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हिंदी प्रदेशों में रही सावित्रीबाई फुले जयंती की धूम, दलित-बहुजन महिलाओं ने की अगुआई

बीते 3 जनवरी, 2023 को देश के विभिन्न हिस्सों में सावित्रीबाई फुले की 191वीं जयंती मनाई गयी। इस बार एक अंतर यह दिखा कि हिंदी पट्टी के राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा व दिल्ली में स्त्री शिक्षा की अधिष्ठात्री को कृतज्ञतापूर्वक याद किया गया तथा महिलाएं ने पहल की। बता रहे हैं सुशील मानव

जौनपुर के मछलीशहर में कड़ाके की ठंड के बावजूद जुटीं महिलाएं 

पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के मछलीशहर नामक स्थान की निवासी प्रभा ने इस साल भी सावित्रीबाई फुले की जयंती का आयोजन किया। वह पिछले दो साल से उनकी जयंती मना रही हैं। इलाहाबाद शहर में कामगार महिलाओं के लिये वर्षों से काम करने वाली प्रभा फिलहाल मछली शहर में खेतिहर मजदूर स्त्रियों के हितों के लिये काम कर रही हैं। प्रभा बताती हैं कि तीन साल पहले जब वह अपने गृहनगर मछलीशहर लौटीं तो उन्होंने पाया कि सावित्रीबाई फुले को यहां कोई नहीं जानता। प्रभा बताती हैं कि उन्होंने सावित्रीबाई फुले जयंती मनाने का चलन यह सोचकर शुरु किया कि उनके क्षेत्र के लोगों को उनके अभूतपूर्व संघर्ष बारे में पता तो चले। 

प्रभा बताती हैं कि पिछले साल उन्होंने आसपास के 5-6 गांवों में घूम-घूमकर सावित्रीबाई फुले जयंती का आयोजन किया था। लेकिन इस साल बहुत ज़्यादा ठंड थी, इसलिये उन्होंने सबकों एक जगह बुलाया और एक जगह बड़ा कार्यक्रम किया। कड़ाके की ठंड होने के बावजूद सैंकड़ों स्त्रियां व किशोर छात्र-यात्राओं कार्यक्रम में हिस्सा लिया और सावित्रीबाई फुले के कृतित्व व व्यक्तित्व को जाना। इस बार कार्यक्रम में प्रभा ने क्षेत्र के शिक्षकों व एडवोकेट को भी बतौर वक्ता आमंत्रित किया था। 

पुरुषार्थ के मुकाबले में ‘स्त्र्यार्थ’

वहीं, जौनपुर शहर में ही सावित्रीबाई फुले की 191 वीं जयंती के अवसर पर ‘संविधान और महिलाओं की शिक्षा दशा और दिशा’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन दिशा संस्थान की तरफ से किया गया। संगोष्ठी में महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा की स्थिति और भूमिका पर विस्तार से चर्चा हुई। दिशा संस्थान से जुड़े समाजसेवी साहित्यकार लाल प्रकाश राही ने बताया कि वे जौनपुर के अलग-अलग गांवों में पिछले पांच साल से सावित्रीबाई फुले जयंती मनाते आ रहे हैं। राही आगे बताते हैं कि आज समाज में स्त्रियां कुछ अच्छा करती हैं तो उन्हें कहा जाता है कि ‘पुरुषार्थ’ का काम किया। हम इनके बदले नया शब्द गढ़ने की बात कर रहे हैं, जैसे कि ‘स्त्र्यार्थ’। इसके अलावा वह वर्तमान में समाज के लिये काम करने वाली दलित-बहुजन महिलाओं/लड़कियों पर भी कार्यक्रम आयोजित करके उन्हें सम्मानित करते हैं। राही जी कहते हैं कि जिस समाज से लड़कियां घर से बाहर नहीं निकल पाती थी वो आज कार्यक्रमों में आती हैं, बैठती हैं, संचालन करती हैं।

सुदूर गांवों तक सावित्रीबाई फुले जयंती की धूम

मुरादाबाद : वर्ष 2011 से जल रही सावित्री की ज्योति

राजधानी दिल्ली में एक साल तक चले किसान आंदोलन में किसानों के बच्चों को पढ़ाने के लिये सावित्रीबाई फुले पाठशाला चलाकर सुर्खियों में आयी निर्देश सिंह साल 2011 से सावित्रीबाई फुले जयंती मना रही हैं। इस साल उनकी अगुवाई में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के अनेक गांवों में सावित्रीबाई फुले जयंती मनाई गई।

आपको क्यों लगा कि सावित्रीबाई फुले पर कुछ करना चाहिये, इस सवाल के जवाब में निर्देश सिंह बताती है कि “जब में दलित आंदोलन से जुड़ीं तो पहले वह डॉ. आंबेडकर के नाम से आंदोलन में आयी। लेकिन जब उन्होंने सावित्रीबाई फुले को पढ़ा तो पाया कि दलित आंदोलन में भी कहीं इन महिलाओं पर कोई बात नहीं होती है। इसके अलावा महिलाओं की भागीदारी भी नहीं दिखी और ना ही उनमें जागरुकता दिखी।” निर्देश बताती हैं कि “दलित आंदोलन में भी इतनी बड़ी क्रांतिकारी काम करने वाली महिला का कोई नाम तक नहीं जानता था।”

 निर्देश सिंह कहती हैं कि वह खुद भी नहीं जानतेी थी, फिर उन्हें लगा कि बाबा साहेब के नाम से तो बहुत सारे संगठन हैं। तो उन्होंने सावित्रीबाई फुले के नाम से संगठन बनाया ताकि उनका विचार व उनका काम दुनिया के सामने आये। इस तरह सावित्रीबाई फुले के नाम से संस्था बनाने के बाद गांव मेें, मोहल्लों में, शहरों में उन्होंने काम शुरु किया। पूरे साल कैम्पेन चलाया और लोगों के पास जा जाकर सावित्रीबाई फुले के बारे में बताया। इसके बाद निर्देश जी के संगठन ने सावित्रीबाई फुले पर साल में एक कार्यक्रम शुरु किया। इन कार्यक्रमों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये महिलाओं के बिना पुरुषों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि अपने जीवनसाथी, मां, बहन, महिला दोस्त, कोई भी महिला हो, उन्हें साथ लेकर आओ। 

 

उत्तराखंड के रामनगर में महिलाओं ने किया सावित्रीबाई फुले जयंती का आयोजन

निर्देश बताती हैं कि कई बार पुरुष बहाना बनाते हैं कि हम तो चाहते हैं कि महिलायें आयें पर वे आती नहीं। वहीं जब वे खुद उनके घर जाकर महिलाओं से बात करतीं तो महिलायें बतातीं कि हम तो आना चाहते हैं पर ये लोग (पुरुष) ले ही नहीं जाते। निर्देश बताती हैं कि 2011 के उनके कार्यक्रम में क़रीब ढाई हजार महिलायें आयी थीं। और महत्वपूर्ण यह कि पुरुषों ने स्त्रियों के लिये अपनी कुर्सियां तक छोड़ दी। 

क्या बदलाव आया सावित्रीबाई फुले जयंती मनाने के इन 11 सालों में? इस सवाल के जवाब में निर्देश सिंह बताती हैं कि पहले सिर्फ़ बाबा साहेब की जयंती मनायी जाती थी और वह भी शहरों में। लेकिन अब सावित्रीबाई फुले की जयंती गांव-मोहल्लों तक में मनायी जा रही है। 

नैनीताल : गूंजी सावित्रीबाई फुले की शिक्षा की ताल

वहीं उत्तराखंड के नैनीताल जिले के कालू सिद्ध रामनगर नामक गांव में महिला एकता मंच द्वारा सावित्रीबाई फुले जयंती बड़े धूमधाम से मनाई गयी। आयोजकों ने दूरभाष पर जानकारी दी कि उनके मंच के द्वारा पिछले 6 सालों से सावित्रीबाई फुले की जयंती मनायी जा रही है। मंच की संयोजक ललिता रावत कहती हैं कि आज से दस साल पहले जब उन्होंने महिला एकता मंच नहीं बनाया था, तब वह खुद भी सावित्रीबाई फुले के बारे में नहीं जानती थीं। सिर्फ़ किताब में थोड़ा सा उनके बारे में जिक्र भर आता था। इस कारण उनकी जानकारी अत्यंत ही सीमित थी। फिर जब उन्होंने समूह बनाया तो सामाजिक-राजनीतिक किताबें पढ़ीं तब जाना कि सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं की शिक्षा व चेतना के लिये डेढ़ सौ साल पहले कितना संघर्ष किया और वह भी तब जब ब्राह्मणवादी व्यवस्था में महिलाओं व दलितों को शिक्षा का अधिकार नहीं था। ललिता रावत कहती हैं कि “हमारे साथ जो महिलायें जुड़ी हुई हैं, उन्हें हमने कार्यक्रम आयोजित करके बताया कि आज हमें जो भी मंच मिला हुआ है, उसके लिये आज से 160-70 साल पहले एक महिला ने संघर्ष किया था। उन्हीं की बदौलत महिलायें पढ़कर लिखकर खुद को आज स्थापित कर पायी हैं।” 

कार्यक्रम स्थल के बारे में ललिता जी बताती हैं कि जयंती के आयोजन के लिए कोई एक स्थल तय नहीं किया जाता। कई बार महिलायें खुद कहती हैं कि उनके गांव में कार्यक्रम किया जाय। सावित्रीबाई फुले जयंती मनाने का पांच साल में कुछ प्रभाव पड़ा है? यह पूछने पर ललिता बताती हैं कि उनके संपर्क से जुड़ी आज हर महिला में अपने अधिकारों को लेकरचेतना आई है। उनके अंदर सावित्रीबाई फुले से यह प्रेरणा आयी है कि वो भी कुछ कर सकती हैं। ललिता आखिर में कहती हैं कि वे लोग चाहती हैं कि क्रांतिकारी महिलाओं के बारे में स्कूलों में पढ़ाया जाय ताकि हमारे समाज की पुरुषवादी कुरीतियां व लैंगिक वर्चसवाद व भेदभाव खत्म हो। 

दिल्ली : सावित्रीबाई फुले सम्मान से सम्मानित की गयी महिलायें

दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में सावित्रीबाई फुले की 191वीं जयंती मनाई गयी। इस अवसर पर ‘समाज में महिला शिक्षा और नेतृत्व’ विषय से विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया तथा देश में विभिन्न क्षेत्र में कार्य करने वाली संघर्षरत महिलाओं को ‘सावित्री बाई फुले अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया। यह आयोजन भारतीय दलित साहित्य अकादमी सहित अनेक संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।संगोष्ठी में लेखिका व दलित लेखक संघ की पूर्व अध्यक्ष अनिता भारती ने सावित्रीबाई फुले के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वाभिमान से जीने के लिए शिक्षा ही एकमात्र विकल्प है।

दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में दलित लेखक संघ की पूर्व अध्यक्ष अनिता भारती को किया गया सम्मानित

हेमलता कंसोटिया जी सीवर वर्कर, अस्पृश्यता, निर्माण मज़दूर कल्याण बोर्ड के एडवायजरी में सदस्य रही हैं। वह एक संस्था चलाती हैं। कार्यक्रम में उनके अलावा समाजसेवी व बेघर लोगों के अधिकारों के लिये काम करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता इंदु रेणु प्रकाश सिंह ने भी भागीदारी की। इस मौके पर हेमलता ने बताया कि पिछले साल जयपुर में उन्होंने कार्यक्रम किया था। इस साल राजधानी दिल्ली में आयोजित किया और अगले साल उत्तर प्रदेश में आयोजित करने का कार्यक्रम है। उन्होंने बताया कि पिछले पांच-छह वर्षों से यह मनाती आ रही हैं। इसके कारण व उद्देश्य के बारे में पूछने पर हेमलता बताती हैं कि दलित-पिछड़े समाज से महिलायें बहुत संघर्ष से आगे आती हैं। ज़मीन पर जो महिलाएं काम करती हैं, उसका श्रेय व पुरस्कार बड़े मंच से कोई और ले जाता है। जबकि ज़मीन पर काम करने वाली पिछड़े समाज की महिलाओं को न तो सम्मान मिलता है और ना ही प्रोत्साहन। खासकर एकल महिलाओं के काम को तो सम्मान नहीं ही मिलता। उनकी शिक्षा भी पूरी नहीं हो पाती। इसलिये वह ज़मीनी संघर्ष करने वाली महिलाओं को सावित्रीबाई फुले जयंती पर सम्मानित करती हैं ताकि उनके काम से दूसरे लोगों को भी प्रेरणा मिले। 

हेमलता आगे कहती हैं कि समाज में एक संदेश देने के लिये पहले उन्होंने दस महिलाओं को लेकर यह कार्यक्रम शुरू किया। आज उन्ही की बदौलत राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश से कई साथी जुड़े हैं। नई पीढ़ी की लड़कियां पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक काम में भी आगे बढ़ रही हैं। हेमलता बताती हैं कि जिन महिलाओं की पढ़ाई छूट गई थी वह वापिस ओपेन स्कूल से अपनी शिक्षा से जुड़कर कुछ काम कर रही हैं और आगे बढ़ी हैं। हेमलता ने यह भी बताया कि वह जल्द ही इन महिलाओं की सफलतओं पर एक किताब प्रकाशित कराने वाली हैं। 

हरियाणा में नीलम बांट रहीं शिक्षा की रोशनी

नीलम पथरेड़ी गांव, अंबाला जिला, हरियाणा में पिछले सात साल से सावित्रीबाई फुले जयंती मनाती आ रही हैं। वह अपने पथरेड़ी गांव स्थित गुरुघर में ‘माता रमाबाई’ के नाम से ट्युशन सेंटर चलाती आ रही हैं और दलित-बहुजन समाज के बच्चों को फ्री ट्युशन देती आ रही हैं। साथ ही उन्होंने माता रमाबाई के नाम से गांव की स्त्रियों की एक कमेटी का गठन भी किया बनाया हुआ है। उनके मुताबिक, सावित्रीबाई फुले जयंती समारोह में ट्युशन पढ़ने वाले बच्चे, उनके माता-पिता, कमेटी की स्त्रियां व अन्य स्त्रियों की भी भागीदारी रहती है। 

वह बताती हैं कि वह साल में कई कार्यक्रम महिलाओं व बच्चों के साथ बहुजन समाज के महान लोगों को लेकर आयोजित करती हैं, जिनमें दूसरे शहरों से वक्तागण भी आते हैं। नीलम बताती हैं कि गुरुघर में ट्यूशन को लेकर दलित समाज के लोगों ने पहले उनका विरोध किया था, लेकिन बाद में कमेटी में बच्चों के माता पिता ने रज़ामंदी दे दी। 

किस सोच के साथ आपने सावित्रीबाई फुले जयंती मनाना शुरू किया? इस सवाल पर वह बताती हैं कि उनके जीवनसाथी हरियाणा पुलिस में हैं और वे बहुजन नायकों से संबंधित किताबें पढ़ते रहते हैं। नीलम के मुताबिक सावित्रीबाई फुले के बारे में उन्हें जानकारी इस कारण ही मिल सकी। वह कहती हैं कि “जैसे मैं नहीं जानती थी, वैसे ही बहुत से लोग, बहुत सी स्त्रियां नहीं जानती होंगी।” तो इसी सोच से उन्होंने सावित्रीबाई फुले जयंती मनाना शुरू किया। 

बिहार के भागलपुर में राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस के रूप में मनायी गयी सावित्रीबाई फुले जयंती 

सावित्रीबाई फुले की जयंती बिहार के सुदूर जिले भागलपुर में भी मनायी गयी। इस बार इसे जिले के खरीक प्रखंड के आदर्श विद्यालय, नवादा में राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस के रूप में मनाया गया। इस मौके पर विभिन्न विधाओं में आयोजित प्रतियोगिता में छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया।. इस अवसर पर मुख्य अतिथि व तिलका मांझी विश्वविद्यालय, भागलपुर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. विलक्षण रविदास ने बेहतर प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को बहुजन नायक-नायिकों की जीवन से जुड़ी पुस्तकें देकर सम्मानित किया। 

इस मौके पर डॉ. विलक्षण रविदास ने कहा कि हिंदू धर्म, ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था और परंपरा में शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं को सभी मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था। आधुनिक भारत में पहली बार जिस महिला ने इसे चुनौती दी, उनका नाम सावित्रीबाई फुले है। उन्होंने अपने कर्म और विचारों से वर्ण-जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को एक साथ चुनौती दी।

सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के संयोजक रिंकु यादव ने इस मौके पर कहा कि सावित्रीबाई फुले को पढ़ने-पढ़ाने और स्कूल खोलने-चलाने के लिए लड़ना पड़ा था। उन्होंने सबके लिए शिक्षा की लड़ाई की बुनियाद रखी थी। आज सरकारें सरकारी स्कूल बंद कर रही है, सरकारी शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद कर शिक्षा को व्यापार की वस्तु बना रही है। इसके जरिए दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों के लिए शिक्षा हासिल करने का रास्ता बंद किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फुले के वारिसों को बेहतर शिक्षा हासिल करने और सरकारी शिक्षा व्यवस्था को बचाने के लिए लड़ना होगा।

कार्यक्रम में आदर्श सर्वोदय विद्या मंदिर के निदेशक राजेश कुमार रवि, शिक्षिका सलिता कुमारी, नीभा कुमारी, कवि अरूण अंजाना, बिहार फुले-अंबेडकर मंच के अखिलेश रमण, नसीब रविदास, शिक्षक सुनील कुमार गुप्ता, संतोष कुमार, अमरजीत कुमार, लालमुनी कुमार, रौशन कुमार आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। 

कार्यक्रम के बारे में सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के सदस्य गौतम कुमार प्रीतम ने दूरभाष पर जानकारी दी कि उनका संगठन पिछले पांच साल से विभिन्न स्थानों पर सावित्रीबाई फुले जयंती पर कार्यक्रम आयोजित करते आ रहे हैं। सावित्रीबाई फुले जयंती क्यों? के सवाल पर गौतम बताते हैं कि समतामूलक समाज निर्माण व जाति विनाश का विचार लेकर उनके संगठन ने यह कार्यक्रम शुरु किया है। वे बताते हैं कि हिंदी पट्टी के लोग सावित्रीबाई फुले से परिचित नहीं हैं तो हमारा प्रयास यह है कि हिंदी पट्टी के लोगों को सावित्रीबाई फुले से परिचित कराया जाय। वे बताते हैं अपने कार्यक्रम में वे साहित्यिक वैचारिक लोगों को बतौर वक्ता बुलाते आ रहे हैं।

हर साल एक ही जगह मनाते हैं या अलग अलग इस सवाल पर गौतम कुमार कहते हैं कि हर बार नई जगह कार्यक्रम करवाते हैं। एक बार लोगों को सावित्रीबाई फुले के बाबत जानकारी देने के बाद हर साल जगह बदल देते हैं ताकि नई जगह नये लोगों को सावित्रीबाई फुले से परिचित कराया जा सके। 

भागलपुर, बिहार में आयोजित कार्यक्रम में मौजूद नौनिहाल

गौतम कुमार प्रीतम बताते हैं कि उन लोगों के प्रयास से ही बिहार सरकार ने पिछले साल सर्कुलर ज़ारी किया कि हर स्कूल में सावित्रीबाई फुले जयंती मनाई जाय। इस साल ठंड के चलते राज्य के स्कूल बंद थे। फिलहाल बिहार के भागलपुर, गया, मधेपुरा, आरा, बक्सर, दरभंगा में लोगों में जागरुकता आयी हैं और यहां लोग सावित्रीबाई फुले को जानते समझते और उनकी जयंती मनाने लगे हैं। 

बता दें कि सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) ज्योतिबा फुले-सावित्रीबाई फुले के विचारधारात्मक कार्य साल 2017 से कर रहा है। इस संगठन ने वर्ष 2019 में खरीक प्रखंड के खैरपुर गांव में उन्होंने सावित्रीबाई फुले जयंती का भव्य आयोजन किया था। इसके बाद 2019 कोरोना काल में सावित्रीबाई जयंती पर ऑनलाइन विमर्श प्रारंभ किया। फिर साल 2020 में दो जगहों पर छोटे स्तर पर कार्यक्रम हुए। 

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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