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भागवत कथा वाचन के मामले में तेली जाति की महिला को मिली धमकियां, मामला दर्ज

छत्तीसगढ़ में यह एक नया मामला सामने आया है। पिछले दस साल से भागवत कथा का प्रवचन करने वाली तेली समाज की यामिनी देवी को ब्राह्मणों ने धमकियां दी है। इसके बारे में बता रहे हैं संजीव खुदशाह

अब तक दलितों और आदिवासियों पर ही सवर्ण जातियों के लोग हमले करते रहे हैं। यदि दलित घोड़ी पर चढ़े तो हमला, मुंछें रखले तो हमला। आदिवासी ब्राह्मण पुरोहित से पूजा न कराये तो हमला। लेकिन शूद्र यानी ओबीसी इस तरह के हमले बचा हुआ था। यह मामला छत्तीसगढ़ में एक तेली जाति की महिला से जुड़ा है, जो पिछले दस साल से प्रचवन करती रही है। उसके उपर ब्राह्मण वर्ग ने इस कारण से हमला किया है क्योंकि उसने भागवत कथा वाचन करने का निर्णय लिया। हालांकि यह सवाल भी है कि आखिर दलित-बहुजन इस तरह के ब्राह्मणवादी आडंबरों का पालन करते ही क्यों हैं? 

दरअसल, कोरोना काल मे सिरगिडी (महासमुंद) का साहू परिवार भागवत प्रवचन कराना चाहते थे। लॉकडाउन हो जाने से अनुमति नहीं मिली। तब कथावाचक पुरोहित से आग्रह करके स्थगित कर दिया गया। बाद में आयोजक ने 20 से 27 मार्च 2022 को भागवत कथा वाचन का अनुरोध किया। इस बीच संबंधित पुरोहित ने इस तिथि में व्यस्त होने की बात कहकर कथा वाचन से इंकार कर दिया। तब आयोजक परिवार ने गायत्री परिवार से जुड़ी और बीते दस साल से प्रवचन कर रही यामिनी देवी से संपर्क कर कार्यक्रम तय किया। कथा वाचन को परंपरागत एकाधिकार मानने वाले ब्राह्मण समाज के कुछ लोगों ने पुरोहित के भड़कावे में आकर यामिनी देवी को चेतावनी देते हुए प्रवचन नहीं करने की धमकियां दी। छत्तीसगढ़ परशुराम सेना ने भी इसका विरोध किया। इसके बाद यामिनी देवी ने 17 मार्च को खल्लारी थाना में रिपोर्ट दर्ज कराई है। उन्होंने नौ अलग-अलग मोबाइल नंबर भी दिए हैं, जिनसे उन्हें धमकियां दी गई है। पुलिस के मुताबिक वह मामले की छानबीन में लगी है। 

इस संबंध में सोशल मीडिया पर तमाम तरह की बहसें चल रही हैं। ब्राह्मणवर्ग के लोगों का कहना है कि यामिनी साहू एक महिला होने के साथ-साथ शूद्र यानि गैर ब्राह्मण भी है।

गौर तलब है कि आज भारत में ब्राह्मण वर्ग की अनेक महिलाएं हैं, जो प्रवचन करती हैं और ब्राह्मण वर्ग उनका विरोध नहीं करता। 

शिकायतकर्ता तेली समाज की महिला यामिनी देवी की तस्वीर

ऐसे में मामला केवल जाति से जुड़ा है। सामान्य मामलों में सनातन धर्म संस्‍कृति व व्‍यास ऐसे लोगों के कथावाचक अधिकार स्‍वीकार नहीं करता है। सनातन धर्म संस्‍कृति में श्रेष्‍ठ कुल के वैदिक ब्राम्‍हण ही भागवत कथा या अन्‍य पूजा पाठ करवा सकता है। इस प्रकार ब्राह्मण के अलावा यदि कोई शूद्र या गैरब्राह्मण कथा प्रवचन या कोई भी कार्य करते है तो वे अपनी अज्ञानता से धर्म-संस्‍कृति को अपमानित करते हैं।

वैसे तो ओबीसी हिन्‍दू वर्ण व्‍यवस्‍था में शूद्र वर्ण में आते है। लेकिन कतिपय ओबीसी जातियां अपने आपकों ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्‍य होने का दावा करती रही हैं। इनके इस दावे का खंडन भी उच्‍च वर्ण समय-समय पर करता रहा है।

गौतम धर्म सूत्र (12/6) के अनुसार शूद्र को वेद आदि भागवत रामायण कथा का श्रवण नहीं करना चाहिए। यदि वह ऐसा करता है तो उसके कानों में पिघला हुआ शीशा डालने का प्रावधान है। यदि वह वाचन करता है जो उसके जीभ काटने का प्रावधान है। कंठस्थ करता है तो मार डालने का प्रावधान है।

लेकिन शूद्र यानि आज का ओबीसी इन आयोजनों का सबसे बड़ा श्रोता है। इनसे ब्राह्मणों के धर्म का अपमान नहीं होता है, क्‍योकि इनसे भारी मात्रा में चंदा के रूप में आय की प्राप्ति होती है। लेकिन यदि कोई ओबीसी भागवत कथा का प्रवचन करले तो धर्म का अपमान हो जाता है, क्‍योकि इससे उनका व्‍यवसाय छिन जाने का डर सताता है।

काश देश का ओबीसी समाज जागृत होता और इन कुचक्रो से अपने आप को निकालता। भागवत कथा के बजाय उन अधिकारों के लिए लड़ाई करता, जहां पर उसकी जरूरत है। प्रतिनिधित्व नगण्य है। बावजूद इसके यह घटना ओबीसी या शुद्र समाज की आंखें खोलने के लिए काफी है।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

संजीव खुदशाह

संजीव खुदशाह दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं। इनकी रचनाओं में "सफाई कामगार समुदाय", "आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग" एवं "दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल" चर्चित हैं

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