इसी 19 मई, 2022 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘स्वराज से नए भारत के विचारों पर पुनर्विचार’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय सेमिनार के दूसरे दिन अपने भाषण में कहा कि “भारत को संविधान से बंधा हुआ एक नागरिक राष्ट्र बना देना उसके इतिहास, प्राचीन घरोहर, संस्कृति और सभ्यता की उपेक्षा करने के समान है।”
संविधान के नागरिक राष्ट्र से दिक्कत क्या है?
यह सच है कि नरसंहार करके राज्य स्थापित करना उस राज्य की सभ्यता पर भी सवालिया निशान लगाता है। लेकिन क्या देशी राजे बिना नरसंहार के साम्राज्य कायम करते थे? क्या कलिंग का युद्ध नरसंहार नहीं था? क्या पुष्यमित्र ने बौद्धों का नरसंहार नहीं किया था? हिंदू सभ्यता में ब्राह्मण-क्षत्रिय नरसंहार की लोमहर्षक घटना क्या है? जेएनयू की कुलपति धूलिपुड़ी पंडित के हालिया बयान पर सवाल उठा रहे हैं कंवल भारती