h n

सम्मानित किये गये छत्तीसगढ़ी सिनेमा के जनक मनु नायक

मनु नायक ने 1965 में छत्तीसगढ़ी में पहली फिल्म ‘कही देबे संदेश’ का निर्माण और निर्देशन किया था। यह फिल्म उस वक्त बनी थी, जिस समय फिल्मी दुनिया में जाना किसी सपनों की दुनिया में जाना जैसे था। बता रहे हैं संजीव खुदशाह

गत 1 नवंबर, 2022 को छत्तीसगढ़ी फिल्म के प्रथम निर्माता निर्देशक मनु नायक को राज्य के राज्यपाल अनुसूईया उइके व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा राज्य के प्रतिष्ठित किशोर साहू सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान सिनेमा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए दिया जाता है।

 

ध्यातव्य है कि मनु नायक ने 1965 में छत्तीसगढ़ी में पहली फिल्म ‘कही देबे संदेश’ का निर्माण और निर्देशन किया था। यह फिल्म उस वक्त बनी थी, जिस समय फिल्मी दुनिया में जाना किसी सपनों की दुनिया में जाना जैसे था।

मनु नायक बताते हैं कि उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। वह छत्तीसगढ़ में रायपुर जिले के एक गांव कुरा के निवासी थे। बचपन से उन्हें नाटक में भाग लेने का बड़ा शौक था और वे फिल्मी दुनिया मुंबई में अपना भाग्य आजमाना चाहते थे। पैसे नहीं थे मुंबई जाने के लिए। इसीलिए वह 1955 में हाफ टिकट लेकर जो उस समय 12 रुपए का था, मुंबई पहुंचे लेकिन टीटी ने उन्हें पकड़ लिया। बाद में स्टूडेंट समझ कर उन्हें छोड़ भी दिया। वे चार-पांच दिन रहे और फिर लौट कर आ गए। कुछ दिनों बाद फिर गए और वहां की फिल्म कंपनी अनुपम मित्र में नौकरी करने लगे।

जल्द ही उन्होंने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और के बल पर कंपनी में एक खास जगह बना ली। वे उस कंपनी में एकाउंटेंट बन गए। वह उस समय के तमाम बड़े कलाकारों अभिनेताओं, अभिनेत्रियों, पार्श्व गायक, संगीतकारों को भुगतान किया करते थे। इससे उनकी इन सब कलाकारों से पहचान हो गई। मनु नायक बताते हैं कि उनका मुंबई से रायपुर आना जाना चलता रहा। उनके भीतर एक कलाकार भी था जो उन्हें मुंबई तक खींच लाया था। बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था और उन्हें फिल्म बनाने के लिए प्रेरित कर रहा था।

मनु नायक को सम्मानित करतीं छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसूईया उइके (दाएं से दूसरे) व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

‘कही देबे संदेश’ फिल्म बनाने की कहानी

मनु नायक बताते हैं कि जब वह रायपुर में रहा करते थे, तब उनसे एक दलित यानी सतनामी समाज के लड़के से दोस्ती हो गई थी। जब कभी वह उनके घर आता तो उनकी मां उतने क्षेत्र को जितने में उनका सतनामी दोस्‍त खड़ा होता था या बैठता था, उतनी जगह को उसके जाने के बाद गोबर से लीप देती थी। यानि उस वक्‍त छुआछूत, जाति-प्रथा चरम पर थी। इससे मनु नायक को तकलीफ होती। लेकिन वह कह नहीं पाते। जब फिल्म बनाने की बारी आई तो उन्होंने इस तरह की घटनाओं को याद करते हुए एक रोमांटिक कहानी तैयार की, जो ग्रामीण सामाजिक परिवेश पर आधारित था। इसमें हीरो दलित परिवार से और हीरोइन ब्राह्मण परिवार से आती थी। इस फिल्म को बनाने के लिए उन्‍हे बहुत मेहनत करना पड़ी । पहले सारे गीत रिकॉर्ड कराए गए। गायक कलाकारों में मोहम्मद रफी, सुमन कल्याणपुर, महेन्‍द्र कपूर, और मन्‍ना डे आदि शामिल थे। उनके गाए गीत बहुत लोकप्रिय हुए। 

1965 में रिलीज हुई थी फिल्म ‘कहि देबे सन्देश’

मनु नायक बताते हैं कि उस वक्त पैसे की कमी थी, इसीलिए उन्होंने फिल्म की शूटिंग के लिए छत्तीसगढ़ के ही पलारी गांव का चयन किया। नवंबर-दिसंबर ठंड के महीने में उन्होंने इसकी शूटिंग पूरी की। इस दौरान मुंबई के टेक्नीशियन कलाकार पलारी में जमे रहे।

फिल्‍म को लेकर विवाद

मनु नायक बताते हैं कि जब 1965 में फिल्म ‘कहि देबे संदेश’ रिलीज हुई तो कुछ कट्टरपंथयों को फिल्म के कथानक को लेकर आपत्ति हुई। वे फिल्म को प्रतिबंधित करने की मांग करने लगे। इस प्रकार फिल्म रिलीज होने से पहले ही चर्चित हो गई। बाद में इसे करमुक्त कर दिया गया। फिल्म ने अपार लोकप्रियता हासिल की। 

करीब 86 वर्षीय मनु नायक कहते हैं कि इस फिल्म की ओरिजिनल प्रिंट उनके पास नहीं है। जो प्रिंट यूट्यूब पर अपलोड की गई है, उसकी क्वालिटी खराब है। यह कोशिश की जानी चाहिए कि छत्तीसगढ़ी भाषा में बनी पहली फिल्म की ओरिजिनल प्रिंट प्राप्त की जाए और उसका डिजिटलाइजेशन करके छत्तीसगढ़ के सिनेमाघरों में प्रदर्शन किया जाय। 

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

संजीव खुदशाह

संजीव खुदशाह दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं। इनकी रचनाओं में "सफाई कामगार समुदाय", "आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग" एवं "दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल" चर्चित हैं

संबंधित आलेख

केशव प्रसाद मौर्य बनाम योगी आदित्यनाथ : बवाल भी, सवाल भी
उत्तर प्रदेश में इस तरह की लड़ाई पहली बार नहीं हो रही है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के बीच की खींचतान कौन भूला...
बौद्ध धर्मावलंबियों का हो अपना पर्सनल लॉ, तमिल सांसद ने की केंद्र सरकार से मांग
तमिलनाडु से सांसद डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार...
मध्य प्रदेश : दलितों-आदिवासियों के हक का पैसा ‘गऊ माता’ के पेट में
गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक...
मध्य प्रदेश : मासूम भाई और चाचा की हत्या पर सवाल उठानेवाली दलित किशोरी की संदिग्ध मौत पर सवाल
सागर जिले में हुए दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने...
फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन के विरुद्ध है मराठा आरक्षण आंदोलन (दूसरा भाग)
मराठा आरक्षण आंदोलन पर आधारित आलेख शृंखला के दूसरे भाग में प्रो. श्रावण देवरे बता रहे हैं वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण...