h n

गोरखपुर : मठ और हाता से बाहर निकल रही सियासत

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास अलहदा रहा है। सामंती वर्चस्व के प्रतीक बन चुके मठ और सामंतों के हातों, जिसे हम चाहें तो किला भी कह सकते हैं, में यहां की सियासत तय होती रही है। लेकिन अब यह बदल रही है। सुशील मानव बता रहे हैं नाथ पंथ के प्रसिद्ध स्थान गोरखपुर का राजनीतिक व सामाजिक परिदृश्य

छठवें चरण में प्रवेश करने के साथ ही उत्तर प्रदेश चुनाव अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। दस मार्च को मतों की गणना होगी और यह तय हो जाएगा कि अगले पांच वर्ष तक किसकी सरकार बनेगी। लेकिन इसके पहले जिन क्षेत्रों पर सबकी निगाहें टिकी हैं, उनमें बनारस और गोरखपुर अहम हैं। बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रतिष्ठा दांव पर लगी तो गोरखपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए जीत नाक का सवाल है। पिछले तीन दशकों से गोरखपुर में सत्ता के दो केंद्र रहे हैं– मठ (योगी आदित्यनाथ के एकाधिकार वाला गोरखनाथ मठ और ठाकुर वर्चस्व) और हाता (बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी का आवास ब्राह्मण सत्ता का केंद्र)। 

लेकिन अब गोरखपुर की सियासत मठ और हाते से बाहर निकल रही है और इसका श्रेय जाता है निषाद पार्टी को, जिसने 2017 के उपचुनाव में योगी भाजपा के प्रत्याशी को शिकस्त दी थी। वहीं इस बार गोरखपुर सदर सीट से योगी के सामने चुनौती पेश करते चंद्रशेखर आज़ाद का चुनावी मैदान में ताल ठोकना भी एक नई परिघटना के समान है। 

बता दें कि गोरखपुर ज़िले में कुल 9 विधानसभा सीटें हैं– गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा, पिपराइच, कैम्पियरगंज, चौरी चौरा, चिल्लूपार, बांसगांव और खजनी। इनमें बांसगांव और खजनी  अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें हैं।

निषाद व दलित बनाम ब्राह्मण-ठाकुर

गोरखपुर जिले की ज्यादातर सीटों पर निषाद, मल्लाह व साहनी और दलित जातियों का अच्छा प्रभाव है। साल 2016 में मछुआरा समुदाय कि 17 उपजातियों निषाद, कहार, कश्यप, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड, कुम्हार, प्रजापति, धुरिया, धीवर, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया और मछुआ के सशक्तिकरण के उद्देश लेकर निषाद (अंग्रेजी में एनआईएसएचएड यानी निर्बल इंडियन शोषित हमारा अपना दल) पार्टी का गठन किया गया था। अपने गठन के ठीक 2 साल बाद ही निषाद पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद के 29 वर्षीय बेटे प्रवीण निषाद ने साल 2018 में गोरखपुर संसदीय उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ला को हराकर योगी के किले की दीवार को दरका दिया था।  

बाएं से – योगी आदित्यनाथ, संजय निषाद, हरिशंकर तिवारी और अखिलेश यादव

इसके बाद तो भाजपा ने उन्हें अपना पाले में ही खींच लिया। इस चुनाव में भाजपा ने निषाद पार्टी के साथ गठबंधन किया है और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद को उत्तर प्रदेश विधान परिषद में विधायक बना दिया है और उनके बेटे प्रवीण निषाद भाजपा के टिकट पर सांसद हैं। सब कुछ अपने परिवार के लिए ही करने की वजह से निषाद बिरादरी में संजय के प्रति नाराजगी भी है। 

वहीं दूसरी ओर सपा के पास पूर्व मंत्री जमुना निषाद का परिवार व राम भुआल निषाद जैसे कद्दावर चेहरे हैं। ऐसे में कई सीटों पर 20 से 60 हजार वोट की हिस्सेदारी रखने वाले निषाद समाज का रुख विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा। गोरखपुर की पांच सीटों गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा, पिपराइच, कैम्पियरगंज, चौरी चौरा में निषाद समुदाय की अच्छी-ख़ासी संख्या है। चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र में भी निषाद मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी को गोरखपुर जिले में सिर्फ़ एक सीट मिली है– चौरी चौरा। इस सीट पर निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय कुमार निषाद के बेटे श्रवण निषाद चुनाव लड़ रहे हैं। गोरखपुर शहर सीट से खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ रहे है। और उनके सामने चंद्रशेखर आज़ाद मैदान में खड़े हैं।

निषाद समुदाय से ताल्लुक़ रखने वाले शोधार्थी राजू साहनी बताते हैं कि “भाजपा ने गठबंधन के तहत 15 सीटें निषाद पार्टी को दिया है। लेकिन निषाद पार्टी अध्यक्ष अपने बेटे सरवन निषाद समेत सभी सीटों पर परिवारवाद को बढ़ावा देते हुये अपने लोगों को टिकट दिया है। उनके लिये समाज से ज़्यादा निजी मांगे मायने रखती हैं। यह बात निषाद समुदाय के लोग भलीभांति समझ रहे हैं। नाव से बालू खनन पर प्रतिबंध लगाने से कई मल्लाहों की रोटी-रोजी छिन गई है। इससे भी केवट समुदाय के लोग सरकार के प्रति नाराज़ हैं।”

राजू साहनी आगे बताते हैं कि “राज्य सरकार ने नौका विहार टूरिज्म को आगे बढ़ाने के लिए कुछ योजनाओं को मंजूरी दी। इसके लिए मल्लाहों को प्रमुखता भी दी गयी। लेकिन हक़ीक़त में इसकी ठेकेदारी बड़े माफियाओं को मिली है। इस तरह यहां पर बहुत बड़ा घोटाला हुआ है और बाहर के लोगों को दुकान खोलने की अनुमति मिली है। पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने से पहले जो लोग वहां दुकान लगाते थे, उन्हें वंचित कर दिया गया है। योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। इसलिए जनता अब परिवर्तन चाह रही है। साथ ही, चंद्रशेखर आज़ाद के चुनाव लड़ने से अभी प्रभाव जो पड़ेगा, वो तो पड़ेगा ही। इसके अलावा इसका दीर्घकालिक प्रभाव भी पड़ेगा। चंद्रशेखर आज़ाद युवा हैं और वो दलित और पिछड़े वर्ग के अधिकारों की बात कर रहे हैं।”

अंबेडकरवादी चेतना का उभार होगा

चंद्रशेखर आज़ाद का योगी के खिलाफ़ गोरखपुर सदर विधानसभा से चुनावी ताल ठोकने का क्या प्रभाव पड़ेगा। इस सवाल के जवाब में दलित समुदाय के दीपक कुमार कहते हैं कि चंद्रशेखर आज़ाद युवा हैं। वो पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के लिये काम कर रहे हैं। उनका मैदान में योगी के ख़िलाफ़ उतरना ही बड़ी बात है। ये तमाम दलित युवाओं और आमजनों को हिंदुत्ववादी वर्चस्व के ख़िलाफ़ लड़ने के लिये प्रेरित करेगा। उनका योगी के ख़िलाफ़ चुनावी ताल ठोकना वर्तमान में भले ही प्रभावकारी न लगे पर आने वाले समय में इसका राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव देखने को मिलेगा।

अब गोरखपुर सदर विधानसभा क्षेत्र पर एक नजर 

गोरखपुर सदर सीट पर करीब साढ़े चार लाख लाख मतदाता हैं, जिनमे सबसे अधिक कायस्थ मतदाताओं की संख्या करीब 95 हजार है। इसके बाद ब्राह्मण मतदाता 55 हजार, मुस्लिम मतदाता 50 हजार, निषाद मतदाता 35 हजार, क्षत्रिय मतदाता 25 हजार, वैश्य 45 हजार, यादव 25 हजार, कुर्मी मतदाता 28 हज़ार, एससी-एसटी मतदाता 48 हजार हैं। इसके अलावा पंजाबी, सिंधी, बंगाली और सैनी कुल मिलाकर क़रीब 30 हजार मतदाता हैं। कायस्थ, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य मतदाताओं का काम्बिनेशन योगी आदित्यनाथ को इस सीट पर अजेय बनाता है। गोरखपुर मठ और मंदिर इसी क्षेत्र में पड़ते हैं और यहां योगी आदित्यनाथ का वर्चस्व है। लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद इस सीट पर उन्हें चुनौती दे रहे हैं। उनके यहां से खड़े होने से गोरखपुर क्षेत्र जिसे योगी आदित्यनाथ हिंदुत्ववाद का गढ़ बना दिया उसके बरअक्स दलित चेतना का उभार हो रहा है।  

चुनावी इतिहास की बात करें तो भाजपा के राधा मोहन दास अग्रवाल 2002 से यहां के विधायक हैं। वो पहला चुनाव हिंदू महासभा से जीते थे। 2017 में उन्होंने कांग्रेस के राणा राहुल सिंह को 3 लाख 1664 मतों के अंतर से हराया था। 2022 के लिये भाजपा ने योगी आदित्यनाथ, सपा ने सभावती शुक्ला, बसपा ने ख्वाजा शमसुद्दीन, कांग्रेस ने चेतना पांडेय को मैदान में उतारा है। जबकि आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद भी यहां से मैदान में हैं।

गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा

करीब 4 लाख मतदाताओं वाली गोरखपुर ग्रामीण सीट पर 80 हजार निषाद मतदाता हैं। लगभग इतने ही दलित मतदाता भी हैं। मुस्लिम मतदाता 40 हजार, ब्राह्मण मतदाता 30 हजार, वैश्य मतदाता 40, कुर्मी मतदाता 40 हजार, यादव 25 हजार, क्षत्रिय  व मौर्य मतदाता 15 -15 हजार हैं और अन्य समुदायों के मतदाताओं की संख्या करीब 35 हजार है। 

वर्ष 2017 में भाजपा के विपिन सिंह (83,686 मत) ने सपा के विजय बहादुर सिंह (79,271 मत) को 4410 मतों के अंतर से हराया था। 2022 विधानसभा चुनाव के लिये भाजपा ने मौजूदा विधायक व अंबिका सिंह के बेटे बिपिन सिंह रावत को टिकट दिया है। सपा ने इस बार फिर विजय बहादुर सिंह को टिकट दिया है। बताते चलें कि 2012 के चुनाव में भाजपा से विजय बहादुर यादव चुनाव जीते थे, और बाद में वह सपा में चले गए। बसपा ने दारा सिंह निषाद और कांग्रेस ने देवेन्द्र निषाद को प्रत्याशी बनाया है। निषाद और दलित मतदाताओं का गणित बसपा के लिए माकूल है। 

चौरी-चौरा विधानसभा 

किसान विद्रोह के लिए ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध चौरी-चौरा में करीब 3 लाख 40 हजार मतदाता है। यहां अधिक दलित मतदाता 50 हजार हैं। ब्राह्मण व वैश्य 30-30 हजार, कायस्थ 25 हजार, निषाद 35 हजार, क्षत्रिय 25 हजार, यादव 35 हजार,  कुर्मी 40 हजार और मुस्लिम मतदाता 30 हजार हैं। वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा की संगीता यादव ने सपा  के मनोरंजन यादव को 45,660 मतों के अंतर से हराकर जीत दर्ज़ की थी। जबकि निवर्तमान बसपा विधायक जयप्रकाश निषाद 37,478 वोट ही पा सके थे। इस बार कांग्रेस ने जितेंद्र पांडेय, और बसपा ने जय प्रकाश निषाद को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने चौरी-चौरा के जुझारू नेता व पूर्व ब्लाक प्रमुख स्वर्गीय हरिलाल पासी के बेटे कैप्टन बृजेश चन्द्र लाल को टिकट दिया है। जातिगत आंकड़े को ध्यान में रखकर देखें तो यहां सबसे अधिक निषाद मतदाताओं की संख्या है। उसके बाद यादव और फिर, पासवान मतदाताओं की संख्या है। ऐसे में यादव व पासवान का जाति समीकरण में ध्यान में रखते हुए सपा ने यहां से दांव लगाया है। वहीं दूसरी ओर भाजपा ने संगीता यादव की जगह निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद के बेटे सरवन निषाद को उम्मीदवार बनाया है। जबकि सरवन निषाद ने गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा से दावेदारी की थी, क्योंकि गोरखपुर ग्रामीण सीट निषाद बहुल मानी जाती है। निषाद मतदाताओं के नाराज होने पर चुनाव के रिजल्ट पर भी बुरा असर पड़ सकता है।

कैम्पियरगंज विधानसभा में सबकी निगाहें अभिनेत्री काजल निषाद पर

तकरीबन 4 लाख मतदाताओं वाली इस सीट का जातीय समीकरण पर नज़र डालें तो निषाद मतदाता क़रीब 45 हजार, एससी-एसटी 44 हजार, कायस्थ 40 हजार, ब्राह्मण 38 हजार, क्षत्रिय व यादव 35-35 हजार, वैश्य व कुर्मी 25-25 हजार और मुस्लिम 35 हजार हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के बेटे फतेह बहादुर सिंह 1991 से लगातार विधायक हैं। वे बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। 2017 में भाजपा से फतेह बहादुर सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी को हराया था। 2022 चुनाव के लिये बीजेपी ने फिर से फतेह बहादुर सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। बसपा ने चंद्र प्रकाश निषाद, कांग्रेस ने सुरेंद्र निषाद और सपा ने भोजपुरी अभिनेत्री काजल निषाद को उम्मीदवार बनाया है। यादव, मुस्लिम और निषाद का समीकरण सपा प्रत्याशी को इस सीट पर मजबूत बनाती हैं। हालांकि उन्हें ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और (अनुप्रिया पटेल के कारण) कुर्मी जाति लोगों की चुनावी गणित का सामना करना पड़ सकता है, जो कि उनके विपक्ष में जा सकता है। 

पिपराइच विधानसभा में निषाद महत्वपूर्ण

पिपराइच विधानसभा में लगभग 3 लाख 90 हजार मतदाता हैं। विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण के आधार पर निषाद बहुल क्षेत्र है। यहां करीब 90 हजार निषाद मतदाता हैं। कुर्मी क़रीब 45 हजार, वैश्य 40 हजार, सैंथवार 35 हजार, ब्राह्मण 32 हजार, यादव 30 हजार, क्षत्रिय 20 हजार, एससी-एसटी 48 हजार और मुस्लिम मतदाता 35 हजार हैं। वर्ष 2017 में भाजपा के महेंद्र पाल सिंह ने बसपा प्रत्याशी आफ़ताब आलम को 12,809 मतों के अंतर से हराया था। इस बार भाजपा ने फिर से महेंद्र पाल सिंह को, सपा ने अमरेंद्र निषाद को, कांग्रेस ने मोनिका पांडेय और बसपा ने दीपक अग्रवाल को टिकट दिया है। दीपक अग्रवाल सपा से टिकट न मिलने के बाद बसपा में आये हैं। निषाद, यादव मुस्लिम गणित के कारण सपा प्रत्याशी को इस चुनाव में बढ़त मिलती दिख रही है।

चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मणों के बीच दंगल

इसी प्रकार करीब 4 लाख 32 हजार मतदाताओं वाली यह सीट ब्राह्मण बहुल होने के साथ ही बाहुबली हरिशंकर तिवारी के प्रभाव के लिये भी जानी जाती है। इस सीट का जातिगत समीकरण है– ब्राह्मण करीब 1 लाख 5 हजार, एससी-एसटी 80 हजार, यादव 40 हजार, मुस्लिम 30 हजार, निषाद 25 हजार, मौर्या 20 हजार, वैश्य 25 हजार, क्षत्रिय 20 हजार, भूमिहार 20 हजार और सैंथवार 22 हजार।

पिछली बार यानी 2017 के चुनाव में हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी (78177 मत) ने बसपा प्रत्याशी के तौर पर भाजपा के राजेश त्रिपाठी ( 74818 मत) को 3359 मतों से हराया था। इस बार प्रमुख पार्टियों से चार ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में हैं। कांग्रेस ने सोनिया शुक्ला, बसपा ने विजयानंद तिवारी, भाजपा ने राजेश त्रिपाठी, सपा ने विनय शंकर तिवारी को टिकट दिया है। बाहुबली हरिशकंर तिवारी के बेटे विनय तिवारी बसपा छोड़कर सपा में आये हैं। यहां मुख्य मुक़ाबला सपा और बसपा प्रत्याशी के बीच है। यादव, मुस्लिम, ब्राह्मण का चुनावी गणित तथा हरिशंकर तिवारी का अपना प्रभाव भी सपा के लिए अनुकूल है। 

सहजनवां विधानसभा में हरिशंकर तिवारी का प्रभाव

करीब 3 लाख 60 हजार मतदाताओं वाली इस सीट के जातिगत समीकरण की बात करें तो यह भी ब्राह्मण बहुल सीट है और हरिशंकर तिवारी का इस सीट पर भी प्रभाव है। यहां करीब 1 लाख 20 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। इसके बाद यादव मतदाता 80 हजार, एससी 60 हजार, सैंथवार-निषाद 40-40 हजार, मुसलमान मतदाता 11 हजार हैं।

पिछली बार 2017 में भाजपा के शीतल प्रसाद पांडेय (72,213 मत) ने सपा उम्मीदवार यशपाल रावत (56,836 मत) को 15377 मतों से हराया था। बसपा के देव नारायण सिंह (54143 मत) तीसरे स्थान पर रहे थे। वहीं इस बार भाजपा ने प्रदीप शुक्ला, सपा ने यशपाल रावत, कांग्रेस ने मनोज यादव और बसपा ने सुधीर सिंह को टिकट दिया है। सुधीर सिंह की पत्नी अंजू सिंह भी इस सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं। ब्राह्मण-वैश्य का चुनावी गणित भाजपा के ब्राह्मण प्रत्याशी के पक्ष में है। हालांकि यादव, पासी और मुस्लिम राजनीतिक समीकरण के कारण सपा के हौसले बुलंद हैं।

खजनी (सुरक्षित) विधानसभा 

करीब 3 लाख 80 हजार मतदाताओं वाली इस सीट पर ब्राह्मण मतदाता 40 हजार, वैश्य 35 हजार, मौर्य-कुर्मी 58 हजार, निषाद 40 हजार, क्षत्रिय 20 हजार, यादव 40 हजार, एससी-एसटी 85 हजार और मुस्लिम मतदाता 30 हजार हैं। पिछली बार 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी संत कुमार (71,492 मत) ने बसपा प्रत्याशी राजकुमार (51,413 मत) को 20 मतों के अंतर से हराया था। इस बार भाजपा ने राम चौहान, सपा ने रुपवती बेलदार, बसपा ने विद्यासागर और कांग्रेस ने रजनी देवी को उम्मीदवार बनाया है। यहां मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा के बीच है। 2017 चुनाव में 3,64,495 मतदाता रजिस्टर थे, लेकिन सिर्फ़ 1,87,798 मतदाताओं ने ही मतदान किया था।

बांसगांव (सुरक्षित)

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित बांसगांव सीट में कुल 3 लाख 70 हजार 785 मतदाता हैं। इनमें वैसे तो ब्राह्मण करीब 30 हजार, कुर्मी व क्षत्रिय 35-35 हजार ,कायस्थ, यादव व निषाद 25-25 हजार, एससी-एसटी 61 हजार और मुस्लिम 30 हजार है। लेकिन कम मतदान यहां भी इतिहास रहा है। पिछली बार विधानसभा चुनाव में केवल 1,78,818 मतदाताओं ने ही भाग लिया था। परिणाम की बात करें तो भाजपा के विमलेश पासवान (71966 मत) ने बसपा के विजय कुमार (49,003 मत) को 22 हज़ार मतों से हराया था। जबकि सपा कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी शारदा देवी (44,051 मत) तीसरे स्थान पर थीं। इस बार कांग्रेस ने पूनम आज़ाद, भाजपा ने विमलेश पासवान, सपा ने संजय कुमार और बसपा ने रामनयन आज़ाद को उम्मदीवार बनाया है। 

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

संबंधित आलेख

उत्तर प्रदेश में लड़ रही हैं मायावती, लेकिन सवाल शेष
कई चुनावों के बाद लग रहा है कि मायावती गंभीरता से चुनाव लड़ रही हैं। चुनाव विश्लेषक इसकी अलग-अलग वजह बता रहे हैं। पढ़ें,...
वोट देने के पहले देखें कांग्रेस और भाजपा के घोषणापत्रों में फर्क
भाजपा का घोषणापत्र कभी 2047 की तो कभी 2070 की स्थिति के बारे में उल्लेख करता है, लेकिन पिछले दस साल के कार्यों के...
शीर्ष नेतृत्व की उपेक्षा के बावजूद उत्तराखंड में कमजोर नहीं है कांग्रेस
इन चुनावों में उत्तराखंड के पास अवसर है सवाल पूछने का। सबसे बड़ा सवाल यही है कि विकास के नाम पर उत्तराखंड के विनाश...
‘आत्मपॅम्फ्लेट’ : दलित-बहुजन विमर्श की एक अलहदा फिल्म
मराठी फिल्म ‘आत्मपॅम्फलेट’ उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है, जो बच्चों के नजरिए से भारतीय समाज पर एक दिलचस्प टिप्पणी करती है। यह...
मोदी के दस साल के राज में ऐसे कमजोर किया गया संविधान
भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है, जिसे संविधान बदलने के लिए ज़रूरी संख्या बल से जोड़कर देखा जा रहा है।...