h n

कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने शूद्र राजाओं को शक्तिहीन कैसे बनाया?

शूद्रों द्वारा शासित हर राज्य के मुख्य पुजारी और प्रधानमंत्री ब्राह्मण हुआ करते थे। शासनकला पर केन्द्रित पुस्तक अर्थशास्त्र के लेखक कौटिल्य के काल से ही राज्यों पर इस वर्ग का नियंत्रण रहा है, बता रहे हैं कांचा इलैया शेपर्ड

अगर शाहूजी महाराज द्वारा वर्ष 1918 में बंबई प्रेसीडेंसी के पूर्व गवर्नर लार्ड सिडेनहैम को लिखा गया एक पत्र संयोगवश मेरी आंखों के सामने से नहीं गुजरा होता, तो शायद यह लेख लिखने का विचार मेरे मन में नहीं आता। स्वतंत्रता के पहले और उसके बाद भी समाज और राज्य पर ब्राह्मणों और बनियों के वर्चस्व के बारे में जैसे-जैसे मैं लेख आदि लिखता गया, वैसे-वैसे मुझे जान से मार देने की धमकियां मिलने लगीं तथा मुझ पर कई अदालतों में मुकदमें दायर कर दिए गएञ परंतु इसके साथ ही द्विज विद्वानों ने मेरे तर्कों को खारिज करने का प्रयास भी किया। कई ब्राह्मण-बनिया उदारवादी बुद्धिजीवियों का तर्क था कि जब प्राचीन और मध्यकालीन भारत में अनेक शूद्र शासक थे, तब भला पूरी व्यवस्था पर ब्राह्मणों और बनियों का नियंत्रण कैसे हो सकता था। ये बुद्धिजीवी ब्राह्मणों के राज्य पर नियंत्रण होने के जोतीराव फुले और डॉ. आंबेडकर के दावों का भी इन्हीं तर्कों के आधार पर एक लंबे समय से खंडन करते आए हैं। परंतु कोल्हापुर राज्य, जो स्वतंत्रता के समय 1947 तक अस्तित्व में था और जिसके शासक महान राजा छत्रपति शिवाजी के वंशज थे, के शासक शाहूजी महाराज द्वारा लिखा गया लंबा पत्र हमें बताता है कि ब्राह्मणों के आध्यात्मिक और बौद्धिक वर्चस्व के कारण शूद्र शासकों को क्या-क्या भोगना पड़ता था।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने शूद्र राजाओं को शक्तिहीन कैसे बनाया?

लेखक के बारे में

कांचा आइलैय्या शेपर्ड

राजनैतिक सिद्धांतकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता कांचा आइलैया शेपर्ड, हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक और मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के सामाजिक बहिष्कार एवं स्वीकार्य नीतियां अध्ययन केंद्र के निदेशक रहे हैं। वे ‘व्हाई आई एम नॉट ए हिन्दू’, ‘बफैलो नेशनलिज्म’ और ‘पोस्ट-हिन्दू इंडिया’ शीर्षक पुस्तकों के लेखक हैं।

संबंधित आलेख

बहुजनों के वास्तविक गुरु कौन?
अगर भारत में बहुजनों को ज्ञान देने की किसी ने कोशिश की तो वह ग़ैर-ब्राह्मणवादी परंपरा रही है। बुद्ध मत, इस्लाम, अंग्रेजों और ईसाई...
ग्राम्शी और आंबेडकर की फासीवाद विरोधी संघर्ष में भूमिका
डॉ. बी.आर. आंबेडकर एक विरले भारतीय जैविक बुद्धिजीवी थे, जिन्होंने ब्राह्मणवादी वर्चस्व को व्यवस्थित और संरचनात्मक रूप से चुनौती दी। उन्होंने हाशिए के लोगों...
मध्य प्रदेश : विकास से कोसों दूर हैं सागर जिले के तिली गांव के दक्खिन टोले के दलित-आदिवासी
बस्ती की एक झोपड़ी में अनिता रहती हैं। वह आदिवासी समुदाय की हैं। उन्हें कई दिनों से बुखार है। वह कहतीं हैं कि “मेरी...
विस्तार से जानें चंद्रू समिति की अनुशंसाएं, जो पूरे भारत के लिए हैं उपयोगी
गत 18 जून, 2024 को तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित जस्टिस चंद्रू समिति ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को सौंप दी। इस समिति ने...
नालंदा विश्वविद्यालय के नाम पर भगवा गुब्बारा
हालांकि विश्वविद्यालय द्वारा बौद्ध धर्म से संबंधित पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। लेकिल इनकी आड़ में नालंदा विश्वविद्यालय में हिंदू धर्म के पाठ्यक्रमों को...