उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, भाजपा और हिंदू संगठनों का मुस्लिम-फोबिया बाहर आता जा रहा है। इसी बीते 30 अक्टूबर, 2021 को प्रकाशित दैनिक ‘अमर उजाला’ में एक ही पृष्ठ पर दो खबरें साथ-साथ छपीं। एक खबर में पंचदशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी नरसिंहानंद गिरि घोषणा करते हैं कि “दारुल उलूम देवबंद दुनिया को विश्वयुद्ध की विभीषिका में झोंकने की तैयारी कर रहा है। दारुल उलूम देवबंद तालिबान, अलकायदा और आईएसआईएस जैसे जिहादी संगठनों की मातृ संस्था है। यह संस्था संपूर्ण विश्व के विनाश के बीज बो रही है। इसलिए मोदी सरकार को दारुल उलूम को बंद कर देना चाहिए।” (अमर उजाला, मुरादाबाद संस्करण, 30 अक्टूबर, 2021)
दूसरी खबर में गोवर्धन पीठ, पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती कहते हैं, “देश के विभाजन के बाद भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था। देश का अब तक हिंदू राष्ट्र घोषित न हो पाना शासन-तंत्र व राजनीतिक दलों की दिशाहीनता को दर्शाता है। उन्होंने कहा, मैं बहुत सोच-समझकर कह रहा हूँ कि भारत साढ़े तीन साल में हिंदू राष्ट्र बन जायेगा। इसमें आप सबका सहयोग चाहिए।” (अमर उजाला, मुरादाबाद संस्करण, 30 अक्टूबर 2021)
इन दोनों ख़बरों में मुस्लिम-फोबिया सिर चढ़कर बोल रहा है।
पहली खबर पर चर्चा करते हैं, जिसमें नरसिंहानंद गिरी मोदी सरकार को दारुल उलूम को बंद करने को कह रहे हैं। खबर में आगे यह भी है कि नरसिंहानंद गिरि ने मोदी सरकार से दारुल उलूम के साथ-साथ सारे मदरसों को भी बंद करने की मांग की है। इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा है कि “जनसंख्या बढ़ाकर लोकतांत्रिक तरीके से भारत पर कब्जा करके पूरी दुनिया को समाप्त करना ही इनका लक्ष्य है।”
यह सच है कि शिक्षा दारुल उलूम जैसे कुछ संस्थानों और मदरसों में इस्लाम की शिक्षा दी जाती है, किन्तु क्या संस्कार भारती और सरस्वती शिशु मंदिरों में हिंदुत्व नहीं पढ़ाया जाता है?
नरसिंहानंद गिरी जैसे बेअक्ल भगवाधारियों से कोई यह पूछे कि जब पूरी दुनिया को समाप्त करना ही मुसलमानों का लक्ष्य है, तो वे राज्य किस पर करेंगे? अगर वे जनसंख्या बढ़ाकर वोट के बल पर भारत पर कब्जा कर लेंगे, तो हिंदुओं को जनसंख्या बढ़ाने से किसने रोका है? इन नरसिंहानंद गिरी से ही पूछा जाए कि तुमने क्यों बच्चे पैदा नहीं किए? तुम क्यों सन्यासी बन गए? क्यों तुम्हारे धर्मशास्त्र ब्रह्मचर्य की शिक्षा देते हैं? असल में नरसिंहानंद गिरी जैसे भगवाधारी जिस आरएसएस के हिंदुत्व से जुड़े हुए हैं, वह मुस्लिम-फोबिया से पैदा हुआ है। इतिहास में मुस्लिम-फोबिया के गर्भ से सबसे पहले आर्यसमाज का शुद्धि आंदोलन निकला था, जो मुसलमानों के खिलाफ धर्मांतरण को निशाना बनाकर चला था। इसके नेता हिंदुओं की शुद्धि छोड़कर मुस्लिम बनने वाले दलितों की शुद्धि कराते थे। आज धर्मांतरण की वैसी कोई लहर नहीं चल रही है, जैसी चालीस और पचास के दशकों में चल रही थी। परंतु आरएसएस अभी भी घर-वापसी के रूप में शुद्धि आंदोलन को जिंदा रखे हुए है। आरंभ में मुस्लिम-फोबिया से पीड़ित आरएसएस के हिंदू सगठनों ने धर्मांतरण के बहाने ईसाई बस्तियों और चर्चों में आग लगाई, तथा पादरियों को जिंदा जलाने का काम किया, जिसका मकसद दलितों को भी आतंकित करना था कि वे ईसाई या मुसलमान बनने का दुस्साहस न करें। आज आरएसएस जनसंख्या को निशाना बना रहा है। उसके सारे नेता, साधु-सन्यासी और साध्वियां मुसलमानों की जनसंख्या को बहाना बनाकर उनके खिलाफ जहर उगल रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों को पंचायत राज में भागीदारी नहीं मिलेगी, कोई बोल रहा है कि उसे सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी और कोई इससे भी बढ़कर कह रहा है कि अगर दो से ज्यादा बच्चे हैं, तो कोई भी सुविधा नहीं दी जायेगी। यह सब मुस्लिम-फोबिया है।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद की देवबंद तहसील में स्थित दारुल उलूम 1866 में कायम हुआ था, जो आरएसएस और हिंदू महासभा के गठन से भी पुराना संस्थान है। वर्तमान में यह सत्तर एकड़ जमीन पर स्थित है और लगभग पांच हजार छात्र इसमें पढ़ते हैं। अवश्य ही यह इस्लामिक विश्वविद्यालय है, जिसमें भारत के साथ-साथ दूसरे देशों के छात्र भी इस्लाम की तालीम लेने आते हैं। लेकिन सवाल यह है कि नरसिंहानंद गिरि के पास ऐसा कौन सा प्रमाण है, जो भारत सरकार के पास भी नहीं है, जिसके आधार पर वह कह रहे हैं कि दारुल उलूम देवबंद में मुस्लिम-आतंकवादी तैयार किए जाते हैं। अगर ऐसा है, तो हिंदू आतंकवादी कहां तैयार किए जाते हैं, जो सरे आम दलितों की मॉब लिंचिंग करते हैं और जिन्होंने गुजरात में दो हजार निर्दोष मुसलमानों की हत्याएं कीं? मिशनरी ग्राहम स्टेंस को जिंदा जलाने वाले दारा सिंह को किस संस्थान ने आतंकवादी बनाया? मालेगाँव बम ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को किसने बनाया? अगर धर्मांधता आतंकवादी बनाती है, तो यह काम तो हिंदू धर्मगुरु भी बहुत अच्छे से कर रहे हैं। सवाल है कि क्या मोदी सरकार नरसिंहानंद गिरि के कहने मात्र से दारुल उलूम देवबंद को बंद कर सकती है? संविधान की कोई हैसियत नहीं है? क्या देश नरसिंहानंद गिरि जैसे धर्मगुरुओं से चलेगा? जो वे बोलेंगे, वही सरकार करेगी? नरसिंहानंद गिरि जैसे लोग भी यह अच्छी तरह जानते हैं कि सरकार संविधान से चलती है। और भारत का संविधान हिंदू राज्य को नहीं, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को स्वीकार करता है, इसलिए संविधान के अनुच्छेद 29 के तहत दारुल उलूम देवबंद भी बना रहेगा और मुस्लिम मदरसे भी कायम रहेंगे। हां, इस बहाने नरसिंहानंद गिरि जैसे भगवाधारियों को चुनावों में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए मुसलमानों के खिलाफ नफ़रत और उन्माद फैलाने की छूट जरूर मिली हुई है।
यह सच है कि शिक्षा दारुल उलूम जैसे कुछ संस्थानों और मदरसों में इस्लाम की शिक्षा दी जाती है, किन्तु क्या संस्कार भारती और सरस्वती शिशु मंदिरों में हिंदुत्व नहीं पढ़ाया जाता है? हालांकि इस्लाम की शिक्षा, हिंदूधर्म के नाम पर दी जा रही ब्राह्मणवादी शिक्षा के मुकाबले ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर भी नहीं है, जो आरएसएस की हजारों संस्थाओं के द्वारा देशभर में दी जा रही है। अगर इसमें आस्था चैनल के भक्ति-उपदेश, रामायण, महाभारत, हनुमान आदि पर चल रहे कार्यक्रम और कस्बों-शहरों में हजारों की संख्या में साधु-संतों के प्रवचन भी जोड़ लिए जाएँ, तो मुस्लिम उपक्रम तो इसके आगे कहीं भी नहीं ठहरते। लेकिन नरसिंहानंद गिरि को आरएसएस की संस्थाओं की शिक्षा में दोष दिखाई नहीं देता, जो न सिर्फ हिंदुओं को इतिहास का गलत पाठ पढ़ा रही है, बल्कि उन्हें मुस्लिम-विरोधी भी बना रही है। इसका हिंसक उदाहरण अभी कुछ दिन पहले ही त्रिपुरा में दिखाई दिया, जहां आरएसएस के प्रशिक्षित उन्मादियों ने मुसलमानों और मस्जिदों पर जानलेवा हमले किए हैं। नरसिंहानंद गिरि कहते हैं कि दारुल उलूम के खिलाफ सारे हिंदू समाज को एकजुट होकर विरोध करना चाहिए। कौन से हिंदू? तुम्हारे यहाँ हिंदू है कौन? यही नरसिंहानंद गिरि ने 2014 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा मंदिर में जाने पर फतवा दिया था कि शूद्रों का मंदिर में प्रवेश शास्त्र-सम्मत नहीं है, उन्हें हिंदुओं के मंदिरों में नहीं जाना चाहिए। इसका मतलब है कि ब्राह्मणों, ठाकुरों और वैश्यों को छोड़कर बाकी हिंदू हिंदू नहीं हैं, शूद्र हैं। तब ये नरसिंहानंद गिरि दारुल उलूम के खिलाफ किन हिंदुओं को एकजुट करने की बात कह रहे हैं? मुसलमानों के खिलाफ लड़वाने में वे हिंदू हैं, लेकिन मंदिर में प्रवेश के समय वे शूद्र हैं, अपात्र हैं। ऐसे धर्म और ऐसे धर्मगुरुओं के उपर क्या संविधान सम्मत कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?
हिंदू राष्ट्र का भगवा राग
अब दूसरी खबर पर आते हैं, जिसमें गोवर्धन पीठ पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने गोरखपुर में अपनी पत्रकार-वार्ता में कहा है कि “भारत साढ़े तीन साल में हिंदू राष्ट्र बन जायेगा। इसमें आप सबका सहयोग चाहिए।” एक बड़ा सवाल यह है कि ये भगवा सन्यासी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना क्यों चाहते हैं? गोरखपुर में किसी भी पत्रकार ने यह सवाल उनसे क्यों नहीं पूछा कि वे लोकतांत्रिक भारत के स्थान पर हिंदू राष्ट्र क्यों चाहते हैं? उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए था कि एक लोकतांत्रिक भारत और एक हिंदू राष्ट्र में अंतर क्या है? अगर यह सवाल पूछे गए होते, तो इस मुद्दे पर उनके दिलचस्प विचार सुनने को मिलते, और देश में एक सार्थक बहस की शुरुआत होती। लेकिन मुझे पक्का यकीन है कि ऐसे सवालों पर निश्चलानंद जैसे लोग बड़ी निर्लज्जता से देश में हिंदुओं के अपमान की झूठी कहानियां सुनाते। लेकिन अगर उनसे यह पूछा जाए कि क्या भारतीय लोकतंत्र में हिंदुओं का विकास रुका हुआ है? क्या हिंदू तीर्थों, मठों, मंदिरों और धर्मगुरुओं पर खतरा मंडरा रहा है? क्या देश का शासन-प्रशासन गैर-हिंदुओं के हाथों में जा रहा है? क्या देश के सारे संसाधनों पर गैर-हिंदुओं का कब्जा हो गया है? तो वे किसी भी सवाल का उत्तर ‘हाँ’ में नहीं दे सकेंगे। तब निश्चलानंद जैसे भगवाधारियों की मुख्य चिंता क्या है? यह मुख्य चिंता वे कभी नहीं बताएंगे। क्योंकि अगर बता देंगे, तो उनके असली चेहरे सामने आ जायेंगे।
क्या वाकई भारत साढ़े तीन साल में हिंदू राष्ट्र बन जायेगा, जैसा कि निश्चलानंद कहते हैं? इसका सीधा गणित है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के साढ़े तीन साल बचे हैं। 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं।
यह असली चेहरा है वर्णव्यवस्था का। चूँकि लोकतंत्र में वर्णव्यवस्था का राज नहीं चल सकता, वे शूद्रों को सेवक बनाकर नहीं रख सकते, दलित जातियों को अछूत बनाकर उनके साथ अस्पृश्यता कायम नहीं कर सकते, क्योंकि लोकतंत्र में अस्पृश्यता दंडनीय अपराध है, इसलिए उन्हें लोकतंत्रिक भारत पसंद नहीं है। उनका हिंदू सिर्फ ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य है, शेष को वे हिंदू नहीं मानते, बल्कि सेवक श्रेणी का मानते हैं। वे हिंदू राष्ट्र इसलिए चाहते हैं, ताकि वर्णव्यवस्था का राज्य कायम हो सके, जो मूलत: ब्राह्मण-राज्य होगा, जिसमें शूद्रों को दबाकर रखा जा सके, जिस तरह वे आज मुसलमानों और ईसाईयों को दबाकर रखे हुए हैं। यही कारण है कि आरएसएस के सभी संगठन और संत-महात्मा, नेता समय-समय पर आरक्षण को खत्म करने की बात करते रहते हैं, जो शूद्रों के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। आरएसएस के मुस्लिम-फोबिया का मूल रहस्य भी यही है। वास्तव में मुसलमान उनकी मुख्य समस्या नहीं हैं, बल्कि उनकी मुख्य समस्या दलित-पिछड़ा वर्ग है, जिसे वे वर्णव्यवस्था के दायरे के बाहर फलता-फूलता देखना नहीं चाहते। सिर्फ इसी वजह से वे हिंदू राष्ट्र का राग अलापते रहते हैं।
क्या वाकई भारत साढ़े तीन साल में हिंदू राष्ट्र बन जायेगा, जैसा कि निश्चलानंद कहते हैं? इसका सीधा गणित है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के साढ़े तीन साल बचे हैं। 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। इसीलिए निश्चलानंद कहते हैं कि “आप सबका सहयोग चाहिए कि साढ़े तीन साल बाद फिर से मोदी सरकार आ जाए, और हिंदू राष्ट्र बन जाए।” उनके दिमाग में यह बात नहीं आ रही है कि भारत के जिस धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत लोकसभा के चुनाव होंगे, उसी संविधान की शपथ खाकर बनने वाला प्रधानमंत्री लोकतंत्र का प्रधानमंत्री होगा, न कि हिंदू राष्ट्र का।
(संपादन : नवल/अनिल)
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