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आंबेडकर के विचारों का अन्वेषण अब आसान

आंबेडकर और जाति-व्यवस्था के अध्येताओं के लिए एक नई वेबसाइट BAWS.in का निर्माण, एक युगांतकारी घटना है। अमरीका के आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के तत्वावधान में आंबेडकर से प्रभावित कुछ कंप्यूटर प्रोग्रामरों ने बिना किसी पारिश्रमिक के अपने नेता के भाषणों और लेखन को सर्चेबिल डेटाबेस में परिवर्तित किया है

लोकतांत्रिक समाज हमेशा जटिल होते हैं। इस व्यवस्था में हमेशा विभिन्न आवाज़ों का कोलाहल होता रहता है। ये आवाजें अक्सर तत्कालीन समस्याओं के विभिन्न पहलुओं से संबंधित होती हैं। कई मामलों में नागरिक ऐसे किसी विचार का प्रतिपादन करते हैं, जो अन्य संबद्ध मामलों में उनके विचारों से मेल नहीं खाते। वे अतीत में जिसका समर्थन करते थे, वर्तमान में वे उसके विरोधी हो जाते हैं। 

कुल मिलाकर, लोकतंत्र में एक तरह की अस्त-व्यस्ता और अराजकता होती है। परंतु इसी में लोकतंत्र की ताकत और उसकी रचनात्मक शक्ति अंतर्निहित है। कम से कम जॉन डेवी से लेकर भीमराव आंबेडकर तक लोकतंत्र के पैरोकार तो यही मानते हैं। 

लोकतंत्र की यही विविधता – या अराजकता – हम लोकतंत्र के इन प्रतिबद्ध झंडाबरदारों के लेखन में भी पाते हैं। डेवी के व्यवहारवाद के अध्येता के रूप में मुझे बहुत पहले ही यह अहसास हो गया था कि डेवी का ‘व्यवहारवाद’ एक उपयोगी अमूर्त विचार है। उनका दर्शन और उनकी दार्शनिक प्रतिबद्धताएं समय के साथ विकसित और परिवर्तित होती रहीं और उनके लेखन में यह परिवर्तन देखा जा सकता है। आंबेडकर सन् 1913 से लेकर सन् 1916 तक कोलंबिया विश्वविद्यालय में डेवी के विद्यार्थी थे। आंबेडकर से गहरे तक प्रभावित अध्येता के रूप में मैं उनके विचारों की जटिलता को भी समझ पाया हूं। 

इन दोनों चिंतकों ने बहुत कुछ कहा और लिखा है, जिसका कुछ हिस्सा हम जैसे उन लोगों के लिए प्रासंगिक है, जो सामाजिक न्याय की स्थापना, जातिगत दमन के अंत और सामाजिक लोकतंत्र की राह में आनेवाली चुनौतियों में रूचि रखते हैं। हमें ऐसा लग सकता है कि इन चिंतकों के विचारों को समझना आसान है। हम आंबेडकर के ‘जाति-विरोधी विचारों’ या ‘डेवी के व्यवहारवाद’ के बारे में बात कर सकते हैं, लेकिन किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि इससे हमनें उनके मूलभूत विचारों को समझ लिया है। 

डॉ. आंबेडकर की एक पेंटिंग (साभार : सिम्बॉयसिस इंस्टीट्युट, पुणे)

डेवी के संपूर्ण वांग्मय में करीब 80 लाख शब्द हैं। मेरे अनुमान के अनुसार, आंबेडकर के अंग्रेजी में लेखन के वांग्मय में 40 लाख शब्द हैं (इसमें उनकी वे रचनाएं शामिल नहीं हैं, जो उन्होंने अपनी मातृभाषा मराठी में लिखी थीं)। क्या ये सभी रचनाएं सुसंगत और एक-सी बातें कहती हैं? क्या इन चिंतकों के विचार कभी बदले नहीं, कभी विकसित नहीं हुए, कभी परिपक्व नहीं हुए? एक अर्थ में, ये संग्रह इन लेखकों के लेखन की लोकतांत्रिक अराजकता को उद्घाटित करते हैं। यह सामग्री समृद्ध तो है, लेकिन इसके परिप्रेक्ष्य परस्पर सुसंगत नहीं हैं और ये अलग-अलग परिप्रेक्ष्य हमारा ध्यान खींचते हैं। 

आंबेडकर के अंग्रेजी में लेखन व भाषण का संपूर्ण वांग्मय (छाया स्कॉट आर. स्ट्राउड)

आईये हम अपना ध्यान आंबेडकर पर केंद्रित करें। वे एक महत्वपूर्ण चिंतक थे, जिनका पूरी दुनिया में अध्येताओं और जनसामान्य में सम्मान बढ़ता जा रहा है। आंबेडकर जैसे जटिल चिंतक के विचारों से लाभान्वित होने के लिए सरलीकरण और चयनात्मकता आवश्यक है। आंबेडकर के संपूर्ण विचार एक साथ प्रस्तुत नहीं किये जा सकते और ना ही हम ऐसा करना चाहेंगे, क्योंकि हमारे समक्ष अनेक मुद्दे उपस्थित हैं। हम आंबेडकर के बारे में जाति के विरोधी के रूप में बात कर सकते हैं या लोकतंत्र के पैरोकार के रूप में या नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई में सैद्धांतिक विचारक के रूप में या, जैसा कि मैंने अपनी रचना में लिखा है, एक ऐसे विचारक के रूप में जो बहुवादी व्यवहारवादी परम्परा को रचनात्मक ढंग से विस्तार दे रहा है आंबेडकर के साथ और उनके बारे में विचार करने के अनेक तरीके है।

हमें आंबेडकर के संपूर्ण वांग्मय में से वे चीज़ें ढूंढ निकालनी हैं और उन्हें चुनना हैं, जो हमारे लिए उपयोगी हैं। उनके जीवन के अलग-अलग चरणों में लिखी गईं उनकी रचनाएं अलग-अलग बातें कहती हैं। और आज वे सामाजिक न्याय और लोकतंत्र की स्थापना की राह में बाधक नित बदलतीं चुनौतियों के चलते मुख़्तलिफ़ बातें कहती हैं। रचनाओं के इस अराजक लोकतंत्र से हम किस प्रकार व्यवस्थित विचार खोदकर निकाल सकते हैं? 

आंबेडकर और जाति के हम अध्येताओं के लिए, एक नई वेबसाइट BAWS.in का निर्माण, एक युगांतकारी घटना है। अमरीका के आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के तत्वावधान में आंबेडकर के दृष्टिकोण से प्रभावित कुछ कंप्यूटर प्रोग्रामरों ने बिना किसी पारिश्रमिक के आंबेडकर के भाषणों और लेखकों के भारत सरकार द्वारा प्रकाशित संकलन को सर्चेबिल डेटाबेस में परिवर्तित किया है। 

अभी किसी विशिष्ट विषय के बारे में आंबेडकर के विचारों को जानने के लिए हमें उनके वांग्मय के अलगअलग खंडों का अध्ययन करना होता है। उनके वांग्मय की जटिलताओं को देखते हुए इस बात की काफी संभावना रहती है कि हमारा ध्यान किसी विशिष्ट विषय या सरोकार पर उन्होंने जो कहा है, उस पर न जाए। BAWS.in के ज़रिये आंबेडकर के वांग्मय के सभी खंडों को ‘सर्च’ किया जा सकता है। इससे हमें कई ऐसी बातें पता चलेंगी, जिनके बारे में पहले नहीं जानते थे। सर्च इंजन ‘प्रोक्सिमिटी सर्च’ भी कर सकता है। अर्थात ‘सर्च’ में डाले गए शब्द के समानार्थक शब्दों की सर्च। इससे सर्च काफी प्रभावी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, अगर हम ‘मुसलमान लीग’ को सर्च करेंगे तो हमें ‘मुस्लिम लीग’ से संबंधित जानकारी भी मिल जाएगी। जैसे-जैसे, उपयोगकर्ताओं के फीडबैक के आधार पर, BAWS.in के प्रोग्रामर उसमें नई-नई चीज़ें जोड़ते जाएंगे और उसके अल्गोरिद्म नई-नई चीज़ें सीखते जाएंगे, जैसे आंबेडकर फाउंडेशन जैसे समूह क्षेत्रीय भाषाओं के खंडों के उच्च गुणवत्ता वाले स्कैन उपलब्ध करवा रहे हैं, वैसे-वैसे इसकी उपयोगिता बढ़ती जाएगी।

BAWS.in अनेक श्रेणियों के उपयोगकर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा मुझ जैसे अध्येताओं को वह आंबेडकर के वाड्मय में ‘डेवी‘ या ‘ब्राह्मणवाद‘ जैसे विशिष्ट शब्दों को सर्च करने का सशक्त माध्यम देगा। हम यह भी पता लगा सकेंगे कि वे शब्द कहां-कहां प्रयोग किए गए हैं। सर्च के परिणामों पर क्लिक करने से सर्च इंजन हमें महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित आंबेडकर वाड्मय के संबंधित पेज की सर्चेबिल टेक्स्ट इमेज पर ले जाएगा। यह अध्येताओं के लिए अत्यंत उपयोगी है, क्योंकि हम अक्सर अपने लेखन में किसी उद्धरण के विशिष्ट खंड और पृष्ठ क्रमांक को उदृत करना चाहते हैं।

अन्य लोगों को BAWS.in आंबेडकर के लेखन और भाषणों के विशाल संग्रह से प्रेरणा और ज्ञान प्राप्त करने का मौका देगा। इससे हम आंबेडकर का बताए गए किसी उद्धरण या वाक्यांश के बारे में यह जांच भी कर सकेंगे कि वह वाकई आंबेडकर का है या नहीं। यह साइट हमें आंबेडकर के किसी विशिष्ट उद्धरण के संदर्भ का पता लगाने में भी मदद करती है। महान चिंतक महान इसलिए होते हैं क्योंकि उनमें इतनी संवेदनशीलता होती है कि वे अपने तर्कों में अत्यंत सूक्ष्म अंतर की व्याख्या भी कर सकें। इसके अलावा उन्हें किसी अत्यंत अर्थपूर्ण बात को कम शब्दों में कहना भी आता है। पूरे लेख या भाषण को पढ़कर हम उसके संदर्भ से उद्धरण के अर्थों की व्याख्या कर सकते हैं। 

BAWS.in का स्क्रीन शॉट

BAWS.in का निर्माण करने वाले प्रोग्रामरों की टीम अध्येताओं व अन्य उपयोगकर्ताओं से लगातार यह जानने का प्रयत्न कर रही है कि वे इस सेवा में भविष्य में और क्या अपग्रेड चाहेंगे। आने वाले समय में वेबसाइट में कई अन्य नए फीचर जोड़े जाएंगे। इनमें शामिल हैं ‘प्राक्सिीमिटी सर्च’ अर्थात किसी विशिष्ट अंतराल पर दो शब्दों के युग्म ढूंढ़ना। इस वेबसाइट पर उपयोगकर्ता, पुस्तकों के हिस्सों का एनोटेशन भी कर सकेंगे। BAWS.in का निर्माण करने वाली टीम को ऐसे मददगारों की जरूरत है जो सर्च करने के लिए उपलब्ध भाषाओें में इजाफा कर सकें।

सिद्धार्थ कॉलेज में आंबेडकर की किताबों की बुक प्लेट (छाया स्कॉट आर. स्ट्राउड)

वर्तमान में यह वेबसाइट केवल आंबेडकर वांड्मय के अंग्रेजी संस्करण में ही सर्च कर सकती है। हिन्दी एवं तमिल संस्करण केवल पढ़े जा सकते हैं, उन्हें सर्च करने की सुविधा बाद में उपलब्ध करवाई जाएगी। जैसे-जैसे भारत सरकार, विभिन्न संस्थाओं या निजी व्यक्तियों से उच्च गुणवत्ता के स्केन उपलब्ध होते जाएंगे, वैसे-वैसे अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध सामग्री भी वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी।

अगर आज बाबासाहेब होते वे निश्चित तौर पर आंबेडकर इंटरनेशल सेंटर, यूएसए और उसकी टीम द्वारा जनता को यह सुविधा उपलब्ध करवाए जाने की पहल की सराहना करते। उन्हें इस बात से और अधिक प्रसन्नता होती कि BAWS.in पूरी तरह निःशुल्क है। इसकी तुलना में जॉन डेवी के वांड्मय के इसी तरह के डेटाबेस हजारों डालर में ही उपलब्ध हैं। केवल विश्वविद्यालयों के पुस्तकालय ही उन्हें खरीद सकते हैं। आंबेडकर चाहते थे कि उनके विचार और उनकी पुस्तकें आम जनता तक आसानी से पहुंचें। यही कारण है कि उन्होंने कई अखबार निकाले और उनमें लेखन किया। यही कारण है कि उन्होंने अपने व्यक्तिगत पुस्तकालय की पुस्तकें कालेजों को भेंट कीं और यही कारण है कि पिछले कुछ दशकों में आंबेडकर के वैचारिक उत्तराधिकारियों ने उनके लेखन और भाषणों को आम जनता को उपलब्ध करवाने के लिए लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी।

सिद्धार्थ कॉलेज का पुस्तकालय (छाया स्कॉट आर. स्ट्राउड)

आंबेडकर इसलिए भी खुश होते कि BAWS.in हमें यह चुनने का अधिकार देती है कि हम क्या पढ़ें। आंबेडकर को उनकी पुस्तकें बहुत प्यारी थीं और उनका इस्तेमाल वे विशिष्ट विषयों पर विचार करने और विशेष आवश्यकताओं के संदर्भ में करते थे। आंबेडकर ने अपने जीवन के अंतिम दशक में अपने एक प्रकाशक से कहा था कि “किसी भी किताब को पूरा पढ़ना मेरी शैली नहीं है। केवल कुछ ही ऐसी पुस्तकें होती हैं, जिन्हें पहले पेज से लेकर आखिरी पेज तक गंभीरता से पढ़ा जाना आवश्यक होता है। जब भी मुझे मेरी रूचि के किसी विषय जैसे समाजवाद पर कोई नई पुस्तक मिलती है तो मैं उसके परिचय और भूमिका पर एक नजर डालता हूं, फिर विषय सूची पढ़कर यह तय करता हूं कि कौन से अध्याय विषय पर मुझे कोई नई जानकारी या विचार देंगे और फिर मैं केवल वे ही पृष्ठ पढ़ता हूं, क्योंकि बाकी पृष्ठों में जो लिखा है, उसके बारे में तो मैं पहले से ही जानता हूं। और जब मैं यह कर लेता हूं तो आप कह सकते हैं कि मैंने किताब पढ़ ली है।” (नानक चंद रत्तू, रेमिनेंसिस एंड रिमेमब्रेनसिस ऑफ डॉक्टर बी. आर. आंबेडकर, पृष्ठ 122)। आंबेडकर एक व्यस्त व्यक्ति थे। अगर उनके पास कम्प्यूटरीकृत सर्च एंलगोरिद्म होते तो वे न जाने क्या-क्या ढूंढ़ निकालते और किन-किन विषयों पर विचार कर लेते। जो संसाधन हमारे पास उपलब्ध हैं, उनके बेहतर और उद्धेश्यपूर्ण उपयोग में मदद करने वाले उपकरणों का स्वागत किया जाना चाहिए।

जॉन डेवी की पुस्तक ‘फिलोस्फेर ऑफ़ साइंस एंड फ्रीडम’ (1950) में आंबेडकर द्वारा किये गए एनोटेशन (छाया स्कॉट आर. स्ट्राउड)

आंबेडकर शायद हमारे साथ मिलकर इस पर भी प्रसन्न होते कि उन्होंने भविष्य की पीढ़ियों के लिए अध्ययन सामग्री का जो विपुल खजाना छोड़ा है, उसे खंगालने के नए तरीके सामने हैं। आइए, हम सब मिलकर आंबेडकर के लेखों और उनके भाषणों को सर्च करने के इस नए और शक्तिशाली उपकरण को विकसित करने वाले प्रोग्रामरों और उनकी सहायता करने वालों का अभिनंदन करें। उनका अभिनंदन करने के अतिरिक्त हम एक और महत्वपूर्ण काम कर सकते हैं और वह है BAWS.in के जरिए आंबेडकर के बारे में और जानना तथा यह समझना कि हम उनके मिशन को अपने जीवन का हिस्सा कैसे बना सकते हैं। 

(मूल अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनूदित, संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

स्कॉट आर. स्ट्राउड

स्कॉट आर. स्ट्राउड ऑस्टिन, अमेरिका, स्थित टेक्सास विश्वविद्यालय में संचार अध्ययन के सह-प्राध्यापक और मीडिया आचार के कार्यक्रम निदेशक हैं। उनकी सबसे ताज़ा पुस्तक ‘द इवोल्यूशन ऑफ़ प्रेगमेटिज्म इन इंडिया: आंबेडकर, डेवी एंड द रेटोरिक ऑफ़ रिकंस्ट्रक्शन’ (यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो प्रेस, 2023) हमें यह बताती है कि डेवी के व्यवहारवाद से भीमराव आंबेडकर कैसे जुड़े और किस प्रकार इस जुड़ाव ने भारत में सामाजिक न्याय की स्थापना के अभियान में आंबेडकर के भाषणों और लेखन को आकार दिया। ‘वे जॉन डेवी एंड द आर्टफुल लाइफ’ एवं ‘कांट एंड द प्रॉमिस ऑफ़ रेटोरिक’ के लेखक भी हैं। वे सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में देश के पहले जॉन डेवी केंद्र के सहसंस्थापक भी हैं।

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