकर आंदोलन चलाना होगा। कारपोरेट की चाल से आदिवासी तो प्रभावित हैं ही, दलित जीवन भी इससे बचा नहीं है। कार्यक्रम की अध्यक्षता बांग्ला दलित साहित्य की वरिष्ठ लेखिका पुष्प वैराग्य ने की। अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने दलित आंदोलन के महत्व को समझते हुए पेरियार, गुरुचंद, बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के अवदानों को प्रमुख बताया। कार्यक्रम का संचालन शिक्षक सहाबुल इस्लाम गाज़ी ने किया।
(संपादन : नवल/अनिल)
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