h n

कांग्रेस दलितों के साथ भावनात्मक रिश्ता क्यों नहीं बना पा रही है?

राहुल गांधी अपने पूरे भाषण में समाज के संकट को दर्शाने के लिए आंबेडकर को उद्धृत नहीं कर सके। वह इस अवसर का उपयोग आंबेडकर के विचारों को नेहरू की विचारधारा के साथ लाने के लिए कर सकते थे, जो भारत को एक आधुनिक राष्ट्र बना देगा और जैसा कि वे दोनों चाहते थे। बता रहे हैं विद्या भूषण रावत

‘द दलित ट्रूथ: द बैटल्स फॉर रियलाइजिंग आंबेडकर्स विजन’ के विमोचन के अवसर पर राहुल गांधी का दिया हुआ भाषण वायरल हो गया है और मीडिया ने उनके खिलाफ फिर से आक्रामक शुरुआत की है। भाजपा के ट्रोल्स ने उनके भाषणों के चुनिंदा अंशों को लेकर उसमें छेद करना शुरू कर दिया है। जवाहर भवन सम्मेलन हॉल, जहां पुस्तक का विमोचन किया गया था, पूरी तरह से खचाखच भरा हुआ था। कांग्रेस पार्टी की ओर से जो निमंत्रण आया था उसमे बताया गया था कि पुस्तक विमोचन के पहले एक पैनल चर्चा होगी। कुछ दोस्त थे, जिन्हें मैं जानता था और महसूस करता था कि मुझे सिर्फ उनसे मिलने के वास्ते वहां जाना चाहिए और इस बहाने कुछ अन्य दोस्तों से भी मुलाकात हो जाएगी। मुझे लगा कि यह समझने का अवसर है कि कांग्रेस डॉ आंबेडकर के बारे में क्या सोचती है और दलितों से संबंधित उसकी भविष्य की योजना क्या है?

पूरा आर्टिकल यहां पढें : कांग्रेस दलितों के साथ भावनात्मक रिश्ता क्यों नहीं बना पा रही है?

लेखक के बारे में

विद्या भूषण रावत

विद्या भूषण रावत सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता हैं। उनकी कृतियों में 'दलित, लैंड एंड डिग्निटी', 'प्रेस एंड प्रेजुडिस', 'अम्बेडकर, अयोध्या और दलित आंदोलन', 'इम्पैक्ट आॅफ स्पेशल इकोनोमिक जोन्स इन इंडिया' और 'तर्क के यौद्धा' शामिल हैं। उनकी फिल्में, 'द साईलेंस आॅफ सुनामी', 'द पाॅलिटिक्स आॅफ राम टेम्पल', 'अयोध्या : विरासत की जंग', 'बदलाव की ओर : स्ट्रगल आॅफ वाल्मीकीज़ आॅफ उत्तर प्रदेश' व 'लिविंग आॅन द ऐजिज़', समकालीन सामाजिक-राजनैतिक सरोकारों पर केंद्रित हैं और उनकी सूक्ष्म पड़ताल करती हैं।

संबंधित आलेख

स्मृतिशेष : केरल में मानवीय गरिमा की पुनर्स्थापना के लिए संघर्ष करनेवाले के.के. कोचू
केरल के अग्रणी दलित बुद्धिजीवियों-विचारकों में से एक 76 वर्षीय के.के. कोचू का निधन गत 13 मार्च, 2025 को हुआ। मलयाली समाज में उनके...
बिहार : क्या दलित नेतृत्व से सुधरेंगे कांग्रेस के हालात?
सूबे में विधानसभा चुनाव के सात-आठ महीने रह गए हैं। ऐसे में राजेश कुमार राम के हाथ में नेतृत्व और कन्हैया को बिहार में...
फ्रैंक हुजूर के साथ मेरी अंतिम मुलाकात
हम 2018 में एक साथ मिलकर ‘21वीं सदी में कोरेगांव’ जैसी किताब लाए। आगे चलकर हम सामाजिक अन्याय मुक्त भारत निर्माण के लिए एक...
पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी में गिनने से तेलंगाना में छिड़ी सियासी जंग के मायने
अगर केंद्र की भाजपा सरकार किसी भी मुसलमान जाति को ओबीसी में नहीं रखती है तब ऐसा करना पसमांदा मुसलमानों को लेकर भाजपा के...
क्या महाकुंभ न जाकर राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय के प्रति अपनी पक्षधरता दर्शाई है?
गंगा में डुबकी न लगाकार आखिरकार राहुल गांधी ने ज़माने को खुल कर यह बताने की हिम्मत जुटा ही ली कि वे किस पाले...