पिछले दिनों मुझे लब्धप्रतिष्ठ लेखक और अध्येता गोपीनाथ मोहंती के घर जाने का सुखद अवसर प्राप्त हुआ। लगभग तीस वर्ष पहले मैंने उनके उपन्यास ‘परजा’ के अंग्रेजी अनुवाद को उसके प्रकाशन के कुछ ही समय बाद पढ़ा था और उसने मुझ पर गहरा प्रभाव छोड़ा था। उस समय आदिवासी जीवन पद्धति के बारे में मेरा ज्ञान न के बराबर था। आगे चलकर झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की मेरी लंबी यात्राओं के दौरान मुझे अक्सर ‘परजा’ और उसकी गहरी अंतर्दृष्टि की याद आती रही।
आदिवासी जीवन पद्धति : अतीत का अवशेष या भविष्य की राह?
यदि हम आदिवासी जीवन पद्धति को उसके मूल्यों, विशेषकर उसके लोकतांत्रिक मूल्यों, के परिप्रेक्ष्य से देखें तो हमें यह स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि यह अतीत का अवशेष न होकर भविष्य की राह दिखाने वाली है। आदिवासी समाजों में लोकतांत्रिक जीवन की समृद्ध परंपरा हमारे लिए आशा और प्रेरणा का स्रोत हो सकती है। बता रहे हैं ज्यां द्रेज